हिमाचल की राजधानी शिमला में ज़मीन पर कब्ज़ा कर बनाई गई विवादित संजौली मस्जिद पर अब प्रशासन का शिकंजा कसता जा रहा है। शनिवार (3 मई 2025) को नगर निगम आयुक्त की अदालत ने बड़ा फैसला सुनाते हुए ग्राउंड फ्लोर और पहली मंज़िल को भी तोड़ने का आदेश जारी कर दिया है। यह कार्रवाई तब की गई जब वक्फ बोर्ड बार-बार नोटिस मिलने के बाद भी एक भी वैध कागज़ पेश नहीं कर पाया।
नगर निगम ने साफ कर दिया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं, और बार-बार अवसर देने के बावजूद जब जवाब नहीं आया, तो अब पूरा अवैध ढांचा ध्वस्त किया जाएगा। बता दें कि इससे पहले 5 अक्टूबर 2024 को इस अवैध निर्माण के ऊपरी तीन मंज़िलें- दूसरी, तीसरी और चौथी को गिराने का आदेश पहले ही दिया जा चुका था। अब यह आदेश नीचे की दो मंज़िलों पर भी लागू हो गया है।
इस पूरे मामले में हैरानी की बात यह है कि वक्फ बोर्ड और मस्जिद प्रबंधन कमेटी लगातार नियमों को ताक पर रखकर निर्माण करती रही, और जब जवाब माँगा गया तो ना नक्शा मिला, ना अनुमति पत्र। अब जब अदालत ने दो टूक फैसला सुना दिया है, तो वक्फ बोर्ड की नींद टूटी है। खबर है कि मस्जिद कमेटी और वक्फ बोर्ड अब इस निर्णय को हाई कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं।
अदालत ने शनिवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए इस पूरे ढांचे को "अवैध निर्माण" करार दिया और नीचे की दो मंज़िलों को भी ध्वस्त करने का आदेश दे दिया है। पहले से ही ऊपरी दो मंज़िलों को तोड़ने का आदेश जारी हो चुका था। अब पूरी की पूरी संजौली मस्जिद पर हथौड़ा चलने जा रहा है। यह फैसला उस वक्त आया जब वक्फ बोर्ड बार-बार मौका मिलने के बावजूद एक भी वैध दस्तावेज कोर्ट में पेश नहीं कर पाया। 15 वर्षों से दावा करने वाले बोर्ड के पास न तो कोई मालिकाना हक़ साबित करने वाला कागज था और न ही कोई निर्माण स्वीकृति।
वकील बोले: अब न्याय हुआ
लोकल रेजिडेंट कमेटी के अधिवक्ता जगतपाल ने इस फैसले को "ऐतिहासिक जीत" बताया और कहा, "अब पूरी मस्जिद को गैरकानूनी मानते हुए गिराने का अंतिम आदेश मिल चुका है। 5 अक्टूबर 2024 को पहले ही सेकंड और थर्ड फ्लोर पर गाज गिर चुकी थी, अब कोर्ट ने ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर को भी अवैध करार दिया है।" उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह निर्माण पुरानी मस्जिद को गिराने के बाद अवैध तरीके से हुआ था, जिसमें न कोई NOC थी और न ही किसी विभाग से स्वीकृति। यह नगर निगम अधिनियम का सीधा उल्लंघन था।
2010 से चल रहा था विवाद
इस अवैध निर्माण का मामला वर्ष 2010 से कोर्ट में लंबित था। करीब 45 बार सुनवाई हुई, लेकिन मस्जिद कमेटी अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर सकी। अदालत ने जब सबूत मांगे तो वक्फ बोर्ड हर बार खाली हाथ ही लौटा। यह मुद्दा सिर्फ कोर्ट तक सीमित नहीं रहा। विधानसभा से लेकर सड़कों तक इसका विरोध हुआ। प्रदेश भर में कई संगठनों ने अवैध कब्जे के खिलाफ आवाज उठाई थी।