उत्तराखंड की बर्फीली चोटियों में स्थित केदारनाथ धाम को भारत के सबसे पूजनीय शिवालयों में गिना जाता है। यह मंदिर 11,750 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक प्रमुख स्थल माना जाता है। यह स्थल न केवल शिवभक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि आत्मिक शांति और मोक्ष की कामना करने वालों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
महाभारत से जुड़ी पौराणिक कथा
ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की शरण ली थी। शिव ने क्रोध में आकार भैंसे का रूप धारण कर लिया और भूमिगत होने लगे। भीम ने जब उनकी पूंछ पकड़ी, तो उनका पीठ भाग बाहर रह गया। यही भाग आज केदारनाथ में शिवलिंग के रूप में पूजित है।
यहां पर भक्तगण अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं। जल, दूध, घी और चंदन से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। यह विश्वास है कि जब तक स्वयंभू शिवलिंग पर चंदन या घी का लेप न किया जाए, तब तक पूजा अधूरी मानी जाती है।
बाबा के दर्शन से होता है पापों का क्षय
केदारनाथ के वरिष्ठ पुरोहितों के अनुसार, यहां आकर भक्तों को भगवान शिव के साक्षात दर्शन होते हैं। बाबा के दर्शन से जीवन में शांति का अनुभव होता है और मन के सारे क्लेश समाप्त हो जाते हैं।
यह पावन स्थल मंदाकिनी, सरस्वती, दुग्ध गंगा जैसी कई पवित्र धाराओं से घिरा हुआ है। यहां कई पवित्र कुंड भी मौजूद हैं, जिनमें उदक कुंड, अमृत कुंड और रेतस कुंड प्रमुख हैं। आपदा के बाद कुछ कुंड लुप्त हो गए हैं, लेकिन तीर्थस्थल की महिमा यथावत बनी हुई है।
नौवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और इसे सनातन संस्कृति के प्रचार का केंद्र बनाया। मंदिर परिसर में स्थित उनकी समाधि आज भी लाखों श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा का केंद्र है।
शिवशक्ति के पांच पवित्र पीठों में केदारनाथ को सर्वोच्च माना गया है। अन्य चार हैं—श्रीशैल (आंध्र प्रदेश), ज्ञानपीठ (काशी), वीर पीठ (कर्नाटक) और सधर्म पीठ (उज्जैन)। इनमें से हिमवत वैराग्य पीठ के रूप में केदारनाथ विशेष रूप से पूज्य है।