श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थात: माता का वर्ण पूर्णतः गौर (गोरा) है। माता के गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से की गई है। हे मां! सर्वत्र
विराजमान और मां गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम
है। हे मां, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।
प्रत्येक संवत्सर (साल) में 4 नवरात्र होते हैं जिनमें विद्वानों
ने वर्ष में 2 बार नवरात्रों में आराधना का विधान बनाया है। विक्रम संवत के
पहले दिन अर्थात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से 9
दिन यानी नवमी तक नवरात्र होते हैं। ठीक इसी तरह 6 माह बाद आश्विन मास
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी यानी विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक देवी
की उपासना की जाती है। सिद्धि और साधना की दृष्टि से से शारदीय नवरात्र
को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और
मानसिक शक्ति के संचय के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन,
पूजन, योग-साधना आदि करते हैं।
नवरात्री का पावन सप्ताह अपने आखरी चरण पर आ गया है और आज मां दुर्गा के आठवें
स्वरूप आदिशक्ति महागौरी की पूजा की जाएगी। इस दिन के देवी के पूजा मूल भाव
को दर्शाता है। देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि मां के 9 रूपों और
10 महाविद्या सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं। लेकिन महादेव के साथ उनकी
अर्धांगिनी के रूप में महागौरी हमेशा विराजमान रहती हैं। मां दुर्गा के इस
स्वरूप की पूजा करने से सोमचक्र जाग्रत होता है और इनकी कृपा से हर असंभव
कार्य पूर्ण हो जाते हैं। ज्यादातर घरों में इस दिन कन्या पूजन किया जाता
है और कुछ लोग नवमी के दिन पूजा-अर्चना करने के बाद कन्या पूजन करते हैं।
जानिए कैसे किया था मां ने गौर वर्ण प्राप्त
मां महागौरी ने अपनी तपस्या से इन्होंने गौर वर्ण प्राप्त किया था।
उत्पत्ति के समय यह आठ वर्ष की थीं। इसलिए इन्हें नवरात्र के आठवें दिन
पूजा जाता है। अपने भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं। यह धन-वैभव और
सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। इस दिन दुर्गा सप्तशती के मध्यम
चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है। जो लोग नवरात्रि के नौ दिन
व्रत नहीं रख पाते हैं, वह केवल पड़वा और अष्टमी के दिन व्रत रखते हैं और
नवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं। पहले और आठवें दिन का व्रत करने से भी
पूरे नौ दिन के व्रत का फल मिलता है।
जानिए कैसे कहलाईं माता महागौरी
देवी भागवत पुराण के अनुसार, राजा हिमालय के घर देवी पार्वती का जन्म हुआ
था। उनको आठ वर्ष की आयु में ही अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का आभास होने लग
गया था। तब से ही उन्होंने भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और उनको
प्राप्त करने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी। तपस्या के दौरान एक वक्त ऐसा
आया कि मां केवल कंद मूल फल और पत्तों का आहार करने लगीं। बाद में मां ने
केवल वायु पीकर ही तप करना आरंभ कर दिया। मां की तपस्या से प्रसन्न होकर
भगवान शिव ने उनको गंगा स्नान करने को कहा। जैसे ही माता पार्वती गंगा
स्नान करने गईं तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुआ, जो
कौशिकी देवी कहलाईं। दूसरा स्वरूप चंद्रमा के समान प्रकट हुआ, जो महागौरी
कहलाईं। मां महागौरी अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं और सभी समस्याओं
से मुक्ति दिलाती हैं।
सांसारिक रूप में इनका स्वरूप बहुत ही उज्जवल कोमल, श्वेत वर्ण और श्वेत
वस्त्रधारी है। देवी महागौरी को गायन-संगीत प्रिय है और वह सफेद वृषभ यानी
बैल पर सवार हैं। मां का दाहिना हाथ अभयमुद्रा लिए हुए हैं और नीचे वाले
हाथ में शक्ति का प्रतीक त्रिशूल है। वहीं बायें वाले हाथ में शिव का
प्रतीक डमरू और नीचे वाला हाथ भी भक्तों को अभय दे रहा है। मां के हाथ डमरू
होने के कारण इनको शिवा भी कहा जाता है। मां का यह स्वरूप बेहद शांत और
दृष्टिगत है। इनकी पूजा करने मात्र सभी व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते
हैं।
ऐसे लगाये माँ गोरी को प्रसाद
अष्टमी तिथि के दिन मां महागौरी को नारियल या नारियल से बनी चीजों का भोग
लगाया जाता है। भोग लगाने के बाद नारियल को ब्राह्मण को दे दें और प्रसाद
स्वरूप भक्तों में बांट दें। जो जातक आज के दिन कन्या पूजन करते हैं, वह
हलवा-पूड़ी, सब्जी और काले चने का प्रसाद माता को लगाते हैं और फिर कन्या
पूजन करते हैं। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं लेकिन अष्टमी
के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ रहता है। कन्याओं की संख्या 9 हो तो अति
उत्तम, नहीं तो दो कन्याओं के साथ भी पूजा की जा सकती है। भक्तों को माता
की पूजा करते समय गुलाबी रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। क्योंकि गुलाबी रंग
प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इससे परिवार के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम
बना रहता है और यह रंग परिवार को प्रेम के धागों में गूंथ कर रखा जाता है।
पूजा विधि
अष्टमी तिथि की पूजा बाकी के नवरात्रि की अन्य तिथियों की तरह ही की जाती
है। जिस तरह सप्तमी तिथि को माता की शास्त्रीय विधि से पूजा की जाती है,
उसी तरह अष्टमी तिथि की पूजा करनी चाहिए। इस दिन मां के कल्याणकारी मंत्र
ओम देवी महागौर्यै नम: मंत्र का जप करना चाहिए और माता को लाल चुनरी अर्पित
करनी चाहिए। साथ ही जो जातक कन्या पूजन कर रहे हैं, वह भी कन्याओं को लाल
चुनरी चढ़ाएं। सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और फिर माता की
तस्वीर या मूर्ति पर सिंदूर व चावल चढ़ाएं। साथ ही मां दुर्गा का यंत्र
रखकर भी उसकी भी इस दिन पूजा करें। मां अपने भक्तों कांतिमय सौंदर्य प्रदान
करने वाली मानी जाती हैं। मां का ध्यान करते हुए सफेद फूल हाथ में रखें और
फिर अर्पित कर दें और विधिवत पूजन करें।