इनपुट-रवि शर्मा,लखनऊ
प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों द्वारा निकाले गए लगभग ढाई करोड़ स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर की उच्च दरों के मामले में अभी भी असमंजस बना हुआ है। निजी घराने कहीं नाराज ना हो जाए इसलिए आरईसी ने गोलमोल जवाब देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है।
स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर की उच्च दरों पर भारत सरकार का यूपीपीसीएल को गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि बेंच मार्किंग की दरें 6 हजार प्रति मीटर है। यदि निजी घरानों की दरें टेंडर बेंच मार्क की दर से ज्यादा है तो दूसरे राज्यों से तुलना कर स्वता: निर्णय लें। इस मामले में केंद्र सरकार ने अपने जवाब में खुद माना कि बेंचमार्किंग की दरें 6 हज़ार प्रति मीटर आरडीएसएस योजना में तय की गई थी लेकिन अब निजी घरानों द्वारा 10 हज़ार प्रति मीटर से ज्यादा टेंडर भरे हुए हैं। निजी घरानों के टेंडर को निरस्त करने का आदेश देने पर सभी के पसीने छूट रहे हैं।
25 हज़ार करोड़ की लागत के उच्च दरों वाले टेंडर पर पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक की तरफ से दिसंबर के आखिरी सप्ताह में केंद्र सरकार ऊर्जा मंत्रालय के अधीन, रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कारपोरेशन लिमिटेड (आरईसी) को यह प्रस्ताव भेजा था कि प्रदेश में मैसर्स डीएमआर अडानी वा इन टेलीमार्ट की टेंडर की दरें भारत सरकार द्वारा बनाई गई स्टैंडर्ड बिलिंग गाइडलाइन में दर्ज दरों से निजी घरानों के टेंडर में 6 हज़ार से 48 से 55 परसेंट अधिक आई है। ऐसे में आरईसी यह बताएं उच्च दरों वाले टेंडर को निरस्त किया जाए अथवा ऐस्टीमेटेड कॉस्ट पर लिया जाए। आरईसी की तरफ से पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक को जो जवाब आया है उसमें आरईसी ने कहा कि जब वितरण क्षेत्र सुधार योजना स्कीम बनाई जा रही थी उस समय जो स्टैंडर्ड दरें तय की गई थी वह 6 हजार थी, लेकिन वर्तमान में प्रदेश में जो टेंडर की उच्च दर आई हैं उसे स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर की। अन्य राज्यों की दरों से मिलान करने के बाद प्रदेश की बिजली कंपनियां निर्णय ले।
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा, एक तरफ आरईसी मान रहा है कि बेंचमार्किंग दर 6 हज़ार थी लेकिन प्रदेश में निकाले गए टेंडर के 10हज़ार प्रति मीटर वाले टेंडर को निरस्त करने का आदेश देने पर ऊर्जा मंत्रालय के पसीने क्यूं छूट रहे हैं। शायद इसलिए क्योंकि उन्हें भी पता है देश के बड़े निजी घरानों का टेंडर है। ऐसे में पूरे मामले को प्रदेश सरकार अथवा केंद्र सरकार को सीबीआई अथवा सीएजी की ऑडिट से जनहित में जांच करानी चाहिए।