आज का दिन कश्मीरी हिन्दुओं के लिए बड़ा हो सकता है। आज दिल्ली के एनआईए कोर्ट में 1992 में हुए कश्मीरी हिन्दुओं पर हत्याचारों के मामले पर सुनवाई है। गौर है कि 90 के दशक में कश्मीरी हिन्दुओं के पलायन के लिए यासीन मालिक मुख्य तोर पर जिम्मेवार था। आज लाखों उन कश्मीरी हिन्दुओं की नजर इस फैसले पर होगी कि आखिर उन्हें आज इंसाफ मिलेगा या नहीं।
यासीन मालिक द्वारा सभी गुनाह कबूलने के बाद सर्वोच्च न्यायालय में 19 मई से सजा पर शुरू हो रही बहस से पंडितों को आस जगी है कि तीन दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद शायद उन्हें न्याय मिल सके।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति की ओर से किए गए सर्वे के अनुसार नब्बे के दशक से लेकर अब तक 804 कश्मीरी हिन्दुओं की आतंकियों ने हत्या कर दी है, लेकिन एक भी मामले में दोषियों को सजा नहीं मिल सकी है। यह पहला मामला होगा जब किसी गुनहगार की सजा पर मुहर लग सकेगी।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति का कहना है कि दुर्भाग्य यह है कि जिन 804 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई उनमें से ज्यादा मामलों की प्राथमिकी में अज्ञात आतंकियों का जिक्र है। इनमें से लगभग 90 फीसदी हत्याएं जेकेएलएफ के आतंकियों ने की। सरकारी तंत्र की ओर से इसकी जांच की जहमत भी नहीं उठाई गई। उस समय यासीन मलिक जेकेएलएफ का कमांडर हुआ करता था।
आतंकवाद के चरम दौर में भी श्रीनगर के साथ ही बारामुला, पुलवामा, शोपियां, अनंतनाग, बडगाम, गांदरबल, कुलगाम, गांदरबल, कुपवाड़ा और बांदीपोरा में कई परिवारों ने घाटी नहीं छोड़ी। वे अपनी मातृभूमि से जुड़े रहे और रोजी-रोटी का जुगाड़ करते रहे। लेकिन हालिया टारगेट किलिंग की घटनाओं ने एक बार फिर भय का वातावरण पैदा किया है।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी डॉ. एसपी वैद बताते हैं कि 1989 के आखिर व 1990 के शुरूआत में जेकेएलएफ ही एकमात्र आतंकी संगठन था। उसी ने पंडितों को विस्थापित होने के लिए मजबूर किया। यह संगठन कश्मीर की आजादी का नारा देता था, जो पाकिस्तान को पसंद नहीं था क्योंकि वह कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना चाहता था।