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आखिर सोशल मीडिया में क्यों ट्रेंड हो रहा #आर्टिकल30हटाओ ?

लगातर उठ रही है मांग इस धारा के खिलाफ.. जानिये ऐसा क्या है इस धारा में ?

राहुल पाण्डेय
  • May 28 2020 7:26PM

ये मांग नई नहीं है, इस मांग का इतिहास काफी पुराना है लेकिन उसको ठीक से धार नहीं मिल पाई थी इस से पहले क्योकि हर किसी को वो समय याद है जब हिन्दू और हिंदुत्व का नाम लेते ही सांप्रदायिक , दंगाई और न जाने क्या क्या आरोप लग जाया करता था. उधर सिर्फ वर्ग विशेष की बात करना ही भाईचारा और देशभक्ति का प्रतीक माना जाता था. हालात तो यहाँ तक बन गये थे कि भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री ने ताव से मीडिया के आगे कहा था कि इस देश के संसाधनो पर पहला अधिकार मुसलमानो का है. 

लेकिन देश के युवाओं ने समय की मांग को समझा और भविष्य को सुधारने का फैसला कर लिया है. भविष्य को सुधारने के लिए इन युवाओं ने सुधार की शुरुआत इतिहास से की है.  सोशल मीडिया में उठी आर्टिकल 30 हटाने की मांग जानिए क्या है आर्टिकल 30 . भारत के संविधान का अनुच्छेद 30 . सोशल मीडिया में उठी आवाज के अनुसार ये बहुसंख्यक समाज से धार्मिक भेदभाव है. चल रहे विरोध के अनुसार आर्टिकल 30(1) में लिखा है:- भाषा या धर्म के आधार पर जो भी अल्पसंख्यक हैं, उन्हें अपनी मान्यता के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें चलाने का अधिकार होगा.

इसी के साथ आर्टिकल 30(1A) में लिखा है:- यदि किसी अल्पसंख्यक समुदाय के द्वारा स्थापित और संचालित शिक्षण संस्थान का अधिग्रहण राज्य द्वारा ज़रूरी हो जाता है, ऐसी स्थिति में राज्य, अधिग्रहण के एवज में देने वाला मुआवजा ऐसे तय करेगी कि अल्पसंख्यकों को मिले अधिकार में रत्ती भर का भी फ़र्क न आए... साथ ही आर्टिकल 30(2) में दर्ज है:- शैक्षणिक संस्थाओं को सहायता देने के दौरान, राज्य किसी भी संस्थान के साथ इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगा कि वो धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के अधीन संचालित किया जाता है.

इस पूरे मामले एम्या निकाले जा रहे सारांश के अनुसार विरोधो के स्वर में ये शब्द आ रहे हैं कि क्या बहुसंख्यक के लिए कोई प्रावधान नही? धर्मनिरपेक्ष देश के अंदर बहुसंख्यक समुदाय को भी इसी तर्ज पर अपनी पसंद के शिक्षण संस्थान चलाने की इजाज़त मिलनी चाहिए थी। आर्टिकल-30 के चलते देश के ज्यादातर हिस्सों में अल्पसंख्यक समुदायों को अपना संस्थान चलाने की पूरी स्वायत्तता मिली हुई है और उन्हें सरकारी दखलंदाजी नहीं झेलनी पड़ती।

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