पौड़ी
जिले के देवलगढ क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध माॅ राजराजेश्वरी का पौराणिक सिद्धपीठ
मंदिर अपने में एक विशेष पहचान समेेटे हुए है इतिहास के पन्नों में शुमार
राजराजेश्वरी माता सिर्फ राजपूतो की नहीं बल्की समस्त गढवाल पर राज करने वाले
पंवार वंश के 37 वें राजा अजयपाल की कुलदेवी भी रही है इतिहासकारो के मुताबिक गढ
नरेश अजयपाल सन 1512 में चंदपुरगढी से अपनी राजधानी को स्थानांतरित करके देलगढ
क्षेत्र ले आये थे तभी से इस गढ नरेश व राजपूतो की कुलदेवी राजराजेश्वरी को ही
माना जाता हैं और यहां माता की आराधाना की जाती है जहां माता की अखण्ड जोत भी
वर्षो बीत जाने के बाद भी यहां जलती रहती है मंदिर की धार्मिक मान्यतायें पिछले
साल तक जहां मंदिर में भक्तों को मंदिर तक खीच लाती थी और भक्तों का यहां तांता
लगा रहता था वहीं इस बार कोरोना के बढते प्रकोप के कारण माता को न तो भक्तों को
भोग लगा पाया और न ही माॅ भक्तो को माता के दर्शन हो पाये, भक्तों के लिये मंदिर के कपाट कोरोना
काल में बंद पडे हैं, लेकिन लंबे इंतजार के बाद अब कहीं इस मंदिर के पुजारी ने मंदिर के
कपाट भक्तों के लिये शीतकालीन नवरात्रि में खोलने का निणर्य लिया है मंदिर के
पुजारी कुंजिका प्रसाद ने बताया है कि नवरात्रि में माता के दर्शन को जो भी
श्रद्धालु इस सिद्धपीठ में पहुंचेंगे उन्हें कोरोना पर बनी सरकार की गाईडलाईन का
पालन करना अनुवार्य होगा तभी वे मंदिर में प्रवेश कर नवरात्रि में माता के दर्शन
दूर से कर पायेंग साथ ही नवरात्रि की हवन पूजा मंे भी शामिल हो पायेंगे कोरोना का
खतरा मंदिर परिसर में न मण्डराये इसके लिये कोरोना पर बनी शर्ताे का ख्याल रखकर ही
मंदिर में प्रवेश दिये जाने का निर्णय लिया गया है मंदिर में अखण्ड जोत धार्मिक
मान्यताओं के आधार पर किदंवती है कि इस मंदिर में पहुंचने वालों के दुख तो माॅ
हरती ही है साथ ही मंदिर में पहुंचने वालों को मोक्ष की प्राप्ती भी होती है
इसलिये भक्त कुलदेवी के दर्शन से खुद को रोक नहीं पाते लेकिन इस बार कोरोना के
कारण भक्तो को माता के दर्शन नहीं हो पा रहे थे जो संभवता इस नवरात्रि में हों
सकेंगें।
पौड़ी जिले के देवलगढ क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध माॅ राजराजेश्वरी का पौराणिक सिद्धपीठ मंदिर अपने में एक विशेष पहचान समेेटे हुए है इतिहास के पन्नों में शुमार राजराजेश्वरी माता सिर्फ राजपूतो की नहीं बल्की समस्त गढवाल पर राज करने वाले पंवार वंश के 37 वें राजा अजयपाल की कुलदेवी भी रही है इतिहासकारो के मुताबिक गढ नरेश अजयपाल सन 1512 में चंदपुरगढी से अपनी राजधानी को स्थानांतरित करके देलगढ क्षेत्र ले आये थे तभी से इस गढ नरेश व राजपूतो की कुलदेवी राजराजेश्वरी को ही माना जाता हैं और यहां माता की आराधाना की जाती है जहां माता की अखण्ड जोत भी वर्षो बीत जाने के बाद भी यहां जलती रहती है मंदिर की धार्मिक मान्यतायें पिछले साल तक जहां मंदिर में भक्तों को मंदिर तक खीच लाती थी और भक्तों का यहां तांता लगा रहता था वहीं इस बार कोरोना के बढते प्रकोप के कारण माता को न तो भक्तों को भोग लगा पाया और न ही माॅ भक्तो को माता के दर्शन हो पाये, भक्तों के लिये मंदिर के कपाट कोरोना काल में बंद पडे हैं, लेकिन लंबे इंतजार के बाद अब कहीं इस मंदिर के पुजारी ने मंदिर के कपाट भक्तों के लिये शीतकालीन नवरात्रि में खोलने का निणर्य लिया है मंदिर के पुजारी कुंजिका प्रसाद ने बताया है कि नवरात्रि में माता के दर्शन को जो भी श्रद्धालु इस सिद्धपीठ में पहुंचेंगे उन्हें कोरोना पर बनी सरकार की गाईडलाईन का पालन करना अनुवार्य होगा तभी वे मंदिर में प्रवेश कर नवरात्रि में माता के दर्शन दूर से कर पायेंग साथ ही नवरात्रि की हवन पूजा मंे भी शामिल हो पायेंगे कोरोना का खतरा मंदिर परिसर में न मण्डराये इसके लिये कोरोना पर बनी शर्ताे का ख्याल रखकर ही मंदिर में प्रवेश दिये जाने का निर्णय लिया गया है मंदिर में अखण्ड जोत धार्मिक मान्यताओं के आधार पर किदंवती है कि इस मंदिर में पहुंचने वालों के दुख तो माॅ हरती ही है साथ ही मंदिर में पहुंचने वालों को मोक्ष की प्राप्ती भी होती है इसलिये भक्त कुलदेवी के दर्शन से खुद को रोक नहीं पाते लेकिन इस बार कोरोना के कारण भक्तो को माता के दर्शन नहीं हो पा रहे थे जो संभवता इस नवरात्रि में हों सकेंगें।