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क्या भारत में कोरोना के वास्तविक आंकड़ों को कम आंकना ख़तरनाक साबित हो सकता है?

पिछले 10 से 12 दिनों में हुई मौत के आंकड़ों की बात की जाए, तो रोजाना 1000 से ज़्यादा मौतें इस मुल्क में हो रही हैं.

Abhishek Lohia
  • Sep 13 2020 11:28PM

कोरोना को लेकर अभी तक जो भी आधिकारिक डेटा मौज़ूद है उसमें कुछ सार्वजनिक हुआ है और कुछ नहीं. जो डेटा सार्वजनिक नहीं हुआ उसे देखने से साफ़ है कि भारत में हम कोरोना के वास्तविक आंकड़ों को कम आंक रहे हैं. भारत में पिछले कुछ समय से हर रोज़ 95 हज़ार से एक लाख कोरोना केस सामने आ रहे हैं जो दुनिया में सबसे ज़्यादा हैं. लेकिन जो आंकड़े अभी रिलीज़ नहीं हुए हैं उनके मुताबिक वास्तविक आंकड़े 2 लाख से ढाई लाख प्रतिदिन हो सकते हैं. यानी जो आंकड़े बताए जा रहे हैं उससे दो से ढाई गुना तक. इससे भारत में कोरोना की समस्या और भीषण दिखाई दे रही है. पिछले 10 से 12 दिनों में हुई मौत के आंकड़ों की बात की जाए, तो रोजाना 1000 से ज़्यादा मौतें इस मुल्क में हो रही हैं. 

दुनिया के किसी भी देश के मुक़ाबले हमने पहले बताया कि भारत में रैपिड एंटीजन टेस्ट काफ़ी तेज़ी से बढ़े हैं जिनके नतीजे कम पुख़्ता होते हैं. कई कोरोना पॉज़िटिव लोग भी इस टेस्ट में नेगेटिव निकल सकते हैं जबकि काफ़ी पुख़्ता माने जाने वाले वाले आरटी-पीसीआर टेस्ट की संख्या घटी है. क़ायदे से ये नहीं होना चाहिए.

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मेडिकल रिकॉर्ड्स के मुताबिक पीसीआर टेस्ट जब ठीक से किये जाते हैं और जो बहुत ज़रूरी है तो कोरोना केस कहीं ज़्यादा सामने आएंगे बल्कि एंटीजन टेस्ट के मुक़ाबले दो से तीन गुना तक ज़्यादा. दिल्ली और महाराष्ट्र के आंकड़ों से ये साफ़ हो जाता है. इन राज्यों में बाकी राज्यों के मुक़ाबले टेस्ट कहीं बेहतर तरीके से किए जा रहे हैं. लगभग उसी स्टैंडर्ड से जो अंतरराष्ट्रीय स्टैंडर्ड है. इसलिए इन राज्यों में आरटी-पीसीआर टेस्ट में पॉज़िटिविटी रेट काफ़ी है.

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अब देखिए वो राज्य जहां आरटी-पीसीआर टेस्टिंग सबसे ख़राब तरीके से हो रही है. इसीलिए यहां आरटी-पीसीआर टेस्ट में पॉजिटिविटी रेट काफ़ी कम आ रहा है. जानकारों को आशंका है कि भारत में ज़्यादातर यही हो रहा है. दरअसल रैपिड एंटीजन टेस्ट आसानी से हो जाता है और नतीजा भी जल्दी आता है. लेकिन सिर्फ़ इसलिए एंटीजन टेस्ट ज़्यादा नहीं किए जाने चाहिए. पीसीआर टेस्ट के लिए विशेषज्ञता और प्रशिक्षण ज़्यादा चाहिए होता है. अगर पीसीआर टेस्ट तय मानकों के आधार पर नहीं किए गए तो कई ऐसे लोग नेगेटिव आने लगेंगे जो पॉज़िटिव हैं. 

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हैरानी की बात ये है कि भारत में दोनों ही तरह के टेस्ट में पॉज़िटिविटी रेट का औसत क़रीब एक जैसा है. पीसीआर में 9% तो एंटीजन में 7% जबकि विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसा नहीं हो सकता. यही बता रहा है कि भारत में आरटी-पीसीआर टेस्ट ठीक से नहीं हो रहे हैं. 

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अगर एंटीजन टेस्ट में पॉज़िटिविटी रेट 7% है तो पीसीआर में दो से तीन गुना होना चाहिए. इसका मतलब है कि अगर रोज़ एक लाख केस आ रहे हैं तो सही आंकड़े दो से ढाई लाख केस प्रतिदिन होने चाहिए. सवाल ये है कि क्या हम जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं या हमसे टेस्ट को सही मानकों से करने में ग़लती हो रही है.

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तो ज़रूरत इस बात है कि हम वास्तविकता से मुंह न मोड़ें. हमें कोरोना के मामले को संभालने के लिए ज़्यादा बेहतर पेशेवर रुख़ अपनाना होगा. अपनी नीतियों को थोड़ा और सख़्ती से लागू करना होगा. भारत में जिस प्रकार से हम लोगों की लापरवाही इस घातक वायरस के प्रति देख रहे हैं, उससे यह तो स्पष्ट है कि अभी भी भारत सरकार को कड़ाई से रुख़ अपनाने की ज़रूरत है. "क्यूंकि भय बिन प्रीत ना होई". 

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