बांग्लादेश अब उसी रास्ते पर उतर चुका है जिस पर अफगानिस्तान को तालिबान ने घसीटा था। शेख हसीना के तख्त से हटते ही कट्टरपंथियों ने बांग्लादेश की बागडोर अपने हाथ में ले ली है। राजधानी ढाका के सुहरावर्दी उद्यान में शनिवार को जो हुआ, उसने पूरी दुनिया को चौंका दिया। ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ नाम के इस्लामी संगठन ने हजारों जिहादी सोच वाले समर्थकों के साथ मिलकर खुलेआम महिला अधिकारों के खिलाफ जहर उगला।
हिफाजत-ए-इस्लाम नामक यह संगठन उन कट्टर मौलानाओं और मदरसा नेटवर्क से जुड़ा है, जो बांग्लादेश को 21वीं सदी से पीछे खींचकर शरिया के अंधेरे में ले जाना चाहते हैं। इस बार इनका निशाना बना महिला अधिकार आयोग, जो मुस्लिम महिलाओं को विरासत और बराबरी के हक देने की सिफारिश कर रहा था। लेकिन यह बात इन कठमुल्लों को नागवार गुजरी। मौलाना महफुजुल हक ने मंच से खुलेआम महिला आयोग को भंग करने और इस्लामी विद्वानों वाला नया आयोग बनाने की मांग कर दी।
महिला आयोग के सदस्यों को दी गई सज़ा की धमकी
सिर्फ विरोध नहीं, धमकी भी दी गई। हिफाजत के दूसरे कट्टर नेता ममुनुल हक ने मंच से महिला आयोग के सदस्यों को सज़ा देने की मांग कर दी। उनका तर्क? मुस्लिम महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देना शरीयत के खिलाफ है और इससे देश के मुसलमानों की भावनाएं आहत हुई हैं। इस जहरीली सोच का नमूना महिला मदरसे के शिक्षक मोहम्मद शिहाब उद्दीन ने भी पेश किया, जिन्होंने खुले मंच से ऐलान कर दिया – "मर्द और औरत कभी बराबर नहीं हो सकते, कुरान इसका साफ़ हुक्म देता है।"
बांग्लादेश बना रहा है तालिबानी मॉडल का खाका
जब तक शेख हसीना सत्ता में थीं, इन इस्लामी ताकतों पर अंकुश था, लेकिन उनके जाने के बाद कट्टरता ने खुला मैदान पा लिया है। अब वहां महिलाओं के अधिकारों को खत्म करने की साजिशें खुलकर की जा रही हैं। हिफाजत जैसे संगठन बांग्लादेश को तालिबानी अफगानिस्तान की तरह बनाना चाहते हैं – जहाँ औरतें सिर्फ परदे के पीछे रहें और उनके अधिकारों पर ताले जड़े जाएं।