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27 जून: पुण्यतिथि पर नमन है 13 वर्ष की उम्र में हशमत खां को मार कर पेशावर तक जीतने वाले शेर ए पंजाब "महाराजा रणजीत सिंह" जी को

भले ही इन्हें शेर ए पंजाब की चर्चित उपलब्धि मिली हो लेकिन इन्हें शेर ए हिंदुस्थान कहना भी गलत नही होगा. आईये जानते हैं उस महायोद्धा को और नमन करते हैं उन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर.

Abhay Pratap
  • Jun 27 2021 5:11PM

भारत के इतिहास में सिर्फ एक वर्ग की चाटुकारिता में लिप्त रहने वाले कुछ विशेष लोगो को शायद ही ओस वीर योद्धा की विस्तृत जानकारी हो. बिना ढाल और बिना तलवार का भारत का झूठा इतिहास बताने वाले नकली कलमकारों को शायद ही पता हो इस वीर बलिदानी के बारे में कि कितनी रक्तरंजित रही है भारत के पवित्र इतिहास की कहानी. भारत के उसी पावन इतिहास के स्वर्णिम अध्याय हैं भारत की शान महाराजा रणजीत सिंह जी जिनकी आज पुण्यतिथि है. भले ही इन्हें शेर ए पंजाब की चर्चित उपलब्धि मिली हो लेकिन इन्हें शेर ए हिंदुस्थान कहना भी गलत नही होगा.

 आईये जानते हैं उस महायोद्धा को और नमन करते हैं उन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर. महाराजा रणजीत सिंह का नाम भारतीय इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है. पंजाब के इस महावीर नें अपने साहस और वीरता के दम पर कई भीषण युद्ध जीते थे. रणजीत सिंह के पिता सुकरचकिया मिसल के मुखिया थे. बचपन में रणजीत सिंह चेचक की बीमारी से ग्रस्त हो गये थे, उसी कारण उनकी बायीं आँख दृष्टिहीन हो गयी थी. लेकिन इसको उन्होंने कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. किशोरावस्था से ही चुनौतीयों का सामना करते आये रणजीत सिंह जब केवल 12 वर्ष के थे तब उनके पिताजी की मृत्यु (वर्ष 1792) हो गयी थी. खेलने -कूदने कीउम्र में ही नन्हें रणजीत सिंह को मिसल का सरदार बना दिया गया था, और उस ज़िम्मेदारी को उन्होने बखूबी निभाया.

 महाराजा रणजीत सिंह स्वभाव से अत्यंत सरल व्यक्ति थे. महाराजा की उपाधि प्राप्त कर लेने के बाद भी रणजीत सिंह अपने दरबारियों के साथ भूमि पर बिराजमान होते थे. वह अपने उदार स्वभाव, न्यायप्रियता की उच्च भावना के लिए प्रसिद्द थे. अपनी प्रजा के दुखों और तकलीफों को दूर करने के लिए वह हमेशा कार्यरत रहते थे. अपनी प्रजा की आर्थिक समृद्धि और उनकी रक्षा करना ही मानो उनका धर्म था. महाराजा रणजीत सिंह नें लगभग 40 वर्ष शासन किया. अपने राज्य को उन्होने इस कदर शक्तिशाली और समृद्ध बनाया था कि उनके जीते जी किसी आक्रमणकारी सेना की उनके साम्राज्य की और आँख उठा नें की हिम्मत नहीं होती थी.

 महा सिंह और राज कौर के पुत्र रणजीत सिंह दस साल की उम्र से ही घुड़सवारी, तलवारबाज़ी, एवं अन्य युद्ध कौशल में पारंगत हो गये. नन्ही उम्र में ही रणजीत सिंह अपने पिता महा सिंह के साथ अलग-अलग सैनिक अभियानों में जाने लगे थे. अपने पराक्रम से विरोधियों को धूल चटा देने वाले रणजीत सिंह पर 13 साल की कोमल आयु में प्राण घातक हमला हुआ था. हमला करने वाले हशमत खां को किशोर रणजीत सिंह नें खुद ही मौत की नींद सुला दिया. बाल्यकाल में चेचक रोग की पीड़ा, एक आँख गवाना, कम उम्र में पिता की मृत्यु का दुख, अचानक आया कार्यभार का बोझ, खुद पर हत्या का प्रयास इन सब कठिन प्रसंगों नें रणजीत सिंह को किसी मज़बूत फौलाद में तबदील कर दिया.

 महाराणा रणजीत सिंह का विवाह 16 वर्ष की आयु में महतबा कौर से हुआ था. उनकी सास का नाम सदा कौर था. सदा कौर की सलाह और प्रोत्साहन पा कर रणजीत सिंह नें रामगदिया पर आक्रमण किया था, परंतु उस युद्ध में वह सफलता प्राप्त नहीं कर सके थे. उनके राज में कभी किसी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया गया था. रणजीत सिंह बड़े ही उदारवादी राजा थे, किसी राज्य को जीत कर भी वह अपने शत्रु को बदले में कुछ ना कुछ जागीर दे दिया करते थे ताकि वह अपना जीवन निर्वाह कर सके. वो महाराजा रणजीत सिंह ही थे जिन्होंने हरमंदिर साहिब यानि गोल्डन टेम्पल का जीर्णोधार करवाया था.

 आज वीरता और स्वाभिमान के उन पावन प्रतीक महाराजा रणजीत सिंह जी को उनकी पुण्यतिथि पर बारम्बार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है ..

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