कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जाति जनगणना को लेकर 'यू टर्न' लेने का आरोप लगाया है। साथ ही कहा कि उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या उन्होंने इस विषय पर अपनी नीति आधिकारिक तौर पर बदल दी है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह सवाल भी किया कि क्या जाति जनगणना के लिए कोई समयसीमा तय की गई है? केंद्र सरकार ने हाल ही में फैसला किया कि अगली जनगणना में जातियों की गणना भी की जाएगी। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने ‘एक्स' पर पोस्ट किया, 'जाति जनगणना पर नरेंद्र मोदी जी के अचानक, पूर्ण और हताशा भरे यू-टर्न को लेकर पर्याप्त सबूत हैं।'
पीएम मोदी द्वारा जातिगत जनगणना के मुद्दे पर एकदम अचानक और हताशा भरे यू-टर्न के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। यहां सिर्फ तीन उदाहरण देखिए -
1. पिछले साल, 28 अप्रैल 2024 को एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने जातिगत जनगणना की मांग करने वालों को "अर्बन नक्सल" करार दिया था।
2. मोदी सरकार ने 20 जुलाई 2021 को संसद में कहा था कि "सरकार ने नीतिगत निर्णय लिया है कि जनगणना में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा अन्य किसी जाति की गणना नहीं की जाएगी।"
3. भारत के सर्वोच्च न्यायालय में 21 सितंबर 2021 को दाखिल हलफनामे में मोदी सरकार ने साफ तौर पर कहा था - “जनगणना [2021] के दायरे से किसी भी अन्य जाति की जानकारी को बाहर रखना केंद्र सरकार का एक सचेत नीतिगत निर्णय है जैसा कि पिछले पैराग्राफ्स में स्पष्ट किया गया है।” दरअसल, मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से ओबीसी के लिए जाति जनगणना का आदेश न देने का स्पष्ट आग्रह किया था - “ऐसी स्थिति में, इस माननीय न्यायालय द्वारा जनगणना विभाग को आगामी जनगणना 2021 में ग्रामीण भारत के पिछड़े वर्ग समुदायों (BCCs) से संबंधित सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों को शामिल करने के लिए कोई भी निर्देश देना ,जैसा कि प्रार्थना की गई है, अधिनियम की धारा 8 के तहत तैयार किए गए नीतिगत निर्णय में हस्तक्षेप करने के समान होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तीन सीधे सवाल:
1. क्या वे ईमानदारी से स्वीकार करेंगे कि उनकी सरकार ने पिछले ग्यारह वर्षों में जातिगत जनगणना पर अपनी नीति में आधिकारिक रूप से बदलाव किया है?
2. क्या वे देश की संसद और देशवासियों को बताएंगे कि सरकार की नीति में बदलाव के पीछे क्या कारण हैं?
3. क्या वे जातिगत जनगणना के लिए समय सीमा तय करेंगे?