ये वही लोग हैं जो कभी अयोध्या प्रकरण में सत्र न्यायलय के फैसले की बात मानने की बात कहते थे, लेकिन वो हाईकोर्ट गये. हाईकोर्ट में भी वो यही कहते रहे कि यहाँ का आदेश मानेंगे पर वो नहीं माने और सुप्रीम कोर्ट गये. सुप्रीम कोर्ट का आदेश हर हाल में मानने की बात करने वाले फैसले के आने के बाद भी उसके खिलाफ बोलते रहे और अब तक जारी है.
एक बार फिर से अदालत द्वारा श्रीराम भक्तों को बरी करने के बाद से उठ रही है वैसी ही आवाज. गौर करने योग्य है कि इस बार विरोध के स्वर देवबंद दारुल उलूम से जुड़े और जमीयत प्रमुख मदनी द्वारा उठाये गये हैं. उन्होंने श्रीराम के भक्तों के बरी होने पर हैरानी जताने के साथ इस फैसले को न्याय नहीं बल्कि न्याय का खून बता डाला.. लेकिन उनके बयान पर वामपंथी वर्ग एकदम खामोश है.
मदनी ने बाबरी को अल्लाह का घर बताते हुए उसके लिए शहीद किये जाने जैसे शब्द प्रयोग किये. दनी ने कहा कि मस्जिद जिन लोगों के संरक्षण में तोड़ी गई और जिन्हों ने मस्जिद के तोड़ने को अपनी राजनीति और सत्ता की बुलंदी का कारण समझा था, वह बाइज़्ज़त बरी कर दिए गए चाहे वह लोग भाजपा ही के शासन-काल में राजनीतिक रूप से बेहैसियत और बेनामो-निशान हो गए जो अल्लाह की बेआवाज़ लाठी की मार है।