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Gopashtami 2023: गोपाष्टमी मनाने की प्रथा कैसे शुरू हुई और क्यों मनाई जाती है?

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी मनाई जाती है। अब आप सोच रहें होगे कि ये गोपाष्टमी क्या है। तो चलिए आज की खबर में आप जान पाएंगे कि गोपाष्टमी का अर्थ क्या है, इसका क्या महत्व है और कब से यह पर्व मानाया जा रहा है।

sonam gurung
  • Nov 20 2023 5:25PM
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी मनाई जाती है। अब आप सोच रहें होगे कि ये गोपाष्टमी क्या है। तो चलिए आज की खबर में आप जान पाएंगे कि गोपाष्टमी का अर्थ क्या है, इसका क्या महत्व है और कब से यह पर्व मानाया जा रहा है। शास्त्रों में कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन गायों को भोजन खिलाता है, उनकी सेवा करता है तथा सायं काल में गायों का पंचोपचार विधि से पूजन करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। आज के दिन अगर श्यामा गाय को भोजन कराएं तो और भी अच्छा होता है।
 
आपको बता दें कि त्रेतायुग में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी तक भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था और अष्टमी को यानि आज के दिन इन्द्र देव का मानभंग हुआ जिसके बाद उन्होंने क्षमा माँगी। उसी दिन कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और तब से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोप अष्टमी के रूप में ख्याति मिली। गोपाष्टमी के दिन श्री कृष्ण के ग्वाल रूप की पूजा का विधान है। साथ ही, इस दिन गाय, उसके बछड़े और गैय्या चराने वाले ग्वालों की पूजा भी होती है। इस साल गोपाष्टमी 20 नवंबर, दिन सोमवार को मनाई जाएगी। मान्यता है कि गोपाष्टमी के दिन गौ सेवा करने का बहुत महत्व होता है और गौ सेवा करने से कई प्रकार के लाभ मिलते हैं। 

गोपाष्टमी के अवसर पर गाय की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि गाय में समस्त देवी-देवताओं का वास होता है। वहीं, शास्त्रों में बताया गया है कि गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा एवं गौ सेवा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में सुख-समृद्धि और संपन्नता का वास स्थापित होता है। गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा करने से श्री कृष्ण भी प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं। ऐसा माना जाता है कि गोपाष्टमी के दिन गौ पूजन एवं सेवा से श्री कृष्ण का साथ प्राप्त होता है। श्री कृष्ण की कृपा से घर में मां लक्ष्मी का निवास होता है और घर में मौजूद हर प्रकार का संकट दूर हो जाता है। 

लेकिन इस दिन बछड़े के बिना गाय की पूजा करना निषेध माना गया है, दरअसल गोपाष्टमी के दिन बछड़े की पूजा करने से संतान सुख प्राप्त होता है और संतान पर आया हर संकट टल जाता है। इस दिन गाय को बछड़े सहित पूजने से मां और संतान की हर बुरी नजर से रक्षा होती है। 
                                   
श्रीकृष्ण ने पहली बार इस दिन चराई थी गाय

पौरणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने गोपाष्टमी से ही गौ चरण लीला की शुरुआत की थी। जब भगवान कृष्ण 6 वर्ष के हुए थे, तब उन्होंने अपनी मां यशोदा से कहा था कि मां अब हम बड़े हो गए हैं इसलिए आज से बछड़ों को नहीं बल्कि गायों को चराने जाएंगे। मैया यशोदा ने कहा कि ठीक है इसके लिए तुम पहले अपने बाबा से पूछ लेना। यशोदा मैया के इतने कहने पर झट से कृष्णजी नंद बाबा से पूछने चले गए। लेकिन नंद बाबा ने कहा कि अभी तुम छोटे ही हो इसलिए बछड़ों को चराओ लेकिन बाल गोपाल अपनी बात पर अड़े रहे। बालक की जिद को देखते हुए नंद बाबा ने कहा, अच्छा ठीक है… जाओ पंडितजी को बुला लाओ, गोचारण का मुहूर्त निकलवा लेंगे। कृष्ण भागे-भागे पंडितजी के पास गए और बोले कि पंडितजी-पंडितजी जल्दी से गायों को चराने का मुहूर्त निकाल दो… मैं आपको खूब सारा माखन दूंगा और इस बात पर पंडितजी को कृष्ण  की बात पर हंसी आ गई और कहा कि चलो नंद बाबा के पास चलते हैं। पंडितजी पंचांग लेकर कृष्णजी के साथ नंद बाबा के पास चले गए। पंडितजी ने काफी देर पंचांग देखा और उंगलियों पर कुछ गणना करने लगे लेकिन काफी देर तक कुछ बोले नहीं। नंदबाबा बोले पंडितजी आखिर हुआ क्या है… आप काफी देर से कुछ बोल नहीं रहे। पंडितजी बोले कि मैं क्या बोलूं… गायों को चराने के लिए केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है और इसके बाद पूरे साल तक कोई मुहूर्त नहीं है। पंडितजी की केवल यही बात सुनकर नटकट कृष्ण भागकर गए और गायों को चराने के लिए निकल पड़े। कृष्णजी ने जिस दिन से गाय चराना शुरू किया था, उस दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी, इसलिए इस दिन गोपाष्टमी का पूरे ब्रज में उत्सव मनाया जाता है और गौ वंश की पूजा की जाती है।

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