पाकिस्तान को सबक सिखाने के भारत के संकल्प ने अब पानी के मोर्चे पर करारा प्रहार किया है। दशकों से ‘पड़ोसी प्रेम’ के नाम पर निभाए जा रहे सिंधु जल समझौते को ठुकराकर अब भारत ने चिनाब नदी का बहाव बगलिहार बांध से रोक दिया है। और अब अगला वार होगा झेलम पर- किशनगंगा प्रोजेक्ट के जरिए पाकिस्तान की जल-आपूर्ति पर लगाम कसने की तैयारी शुरू हो चुकी है।
26 निर्दोष भारतीयों की शहादत के बाद भारत का सब्र अब जवाब दे चुका है। आतंक को पालने वाले पाकिस्तान को अब न पानी मिलेगा, न रहम! यही वजह है कि भारत ने सिंधु जल संधि को सस्पेंड कर जल-युद्ध की घोषणा कर दी है। अब बगलिहार और किशनगंगा जैसे बड़े प्रोजेक्ट पाकिस्तान के लिए पानी नहीं, बल्कि सजा का जरिया बनेंगे।
बगलिहार बना पाकिस्तान की जल-नीति का अंत
रामबन में बना बगलिहार जलविद्युत प्रोजेक्ट अब पाकिस्तान के गले की हड्डी बन चुका है। यही वो बांध है, जिससे होकर पाकिस्तान के हिस्से की चिनाब नदी बहती है। अब इसी बहाव को भारत ने नियंत्रित कर लिया है। पाकिस्तान को इसकी इतनी तिलमिलाहट है कि वह बार-बार विश्व बैंक की चौखट पर जाकर गिड़गिड़ा रहा है।
किशनगंगा से झेलम की धारा बदलने की तैयारी
उत्तरी कश्मीर का किशनगंगा प्रोजेक्ट भी अब पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ा रहा है। झेलम की सहायक नदी नीलम पर इसका सीधा असर है, जो पाकिस्तान की जल-आपूर्ति की रीढ़ मानी जाती है। भारत ने संकेत दे दिए हैं- अब एक-एक बूँद पर नियंत्रण होगा!
क्या है सिंधु जल संधि?
1960 में नेहरू और अयूब खान ने विश्व बैंक की मौजूदगी में जो जल संधि की थी, वो अब भारत के लिए बोझ बन चुकी है। इस समझौते के तहत भारत को सतलुज, ब्यास और रावी का जल मिला था, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब पाकिस्तान को दे दी गई थीं। भारत को सिर्फ घरेलू और सीमित सिंचाई का अधिकार था। लेकिन अब आतंक के पनाहगार को ‘जल’ नहीं, जवाब मिलेगा।
सिंधु- पाकिस्तान की जान की नाड़ी
पाकिस्तान की 80% खेती और 93% जल आपूर्ति सिंधु नदी पर निर्भर है। और अब भारत ने वहीं चोट की है जहाँ पाकिस्तान की जान अटकी है। यही वजह है कि पाकिस्तान के सैन्य और राजनीतिक हलकों में हाहाकार मचा हुआ है।