कल 19 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में वो घोषणा की, जिसकी उम्मीद कोई नहीं कर रहा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने चौंकाने वाला फैसला लेते हुए तीनों कृषि कानूनों (Farm Laws Repealed) को वापस लेने की घोषणा कर दी. पीएम मोदी के इस एलान से न सिर्फ उनके समर्थक बल्कि किसान संगठन तथा इस आन्दोलन की आड़ में वोटबैंक की फसल काटने की योजना में लगे विपक्षी दल भी हैरान रह गए.
जो लोग कृषि कानूनों के समर्थन में पीएम मोदी के साथ चट्टान की तरह खड़े थे, इस फैसले के बाद उन्होंने सवाल उठाए कि इसके बाद इसी तरह अराजक भीड़ सडक पर उतरकर कश्मीर में धारा 370 की बहाली तथा CAA कानून को वापस लेने की मांग भी करेगी, क्या तब भी मोदी सरकार उनकी मांग मानेगी? ये सवाल उठना लाजिमी भी है और सुदर्शन न्यूज भी ये सवाल उठा रहा है.
ये सवाल उस समय और ज्वलंत होते प्रतीत हुए जब जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी (Maulana Arshad Madani) ने कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले पर टिप्पणी की. मौलाना मदनी ने किसानों को बधाई देते हुए कहा कि इसके लिए महान बलिदान दिया गया. किसानों को बांटने की साजिशें भी रची गईं, लेकिन देश के किसान अपने रुख पर अडिग रहे. इसके साथ ही मौलाना अरशद मदनी ने सरकार से कृषि कानूनों की तरह ही नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को भी वापस लेने की मांग की है.
मौलाना अरशद मदनी ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा कि एक बार फिर सच सामने आया है कि अगर किसी जायज मकसद के लिए ईमानदारी और धैर्य से आंदोलन चलाया जाए तो उसमें सफलता जरूर मिलती है. यह निर्विवाद तथ्य है कि किसानों ने सीएए के खिलाफ आंदोलन के माध्यम से इतना मजबूत आंदोलन पाया जब महिलाएं भी न्याय के लिए दिन रात सड़कों पर बैठी रहीं. आंदोलन में शामिल होने वालों पर घोर अत्याचार किया गया और कई झूठे आरोपों के तहत गिरफ्तार किए गए, लेकिन आंदोलन को तोड़ा या दबाया नहीं जा सका.
मौलाना मदनी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि देस की संरचना लोकतांत्रिक है, इसलिए यह अपनी जगह पर सही है. इसलिए अब प्रधानमंत्री को उन कानूनों पर ध्यान देना चाहिए जो मुसलमानों के संबंध में लाए गए हैं. कृषि कानूनों की तरह ही नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को भी वापस लेना चाहिए.