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हिंदवी स्वराज स्थापना दिवस: आज ही हुआ था छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक... याद करें उनके शौर्य को और संकल्प लें उनके अभियान को पूर्ण करने का

आज छत्रपति शिवाजी महाराज के जन्मदिवस पर हम सब संकल्प लें कि हिंदुस्तान के स्वर्णिम भविष्य के लिए शिवाजी महाराज की तरह ही संगठित होकर कार्य करेंगे.

Abhay Pratap
  • Jun 23 2021 10:13AM

बहुत कम लोगों को पता होगा आज के दिन की पावनता और पवित्रता. आज ही वो दिन है जब हिंदवी साम्राज्य के स्वप्न को ले कर एक महान हिन्दू शासक छत्रपति शिवाजी महराज का राज्याभिषेक हुआ था और मुगलों को उखाड़ फेंकने के लिए हिन्दुओ ने एक नए जोश से वार करना शुरू कर दिया था जिसका प्रतिफल ये रहा था की अत्याचार का दूसरा रूप औरंगज़ेब दक्षिण में ही दफन हो गया था  आज के पावन दिन को नकली और चाटुकार इतिहासकार किसी हालत में भी जनमानस में प्रसिद्ध नहीं होने देना चाहते थे क्योकि उनको खुद के बनाये तथाकथित धर्म निरपेक्षता के नकली सिद्धांतो को जीवित भी रखना था और अपनी बिकी कलम के लिए मिलने वाली स्याही को भी भीख में लेना था.

शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक होना यह केवल शिवाजी महाराज के विजय की बात नहीं है. काबूल-जाबूल पर आक्रमण हुआ तब से शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के समय तक इस देश के धर्म, संस्कृति व समाज का संरक्षण कर हिंदुराष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने के जो प्रयास चले थे, वे बार बार विफल हो रहे थे. राजा लड रहे थे, विभिन्न प्रकार की रणनीति का प्रयोग कर रहे थे, संत लोग समाज में एकता लाने के, उन को एकत्र रखने के, उनकी श्रद्धाओं को बनाये रखने के लिये अनेक प्रकार के प्रयोग चला रहे थे. कुछ तात्कालिक सफल हुए। कुछ पूर्ण विफल हुए. लेकन जो सफलता समाज को चाहिये थी वह कहीं दिख नहीं रही थी. इन सारे प्रयोगों के प्रयासों की अंतिम सफल परिणति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक है. यह केवल शिवाजी महाराज की विजय नहीं है. लडने वाले हिंदू राष्ट्र की अपने शत्रुओं पर विजय है.

आज ही के दिन ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को रायगढ़ के विशाल प्रांगण में राजे रजबाडों की सहभागिता तथा जीजा माता एवं शम्भाजी की उपस्थिति में शिवराज का राज्याभिषेक हुआ. इसके पीछे की एतिहासिक प्रष्ठभूमि के कारण यह एक गौरवपूर्ण क्षण था. मुहम्मद बिन कासिम सातवीं सदी में आक्रमण करने आया तब से लेकर १७ वीं सदी तक हम पददलित रहे. महिलाओं का अपमान तो आम बात थी. पराक्रम की कमी नहीं थी, किन्तु क्षमता होते हुए भी आत्मविश्वास विहीन समाज में उसका चिन्ह दिखाई नहीं देता था. छुटपुट प्रयास या बड़े प्रयास, यहाँ तक कि महाराणा प्रताप का पराक्रम भी यह दाग धो नहीं सका था. विजय नगर साम्राज्य एवं देवगिरी साम्राज्य भी अल्पकाल में लुप्त हो गए थे. निराशाजनक स्थिति थी. पराक्रम के वाबजूद कुंठा का भाव था.

काशी विश्वनाथ मंदिर उखाड फेंकने से व्यथित हुए गागा भट्ट महाराष्ट्र आकर शिवाजी से मिले और बताया कि मंदिरों की मूर्तियों से मस्जिदों की सीढियां बन रही हैं. आप राजा बनकर समाज को प्रेरणा देने दो. उत्तर से कवि भूषण आये, जिन्होंने औरंगजेब की नौकरी करते हुए भी कभी उसकी स्तुति नहीं गाई. उससे कहा आप स्तुति लायक नहीं. बहां से निकलकर दक्षिण में आये और शिवबा के पराक्रम पर काव्य रचा. और राज्याभिषेक के बाद इतिहास साक्षी है कि उससे प्रेरणा लेकर देश के अन्य भागों में भी सफल प्रयत्न हुए. राजस्थान में दुर्गादास राठौर ने कलह मिटाकर सब राजाओं को जोड़ा और राज्य कायम किया. छत्रसाल पिता की मृत्यु के बाद शिवराज से मिले और बाद में शिवाजी महाराज की प्रेरणा से बुंदेला राजा बने. आसाम में चक्रधर सिंह, कूच बिहार में सत्य सिंह इन सबके प्रेरणा स्त्रोत बने शिवाजी. प्रयत्न सबको जोडने का. निजी महत्वाकांक्षा का lesh मात्र भी नहीं. इसीलिए मिर्जा राजा जयसिंह को पत्र लिखा - चाहो तो आप राजा बन जाओ पर शत्रु की चाकरी मत करो.

क्षत्रपति शिवराय का एक ही प्रयास कि समाज का खोया आत्मविश्वास पुनः जागृत हो . शुद्ध मन से किया गया प्रयत्न सफल होता है, यही कारण है कि शिवाजी को ऐसे अद्भुत पराक्रमी साथी मिले. बेटे रायबा की शादी का निमंत्रण देने आये तानाजी, पर सिंहगढ़ जीतना पहले जरूरी मान जा पहुंचे युद्धभूमि में और बलिदान हो गए. शिवाजी के मुंह से निकला - गढ़ तो आया पर सिंह गया. बाजी प्रभू देशपांडे ने कहा जान भी चली जाए पर लडता रहूँगा. शीश कटा पर देह लड़ी थी, कोंडाना पर गाज गिरी थी. हजारों के साथ २० - २२ रणबांकुरे भिडे. सर बिहीन धड लडता रहा. बालाजी निम्बालकर, कान्होजी आंग्रे - पराक्रम की मालिका बैदनी नायक औरंगजेब के यहाँ की खबरें निकालकर लाते रहे. सब तुकाराम के भजन गाते.  स्वयं शिवाजी का आगरा से बापिस आना किसी चमत्कार से कम नहीं था. अफजल खान के सम्मुख शरण आने का नाटक रचा और उसे पहाड़ प्रतापगढ़ में लाए, जहां उसका वध किया. निजाम ने हिंदुओं को मारा, पुणे को जलाकर शहर पर गधों से हल चलबाया. बाद में कोंडदेव और जीजामाता की उपस्थिति में सोने का हल फिरा. बही पुणे आगे चलकर पेशवाओं की राजधानी बनी. शाइस्ता खान का प्रसंग भी समाज में आत्म विश्वास पैदा करने बाला हुआ.

उस समय हरेक जागीरदार की अपनी सेना हुआ करती थी. मनसबदार भी हजार दस हजार सेना रखते थे. शिवराज ने व्यवस्था बदली. सेना सब केन्द्र की, सिंहासन की, हिन्दवी स्वराज्य की. समुद्र में विजय दुर्ग, सिंधु दुर्ग बने. कैसे बने होंगे सोचकर हैरत होती है. सामान्य लोगों को साथ लेकर उन्हें तज्ञ बनाकर ये असंभव कार्य किये. चिपलुण में परशुराम मंदिर तोड़ा गया तो बहां जाकर छोटी लड़ाई लड़ी. बहां के शिलालेख में तारीख एवं प्रसंग अंकित है ! यह सब करते हुए भी और अधिक करने की चुनौती. क़ुतुब शाह से बीजापुर मिलने गए बहां येशाजी कंक ने उसके पहलवान को परास्त किया. पुणे के पास रानेगांव का जागीरदार पाटिल अत्याचारी था. एक महिला के साथ दुर्व्यवहार किया तो पकड़ मंगवाया. हाथ पाँव दोनों कटवा दिए. खंडोजी खोपडे के साथ भी यही किया. खिरकिणी नामक एक गुजरनी महल में दूध बेचने आती थी. एक बार सूर्यास्त के बाद दरबाजे बंद हो जाने के कारण रात को घर नहीं जा पाई. घर पर बीमार बच्चा अकेला था. ममता की मारी किसी प्रकार दीवार फांदकर घर पहुँच गई. शिवाजी को मालुम हुआ तो उसे बुलाया. उसकी ममता का तो सम्मान किया किन्तु उससे बह मार्ग भी पूछा जहां से बह गई थी. जब वो जा सकती है तो शत्रु भी उस मार्ग से आ सकता है. वहां आज भी खिरकिणी बुर्ज है ! इतनी सतर्क दृष्टि थी शिवाजी महाराज की.

राज्याभिषेक के समय भी यह स्मरण रहा कि किस विचार को लेकर कार्य कर रहे हैं. उसे शिव राज्याभिषेक नही कहा, हिन्दवी स्वराज्य कहा. उत्तर में बादशाह, दक्षिण में ५ सुलतान फिर भी यह राज्य बने यह श्री की इच्छा. समर्थ रामदास ने पत्र भेजा - शिवराज कैसा चलना, बोलना, निश्चय का महादेश, सबके लिए अवतार, श्रीमंत योगी, उपभोग शून्य स्वामी, म्लेच्छ संहारक. शिवराय ने आज्ञापत्र जारी किया - कर प्रणाली, शासन के कर्तव्य, गौहत्या बंदी, कम जमीन बाले के लिए कम कर, अधिक जमीन बाले के लिये अधिक कर. आज भी समाज भ्रष्टाचार, लालच, निराशा, पराक्रम और आत्मविश्वास के अभाव से जूझ रहा है. इसमें परिवर्तन की आवश्यकता है. पराजय का इतिहास दुहराया न जाए इसलिए इस दिन का स्मरण आवश्यक. १८५७ में यशस्वी योजना के अभाव के कारण सैनिकों में उठाव होता है किन्तु जन उठाव नही हो पाता. ब्रिटिश म्यूजियम में एक चित्र है. ध्वज स्तंभ पर जरीपट ध्वज उतर रहा था और अंग्रेज ध्वज चढ रहा था. चढाने और उतारने बाले दोनों ही हिन्दू थे. आज भी बही चक्र चल रहा है. शिवाजी के समान पराक्रम के लिए समाज संगठन आवश्यक है. आज छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक दिवस हिंदू साम्राज्य दवस पर हम सब संकल्प लें कि हिंदुस्तान के स्वर्णिम भविष्य के लिए शिवाजी महाराज की तरह ही संगठित होकर कार्य करेंगे.

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