25 सितंबर भारतीय इतिहास के लिए बहुत खास दिन है क्योंकि इस दिन भारतीय राजनीतिज्ञ, एकात्म मानववाद विचारधारा के समर्थक और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अग्रदूत, राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म हुआ था.1940 के दशक में उपाध्याय ने हिंदुत्व पुनरुत्थान के आदर्शों का प्रसार करने के लिए मासिक प्रकाशन राष्ट्र धर्म शुरू किया, जिसका मोटे तौर पर अर्थ 'राष्ट्रीय कर्तव्य' है. पंडित दीनदयाल जी को जनसंघ के आधिकारिक राजनीतिक सिद्धांत, एकात्म मानववाद का मसौदा तैयार करने के लिए जाना जाता है, जिसमें कुछ सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद मूल्यों को शामिल किया गया है और कई के साथ उनका समझौता है.
जानकारी के अनुसार, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक ब्राह्मण परिवार से थे उनका पालन-पोषण पढ़ाई लिखाई उनके मामा के घर हुआ था. सीकर के महाराजा ने उन्हें एक स्वर्ण पदक, किताबें खरीदने के लिए 250 रुपये और 10 रुपये की मासिक छात्रवृत्ति दी और उन्होंने अपना इंटरमीडिएट पिलानी , राजस्थान , अब बिड़ला स्कूल, पिलानी से किया. उन्होंने सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से बीए की डिग्री ली. 1939 में वे आगरा चले आये और सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा में दाखिला लियाअंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए, लेकिन अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके. कुछ पारिवारिक और वित्तीय समस्याओं के कारण उन्होंने एमए की परीक्षा नहीं दी. पारंपरिक भारतीय धोती-कुर्ता और टोपी पहनकर सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के कारण उन्हें पंडितजी के नाम से जाना जाने लगा.
1937 में सनातन धर्म कॉलेज में पढ़ाई के दौरान, पंडित दीनदयाल जी एक सहपाठी बालूजी महाशब्दे के माध्यम से RSS के संपर्क में आए थे. उनकी मुलाकात RSS के संस्थापक केबी हेडगेवार से हुई, जो एक शाखा में उनके साथ बौद्धिक चर्चा में शामिल हुए. कानपुर में सुन्दर सिंह भण्डारी भी उनके सहपाठियों में से एक थे. उन्होंने 1942 से आरएसएस में पूर्णकालिक काम शुरू किया. उन्होंने नागपुर में 40 दिवसीय ग्रीष्मकालीन अवकाश आरएसएस शिविर में भाग लिया , जहां उन्होंने संघ शिक्षा का प्रशिक्षण लिया. आरएसएस शिक्षा विंग में दूसरे वर्ष का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद, उपाध्याय जी आरएसएस के आजीवन प्रचारक बन गए. उन्होंने 1955 से लखीमपुर जिले के प्रचारक और संयुक्त प्रचारक के रूप में काम कियाउत्तर प्रदेश के प्रांत प्रचारक (क्षेत्रीय आयोजक). उन्हें मुख्य रूप से आरएसएस का एक आदर्श स्वयंसेवक माना जाता था क्योंकि 'उनके प्रवचन में संघ की शुद्ध विचार-धारा प्रतिबिंबित होती थी.
उपाध्याय जी ने 1940 के दशक में लखनऊ से मासिक राष्ट्र धर्म प्रकाशन शुरू किया और इसका उपयोग हिंदुत्व विचारधारा को फैलाने के लिए किया. बाद में उन्होंने साप्ताहिक पांचजन्य और दैनिक स्वदेश शुरू किया. 1951 में, जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बीजेएस की स्थापना की, तो आरएसएस ने दीनदयाल जी को पार्टी में शामिल कर लिया और उन्हें संघ परिवार के वास्तविक सदस्य के रूप में ढालने का काम सौंपा. उन्हें इसकी उत्तर प्रदेश शाखा का महासचिव और बाद में अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किया गया. 15 वर्षों तक वह संगठन के महासचिव बने रहे. 1963 के उपचुनाव में जब जनसंघ के सांसद ब्रम्ह जीत सिंह जी की मृत्यु हो गई, तब उन्होंने उत्तर प्रदेश से जौनपुर की लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव भी लड़ा, लेकिन महत्वपूर्ण राजनीतिक आकर्षण आकर्षित करने में असफल रहे और निर्वाचित नहीं हुए.
1967 के आम चुनावों में जनसंघ को 35 सीटें मिलीं और वह लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई. जनसंघ भी संयुक्त विधायक दल का हिस्सा बन गया, जो कई राज्यों में सरकार बनाने के लिए गैर-कांग्रेसी विपक्षी दलों को एक गठबंधन के रूप में शामिल करने का एक प्रयोग था, इसने भारतीय राजनीतिक स्पेक्ट्रम के दाएं और बाएं को एक ही मंच पर ला दिया. दिसंबर 1967 में पार्टी के कालीकट अधिवेशन में वे जनसंघ के अध्यक्ष बने. उस सत्र में उनका अध्यक्षीय भाषण गठबंधन सरकार के गठन से लेकर भाषा तक कई पहलुओं पर केंद्रित था. अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान पार्टी में कोई बड़ी घटना नहीं घटी, जो उनकी असामयिक मृत्यु के कारण फरवरी 1968 में 2 महीने में समाप्त हो गया.
उपाध्याय जी ने लखनऊ से पांचजन्य (साप्ताहिक) और स्वदेश (दैनिक) का संपादन किया. हिंदी में उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य पर एक नाटक लिखा और बाद में शंकराचार्य की जीवनी लिखी. उन्होंने हेडगेवार की मराठी जीवनी का अनुवाद किया. आज भारतीय राजनीतिज्ञ, एकात्म मानववाद विचारधारा के समर्थक और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अग्रदूत, राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें नमन वंदन करता है तथा उनकी यशगाथा को अनंतकाल याद रखने का व लोगों के बीच पहुंचाते रहने का संकल्प लेता है...