राजनीति भी शामिल है उस हंगामे में जिसे नाम दिया गया है "किसान आंदोलन"
किसान आंदोलन विरोध के पीछे राजनीतिक भागीदारी? ये सबूत दे रहे हैं संकेत...
केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यों के लिए नई कोरोना गाइडलाइंस तय की। इसी बीच केंद्र सरकार की ओर से पारित कृषि कानून के विरोध के पीछे राजनीतिक भागीदारी है? यह सवाल का अभी तक कोई ठोस जवाब नहीं मिल सका है। लेकिन पंजाब सहित कुछ राज्यों में जिस तरह से किसान आंदोलन (किसानों के विरोध) को सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है। इस आशंका से इनकार भी नहीं किया जा सकता है।
सवाल उठ रहे हैं कि वास्तव में किसान इतने मजबूर हो गए हैं कि उनके पास प्रदर्शन के अलावा कोई और चारा नहीं है। बता दें कि किसान प्रदर्शनों में शामिल लोग बड़ी संख्या में सुरक्षा सामग्री और ओढने-पहनने का इंतजाम करके दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। आरोप हैं कि इसके लिए प्रदर्शनकारी किसानों को पीछे से राजनीतिक दलों की ओर से पूरी मदद मुहैया करवाई जा रही है। फिलहाल उन्हें रोका जा रहा है।
किसानों के आंदोलन से यह भी सवाल उठ रहे हैं। कि सरकार पर गुस्सा उतारने वालों में सचमुच सभी किसान ही हैं या फिर राजनीति में रमे-रमाए लोग, जो किसान का चोला पहनकर सडक पर निकले हैं। वर्तमान में सरकार के प्रदर्शनकारियों से शांति से बात करने की कोशिश कर रही है। लेकिन इस आंदोलन से दिल्ली-एनसीआर के साथ ही हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और जम्मू से आने-जाने वाले यात्रियों को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।
देश में एक बार फिर बढ़ते कोरोना संकट को देखते हुए। केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यों के लिए नई कोरोना गाइडलाइंस तय की है। इस गाइडलाइंस में भीड़भाड़ पर रोक लागू, स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने और नियम तोड़ने वालों पर सख्ती करने के निर्देश हैं। लेकिन गुरुवार को देश के चार राज्यों में जिस तरह से किसान सड़कों पर उतरे, उससे गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ती दिखाई दे रही है।
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