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12 अप्रैल – आज ही तड़प कर मौत के घाट उतरा था भारत में निर्दोषों का लहू बहाने वाला “इल्तुतमिश” . आखिर कौन था ये ?

उनको पुरानी दिल्ली की मस्जिद के दरवाजों और सीढ़ियों पर डालकर लोगों को उन पर चलने का आदेश दिया.

Sudarshan News
  • Apr 12 2020 10:54AM
इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत में ग़ुलाम वंश का एक प्रमुख शासक था।१२३१ ई. में इल्तुतमिश ने ग्वालियर पर आक्रमण किया और बड़ी संखया में लोगों को गुलाम बनाया. उसके द्वारा पकड़े और गुलाम बनाये गये महाराजाओं के परिवारीजनों की गिनती देना संभव नहीं है. इल्तुतमिश ने भी भारत के इस्लामीकरण में पूरा योगदान दिया. सन्‌ १२३४ ई. में मालवा पर आक्रमण हुआ. वहाँ पर विदिशा का प्राचीन मंदिर नष्ट कर दिया गया. बदायुनी लिखता है : ‘६०० वर्ष पुराने इस महाकाल के मंदिर को नष्ट कर दिया गया. उसकी बुनियाद तक खुदवा कर राय विक्रमाजीत की प्रतिमा तोड़ डाली गयी. वह वहाँ से पीतल की कुछ प्रतिमाएँ उठा लाया. 

उनको पुरानी दिल्ली की मस्जिद के दरवाजों और सीढ़ियों पर डालकर लोगों को उन पर चलने का आदेश दिया. ५०० वर्षों के मुस्लिम आक्रमणों ने हिन्दुओं को इतना दरिद्र बना दिया था कि मंदिरों में सोने की मूर्तियों के स्थान पर पीतल की मूर्तियाँ रखी जाने लगी थीं. हिन्दू आसानी से इस्लाम ग्रहण नहीं करते थे क्योंकि अल-बेरुनी के अनुसार हिन्दू यह समझते थे कि उनके धर्म से बेहतर दूसरा धर्म नहीं है और उनकी संस्कृति और विज्ञान से बढ़कर कोई दूसरी संस्कृति और विज्ञान नहीं है. दूसरा कारण यह था जैसा कि इल्तुतमिश को उसके वजीर निजामुल मुल्क जुनैदी ने बताया था ‘इस समय हिन्दुस्तान में मुसलमान दाल में नमक के बराबर हैं.

अगर जोर जबरदस्ती की गयी तो वे सब संगठित हो सकते हैं और मुसलमानों को उनको दबाना संभव नहीं होगा. जब कुछ वर्षों के बाद राजधानी में और नगरों में मुस्लिम संखया बढ़ जाये और मुस्लिम सेना भी अधिक हो जाये, उस समय हिन्दुओं को इस्लाम और तलवार में से एक का विकल्प देना संभव होगा. डॉ. के.एस. लाल के अनुसार, यह स्थिति तेरहवीं शताब्दी के बाद हो गयी थी और इसलिये बाद धर्मान्तरण का कार्य तेहरवीं शताब्दी के पश्चात्‌ शीघ्र गति से चला. ऐसे क्रूर , जल्लाद और हत्यारे को भारत के झोलाछाप इतिहासकारों ने बुरी तरह से महिमामंडित किया जो उनकी आदतों और साजिश में शुमार रहा है.

उसको न जाने कितने सिक्को का चलन करने वाला अदि बना कर हर वो कोशिश की गयी जिसके चलते ये जल्लाद का नाम अमर हो सके लेकिन आखिरकार इतिहास को छिपाया नहीं जा सका और उसका सच सामने आ ही गया . आज ही के दिन अर्थात 12 अप्रैल सन १२३६ को इंसान के रूप में भेड़िया ये जल्लाद आख़िरकार बुरी तरह से तड़प कर मरा था . यद्दपि कुछ इतिहासकार इसकी मौत को स्वाभाविक मानते हैं और बीमारी के चलते बताते हैं लेकिन असल में कुछ इतिहासकारों के अनुसार इसकी इसके कुकर्मो के चलते हत्या हुई थी.




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