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Movie Review : क्यों देखें 'Bhulan The Maze'? क्यों है फिल्म की इतनी चर्चा? पढ़ें फिल्म का रिव्यू

ग्रामीण परिवेश और परम्पराओं पर बनी फिल्में ही भारतीय सिनेमा की आत्मा है। ये फिल्म उस आत्मा को सुकून देती है।

Yogesh Mishra
  • Jun 1 2022 11:14AM
 
 
इन दिनों छत्तीसगढ़ में फिल्म 'भूलन द मेज' की चंहुओर चर्चा है। ग्रामीण परिवेश और परम्पराओं पर बनी फिल्में ही भारतीय सिनेमा की आत्मा है। ये फिल्म उस आत्मा को सुकून देती है। ऐसे में चर्चा पर आई फिल्म 'भूलन द मेज' पर हमारे छत्तीसगढ़ ब्यूरो योगेश मिश्रा ने लिखी है समीक्षा।
 
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नहीं भूल पायेंगे भूलन को...
जमीन से जुड़े लोगों को भूलन देखनी ही चाहिए। 
किस तरह से गांव के लोग एक परिवार बनकर मुश्किल वक्त में भी खुशी ढूंढ लेते हैं और किस तरह से जिस व्यक्ति को गलत समझा जाता है, फालतू समझा जाता है, वह औरों के लिए प्रेरणा बन जाता है, ऐसी प्रेरणास्त्रोत और उत्साहवर्धित करने वाली फिल्म का नाम है-'भूलन द मेज'
 

 

 
वैसे तो यह फिल्म छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध साहित्यकार संजीव बख्शी द्वारा रचित उपन्यास पर आधारित है, लेकिन जिस नेचुरल पिक्चराइजेशन के साथ इसकी शूटिंग हुई है और फिल्म के प्रत्येक कलाकारों ने अपना बेस्ट दिया है, उससे भूलन नहीं भूलने वाली फिल्म बनकर रह जाती है। इसके लिए फिल्म के सभी स्टारकास्ट और विशेष रुप से फिल्म के निर्देशक मनोज वर्मा को बधाई।

 

 

 
स्टोरी क्या है?
फिल्म के शुरुआत में ही फिल्म का पूरा इंट्रो दे दिया जाता है। किस तरह से जंगलों में पाए जाने वाले भूलन कांदा से टकराकर व्यक्ति रास्ता भटक जाता है और वहीं-वहीं गोल-गोल घूमते रहता है और दूसरा इंसान उस इंसान को छू न ले तब तक उसे होश नहीं आता।
जिसके बाद एक सुंदर गांव को शूटिंग लोकेशन के रूप में लिया गया है। जहां पंच परमेश्वर यानी की पंचायत के सरपंच और पंचों के द्वारा जिस पारंपरिक तरीके से निर्णय लिए जाने का जिक्र है, उसे बखूबी बताया गया है। 
गांव में जमीन को लेकर विवाद आम बात है। ऐसे में अभी भी दूरस्थ ग्रामीण में किस तरह से ग्रामीण अपने इंच-इंच जमीन के लिए लड़ जाते हैं और उसके बाद मामला किस तरह से न्यायालय पहुंचता है। गांव से न्यायालय के सफर में गांववालों की मासूमियत को बखूबी दिखाया गया है। वैसे इस दौरान की एक्टिंग की सारी खूबसूरती और हंसीठिठोली में डूबने आपको फिल्म देखने जाना होगा।

 

 

 
संगीत कैसा है?
कैलाश खेर जैसे प्रख्यात गायक ने फिल्म का टाइटल सॉन्ग कई हिस्सों में गाया है, जो आपको झूमने पर मजबूर कर ही देगा। छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गायक सुनील सोनी की आवाज आपको सीट से बांधी रखेगी। फिल्म के बीच-बीच में और आखिर तक छत्तीसगढ़ के पारंपरिक गीतों, आयोजनों को बखूबी दिखाया गया है, जिससे यह फिल्म वैश्विक स्तर पर लगातार सुर्खियां बटोर रही हैं। ये हिंदी और छत्तीसगढ़ी मिश्रित फिल्म है, ऐसे में शहर और गांव दोनों लोगों को आराम से समझ आएगी। कुछ शो तो अंग्रेजी सबटाइटल के साथ हैं, तो अंग्रेजी वालों को भी दिक्कत नहीं है।
छत्तीसगढ़ की शान मीर अली मीर का लिखा "नंदा जाहि का रे" का गायन और उसपर पिक्चराइजेशन शानदार है, वो आपको भीतर से संगीतमय और भाव विभोर कर देता है।

 

 

 
कलाकार कौन हैं?
फिल्म में छत्तीसगढ़ के कई बेहतरीन कलाकारों ने काम किया है। स्वर्गीय आशीष शेंद्रे, अशोक मिश्र, पुष्पेंद्र सिंह, संजय महानंद, सुरेश गोंडाले, डा. अजय सहाय, योगेश अग्रवाल, समीर गांगुली, शशिमोहन सिंह, अनुराधा दुबे, उषा विश्वकर्मा, राजीव श्रीवास्तव, उपासना वैष्णव, हेमलाल, सेवक यादव समेत अनेक कोस्टार्स ने दिल जीत अभिनय किया है।
'नत्था' यानी ओमकार दास मानिकपुरी इस फिल्म में लीड भूमिका में हैं। हीरोइन अनिमा पगारे के साथ भारतीय सिनेमा के नामचीन कलाकार मुकेश तिवारी और राजेंद्र गुप्ता ने अपने अभिनय से फिल्म को बेहतरीन बना दिया है।

 

 

 
फिल्म में कमी क्या रह गई?
मुझे लगता है फिल्म बहुत शानदार है। लेकिन कुछ चीजें जबरन कर दी गई हैं, जिससे डायरेक्टर को अवॉइड करना चाहिए था। जैसे फिल्म में भकला नामक किरदार निभा रहे ओमकार दास मानिकपुरी अपनी पत्नी से बंद कमरे में प्रेम करके बाहर निकलते हैं और 'करत रहेंव' शब्द स्पष्ट रूप से कहता है, वह परिवार के साथ सुनने में अनकंफरटेबल लगता है। 
फिल्म के आखिर में न्यायालय परिसर के अंदर सरकारी वकील गुटखा खाकर बहस करते नजर आते हैं, जो हास्यास्पद के अलावा कुछ भी नहीं है। क्योंकि हम सब जानते हैं कि माननीय न्यायालय के सामने विशेष रूप से अधिवक्ता कितने शालीन और सदाचरण के साथ जाते हैं। इसके अलावा भकला नामक किरदार का 'हौ' शब्द बार-बार सुनने पर दर्शक इरिटेट होता है। 

 

 

 

 
टाइटल सॉन्ग बेहतरीन
संगीत बहुत शानदार है, जैसा मैंने आपको पहले बताया। कैलाश खेर ने गाने का टाइटल सॉन्ग गाया है और पार्ट में जब भी आप उनका गाना सुनते हैं, तो सीट पर बैठे-बैठे ही आप उंगलियां और पैर थिरकाते हैं। 
 

 

 

निष्कर्ष 
कुल मिलाकर फिल्म देखने लायक है। जैसा मैंने पहले कहा अपनी जमीन से जुड़े लोगों के फिल्म अवश्य देखनी चाहिए। वैसे ये हम सबका दायित्व भी है कि इस फिल्म को देखें, ताकि कलाकारों का, प्रोड्यूसर का, निर्देशक का हौसला बढ़े। राज्योत्सव-2021 में प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा फिल्म को एक करोड़ का अनुदान देकर सम्मानित किया गया है, फिल्म को उपराष्ट्रपति सम्मानित कर चुके हैं। 
इसीलिए भी देखनी चाहिए, क्योंकि फिल्म के प्रत्येक किरदार ने अपना बेस्ट अभिनय किया है, बिल्कुल नहीं भूलने लायक।
 
शुभकामनायें।
 
 
 
ये रिव्यू आपको कैसा लगा? प्रतिक्रिया देकर बताइएगा।
 

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