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Sita Navami 2025: जनक की भूमिजा से लेकर वनवास की नायिका तक... श्रीराम की अर्धांगिनी से कहीं बढ़कर थीं माता सीता, जानें कब है उस देवी का प्राकट्य दिवस

Janaki Navami 2025: मौन रहकर भी इतिहास बदलने वाली माँ सीता, जन्मोत्सव पर जानें उस देवी का संघर्ष, जिसने रामायण को नई दिशा दी

Ravi Rohan
  • May 2 2025 12:16PM

जब भी रामायण का ज़िक्र होता है, हमारी दृष्टि अक्सर श्रीराम, लक्ष्मण या हनुमान जैसे यशस्वी पुरुष पात्रों पर जाती है। मगर क्या आपने कभी उस शक्ति को महसूस किया है, जो बिना अस्त्र-शस्त्र उठाए, बिना ऊँचे स्वर में कुछ कहे, पूरे युग की धारा मोड़ देती है? वो शक्ति थीं- माता सीता।

सीता नवमी, वो पावन अवसर है जब धरती पर धैर्य, मर्यादा और शक्ति का अवतरण हुआ था। यह पर्व इस वर्ष 7 मई 2025 को मनाया जाएगा, वैशाख शुक्ल नवमी के दिन।

कौन थीं माता सीता?

मिथिला के राजा जनक जब हल से भूमि जोत रहे थे, तब धरती से प्रकट हुई एक दिव्य कन्या—यही थीं भूमिजा, जिन्हें हम जनकनंदिनी जानकी और माता सीता के नाम से पूजते हैं। माना जाता है कि माता सीता देवी लक्ष्मी का अवतार थीं और श्रीराम की अर्धांगिनी बनीं। परंतु वे केवल रानी नहीं थीं- वे आत्मबल, करुणा और आदर्शों की मूर्ति थीं।

आज के युग में क्यों महत्वपूर्ण है सीता नवमी?

इस युग में, जहां शक्ति को केवल बाहरी रूप से मापा जाता है, वहां माता सीता हमें बताती हैं कि असली बल संयम, सहिष्णुता और आंतरिक दृढ़ता में होता है। उन्होंने राजसी वैभव से लेकर वनवास की पीड़ा, बंदिनी जीवन से लेकर त्याग की चरम सीमा तक, हर भूमिका निभाई- बिना किसी शोर-शराबे के, पर पूरी गरिमा और आत्मबल के साथ।

सीता का जीवन: आज की नारी के लिए मार्गदर्शन

माता सीता ने हमें सिखाया कि शक्ति का अर्थ केवल प्रतिकार नहीं, बल्कि सहनशीलता में भी छिपा होता है। उनका जीवन आज की स्त्रियों के लिए एक प्रेरणास्रोत है- कैसे बिना हथियार उठाए, केवल चरित्र और संकल्प से पूरी दुनिया की सोच बदली जा सकती है।

सीता नवमी सिर्फ जन्मोत्सव नहीं है, यह एक ऐसा दिन है जो हर युग को ये याद दिलाता है कि मौन में भी शक्ति होती है, और सहनशीलता में भी क्रांति। माता सीता उस आदर्श का नाम है, जिसने एक स्त्री की भूमिका को नई ऊंचाई दी—संघर्ष में अडिग, और मर्यादा में अटल।


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