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पाकिस्तानी दामादों पर हम ₹33,000 करोड़ क्यों लुटा रहे हैं?

भूमिका: टैक्सपेयर्स का अपमान और राष्ट्र पर आघात ?

Dr. Suresh Chavhanke
  • May 4 2025 4:16PM

भारत, जिसकी आत्मा “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना में रची-बसी है, आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ सहिष्णुता और मूर्खता के बीच की रेखा धुंधली हो गई है। एक ओर भारत का मेहनतकश नागरिक दिन-रात खून-पसीना बहाकर टैक्स चुकाता है — इस उम्मीद में कि उसका पैसा राष्ट्र निर्माण में लगेगा, गरीब को रोटी मिलेगी, सैनिक को बुलेटप्रूफ जैकेट मिलेगा, किसान को राहत मिलेगी — और दूसरी ओर उसी टैक्स से देश के दुश्मनों की आवभगत की जा रही है।

जी हाँ, बात हो रही है उन पाकिस्तानी घुसपैठियों की, जिन्हें कुछ राजनैतिक दल और मीडिया “दामाद” कहकर पालने में लगे हुए हैं। जिनका भारत की मिट्टी से कोई नाता नहीं, जिनकी निष्ठा न भारत माता के प्रति है, न इसके संविधान के प्रति। फिर भी हम हर साल ₹33,000 करोड़ इन पर लुटा रहे हैं।

झकझोर देने वाले तथ्य: एक नजर में आंकड़ों की तस्वीर

1. एक करोड़ घुसपैठिए – कईयों राज्य के बराबर

वर्तमान में भारत में लगभग 1 करोड़ पाकिस्तानी मूल के अवैध नागरिक रह रहे हैं। यह संख्या मिजोरम, सिक्किम, या अंडमान-निकोबार जैसे पूरे राज्यों की आबादी से ज्यादा है। देश के 14 राज्यों की जनसंख्या पाकिस्तानी घुसपैठियों से कम है। ये लोग भारत में बगैर किसी वैध दस्तावेज के रहते हैं, और धीरे-धीरे समाज के हर हिस्से में घुसपैठ कर चुके हैं — चाहे वो स्लम हो या मेट्रो शहर की झुग्गियाँ।

2. ₹33,000 करोड़ की सालाना लूट
सरकारी योजनाओं, मुफ्त राशन, शिक्षा, चिकित्सा, बिजली-पानी की सब्सिडी — इन सबके जरिये हर साल ₹33,000 करोड़ सीधे या परोक्ष रूप से इन घुसपैठियों पर खर्च हो रहे हैं। यानी टैक्सपेयर्स की मेहनत की कमाई की सीधी बर्बादी।

3. 2.8 करोड़ टैक्सपेयर्स पर बोझ
भारत में सिर्फ 2.8 करोड़ लोग इनकम टैक्स भरते हैं। इसका मतलब है कि हर टैक्सपेयर पर लगभग ₹11,785 का सीधा बोझ केवल इन घुसपैठियों की खातिरदारी के लिए पड़ रहा है। यह रकम किसी एक आम आदमी के वार्षिक स्वास्थ्य खर्च से ज्यादा है।

आबादी की तुलना: एक ‘गैरकानूनी’ देश भारत के भीतर

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि विश्व के 100 से अधिक देशों की जनसंख्या 1 करोड़ से कम है — जैसे कि:
कुवैत: लगभग 43 लाख
कतर: लगभग 29 लाख
बहरीन: लगभग 17 लाख
नॉर्वे: लगभग 54 लाख
सिंगापुर: लगभग 57 लाख

 इसका सीधा अर्थ यह है कि भारत में रह रहे पाकिस्तानी घुसपैठिए अकेले कई संप्रभु राष्ट्रों की कुल जनसंख्या से भी अधिक हैं। सवाल यह है: क्या हम अपने देश के भीतर एक नया ‘घुसपैठिया राष्ट्र’ तैयार कर रहे हैं?

 क्या हो सकता था ₹33,000 करोड़ से?

 ₹33,000 करोड़ की इस राशि से भारत के विकास की कई दिशा बदल सकती थीं:

1. प्रधानमंत्री आवास योजना
लगभग 33 लाख गरीब परिवारों को पक्के मकान मिल सकते थे।

2. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM)
सैकड़ों जिलों में सरकारी अस्पतालों को अपग्रेड किया जा सकता था, जिससे ग्रामीण भारत को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मिलती।

3. शिक्षा क्षेत्र में सुधार
हज़ारों सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को स्मार्ट क्लासरूम, लैब्स, और आधारभूत सुविधाएँ दी जा सकती थीं। लाखों बच्चों को गुणवत्ता वाली शिक्षा मिल सकती थी।

4. जल जीवन मिशन
लाखों घरों तक साफ पीने का पानी पहुँचाया जा सकता था।

5. किसानों के लिए राहत योजनाएँ
इस राशि से लाखों किसानों को कर्ज़माफी या कृषि उपकरण की सब्सिडी मिल सकती थी।

मीडिया की चुप्पी: बिके हुए माइक या एजेंडा पत्रकारिता?

भारत की मुख्यधारा मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इस गंभीर मुद्दे पर या तो जानबूझकर चुप है या इसका प्रमोशन कर रहा है। क्यों?

क्योंकि इन चैनलों के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाली टीआरपी, इन घुसपैठियों के वंशजों से आने वाला व्यूअरशिप और विदेशी कंपनियों से मिलने वाला विज्ञापन राजस्व राष्ट्र की सुरक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

ऐसे मीडिया संस्थान राष्ट्र विरोधी ताक़तों के ‘सॉफ्ट टूल’ बन चुके हैं। इनके लिए सच्चाई दिखाना, राष्ट्रहित में बोलना प्राथमिकता नहीं — सिर्फ TRP और प्रॉफिट ही लक्ष्य है।

विपक्ष की राजनीति: वोट बैंक बनाम देशभक्ति

विपक्षी पार्टियाँ इस घुसपैठ के मुद्दे पर या तो चुप हैं या इसे “माइनॉरिटी अधिकार” का जामा पहनाकर समर्थन दे रही हैं। उन्हें इन अवैध नागरिकों में वोट बैंक दिखाई देता है। चुनाव जीतने की भूख ने इनकी दृष्टि को इतना अंधा कर दिया है कि देश की सुरक्षा, सीमाओं की पवित्रता और नागरिकों के अधिकार इनके एजेंडे से बाहर हो चुके हैं।

क्या यह घिनौनी राजनीति नहीं है कि एक तरफ देश के गरीबों को योजनाओं का लाभ पाने के लिए महीनों इंतज़ार करना पड़ता है, और दूसरी ओर घुसपैठियों को सब कुछ तुरंत मिल जाता है — वो भी हमारे पैसे से?

सुरक्षा की दृष्टि से खतरा

इतिहास गवाह है कि घुसपैठियों के बीच आतंकवादियों की घुसपैठ सबसे आसान होती है। कश्मीर से लेकर बांग्लादेश सीमा तक, हर क्षेत्र में ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ अवैध प्रवासियों के ज़रिये आतंकवाद को पनाह मिली।

इन घुसपैठियों के पास न तो कोई पहचान है, न पृष्ठभूमि की जानकारी — जिससे वे देश की कानून व्यवस्था के लिए ticking time bomb बन जाते हैं।

निष्कर्ष: अब बहुत हो चुका

देश के टैक्सपेयर्स पर यह ₹33,000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता के खिलाफ षड्यंत्र है।
हम अपने घर के दरवाज़े खोलकर चोरों को भीतर बुला रहे हैं, और फिर खुद को लुटवाने के बाद संतोष का ढोंग कर रहे हैं।

अब समय आ गया है कि:
केंद्र सरकार सख्त कदम उठाए।
सभी अवैध नागरिकों की पहचान कर उन्हें निष्कासित किया जाए।
मीडिया और विपक्ष इस मुद्दे पर जवाबदेह बने।
टैक्सपेयर्स को यह अधिकार मिले कि उनका पैसा सिर्फ राष्ट्रहित में खर्च हो, न कि पाकिस्तानी दामादों की खातिरदारी में।

भारत माता की जय।






 


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