इनपुट- सुमित श्रीवास्तव, लखनऊ
दुनिया में 0.1 प्रतिशत से लेकर 1.4 प्रतिशत लोग एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (एएस) की बीमारी से पीड़ित हैं। मई माह के पहले शनिवार को वर्ल्ड एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस डे मनाया जाता है। इस बार यह चार मई को एएस-डे है। एएस एक इंफ्लेमेटरी और ऑटोइम्यून बीमारी है। यह मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करती है। अगर किसी को यह बीमारी है तो उसकी कमर, पेल्विस और नितंबों में दर्द शुरु हो जाता है। वैसे यह बीमारी पूरे शरीर को ही प्रभावित कर सकती है।
पूरी दुनिया में इसके मरीजों का प्रतिशत भले ही छोटा नजर आ रहा हो, लेकिन 100 में से लगभग एक वयस्क इस क्रॉनिक स्थिति से ग्रसित हैं।इस बीमारी में हड्डियां आपस में गुंथ जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप रीढ़ की हड्डी सख्त हो जाती हैं। शोध बताता है कि एएस की पहचान होने में आमतौर पर औसतन 7 से 10 साल लग जाते हैं।
डॉ. पुनीत कुमार , प्रोफेसर एवं हेड रूमेटोलॉजिस्ट के.जी.एम.यू. लखनऊ, का कहना है, इस बीमारी में सबसे अहम चीज तुरंत सलाह होती है। इसके चलते वह हड्डी पूरी तरह सख्त हो जाती है और मरीज के व्हील चेयर पर आने का खतरा रहता है। एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीड़ित लोगों के लिए आज बायोलॉजिक्स थैरेपी जैसे इलाज के उन्नत विकल्प मौजूद हैं। एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस एक पुरानी और शरीर में कमजोरी लाने वाली बीमारी है।
अलग-अलग कारणों से मरीजों को इसके बेहतर इलाज के विकल्प नहीं मिल पाते। बायोलॉजिक थेरेपी अपनाकर हम शरीर की संरचनात्मक प्रक्रिया में नुकसान को कम से कम कर सकते हैं। कई मरीज रीढ़ की हड्डी, घुटनों और जोड़ों में दर्द के इलाज के लिए अन्य तरीके अपनाने लगते हैं, जिससे लंबी अवधि बीतने के बाद भी मरीजों को रोग में कोई आराम नहीं पहुंचता। वैकल्पिक दवाएं लेने से रीढ़ की हड्डी के बीच कोई दूसरी हड्डी पनपने का खतरा बना रहता है। इस मौके पर केजीएमयू प्रोफेसर डॉ उर्मिला धाकड़, डॉ शयन मुखर्जी, डॉ निशांत कांबले, डॉ मुकेश मौर्या, डॉ अभिषेक, डॉ किशन, डॉ दर्पण, डॉ अंकुश और डॉ अभिलाष आदि मौजूद रहे।