कुशीनगर के खड्डा ब्लॉक अंतर्गत आने वाली भैंसहवा ग्रामसभा में ग्राम प्रधान मोहन भारती द्वारा किए गए कथित भ्रष्टाचार का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। गांव में मूलभूत सुविधाओं के अभाव और शासन द्वारा जारी की गई करोड़ों की धनराशि के बावजूद कोई कार्य न होने से ग्रामीणों में भारी आक्रोश है।
विकास के नाम पर सिर्फ दिखावा – जमीनी हकीकत शून्य
स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि सड़क, नाली, स्ट्रीट लाइट और पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए शासन से धन तो जारी हो गया, लेकिन जमीनी स्तर पर आज तक कोई ठोस कार्य नहीं हुआ। गांव में शौचालय निर्माण भी सिर्फ कागजों पर हुआ – जो बनाए गए, वे घटिया निर्माण के चलते कुछ ही महीनों में टूटकर बिखर गए।
शासन से आया पैसा कहां गया? – ग्रामीणों का सवाल
ग्रामीणों का कहना है कि गड्ढा मुक्त सड़क योजना के तहत बजट पास हुआ था, लेकिन गांव की सड़कों की हालत आज भी बेहद खराब है। बरसात में कीचड़ और गर्मियों में धूल का गुबार यहां की पहचान बन गया है। नाली निर्माण के लिए पैसे आए, लेकिन गांव में जलनिकासी की कोई व्यवस्था नहीं है।
आवास योजना में भी भ्रष्टाचार का आरोप
आवास योजना के अंतर्गत मिलने वाली किस्तों में भी प्रधान पर अवैध वसूली के आरोप हैं। ग्रामीणों का कहना है कि हर किस्त पर कमीशन देना अनिवार्य बना दिया गया है। जिसकी जेब में पैसा है, उसी को लाभ मिल रहा है। पात्र परिवार आज भी पक्के मकान का सपना देख रहे हैं।
बीडीओ की जांच बनी मज़ाक – कोई कार्रवाई नहीं
ग्रामीणों की शिकायत पर खड्डा ब्लॉक के बीडीओ ने गांव का दौरा तो किया, लेकिन अब तक न तो किसी प्रकार की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक हुई और न ही प्रधान के खिलाफ कोई प्रशासनिक कदम उठाया गया है। इससे ग्रामीणों का प्रशासन पर से भी भरोसा उठता नजर आ रहा है।
हैंडपंप बंद, पानी के लिए भटकते लोग
भैंसहवा ग्रामसभा के किसी भी मोहल्ले में काम करने वाला हैंडपंप नहीं है। गर्मी में जल संकट विकराल होता जा रहा है। महिलाएं और बच्चे दूर-दूर तक पानी के लिए भटकते हैं। यह स्थिति तब है जब हर साल जलसंरक्षण और मरम्मत के नाम पर फंड खर्च होता है।
जनता ने खोला मोर्चा – कार्रवाई की मांग
अब गांव के लोगों ने एकजुट होकर प्रधान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वे उच्च अधिकारियों और प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि जल्द से जल्द मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
क्या भ्रष्टाचारियों पर चलेगा कानून का डंडा? या फिर ग्रामीणों की आवाज़ एक बार फिर दबा दी जाएगी?