पिछले कई दिनों से अपने 'जिद्द की मांग' लिए बैठे तथाकथित किसानो को सुप्रीम कोर्ट की सुप्रीम फटकार लगने के बाद किसान संगठनों का मुँह उतरा हुआ है. देश के अलग अलग शहरों में किसान महापंचायते करके वहां के लोगो को अलग अलग प्रकार की समस्याए देने के बाद अब किसान दिल्ली में अपना डेरा जमाने की आधिकारिक अनुमति लेने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, लेकिन कोर्ट ने उनकी मांग को खारिज करके उल्टा, उन्हें ही खरी खोटी सुना डाली।
कोर्ट ने पूछा था- हाईवे कैसे ब्लॉक कर सकते हैं?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भी कहा था कि प्रदर्शनकारी हर रोज हाईवे को कैसे ब्लॉक कर सकते हैं? अधिकारियों की ड्यूटी है कि वे कोर्ट द्वारा तय की गई व्यवस्था को लागू कराएं। केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की इजाजत दे दी है कि वह किसान संगठनों को इस मामले में पक्षकार बनाए। कोर्ट ने कहा कि जो भी समस्या है, उसका समाधान जूडिशियल फोरम या संसदीय चर्चा से निकाला जा सकता है। बता दें नोएडा की एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि दिल्ली बॉर्डर ब्लॉक किए जाने से नोएडा से दिल्ली पहुंचने में 20 मिनट के बजाय दो घंटे लगते हैं और यह एक बुरे सपने की तरह है।
कोर्ट की इसी तल्ख़-टिप्पणी पर टिकैत ने एक चैनल को इंटरव्यू देते हुए कहा कि -" तो क्या पड़ोसी के घर में जा के बैठ जाए.....
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का जिक्र करते हुए रिपोर्टर ने किसान नेता राकेश टिकैत से सवाल किया, “सुप्रीम कोर्ट की ओर से जो कहा गया, आपको नहीं लगता कि वह आपके लिए भी संकेत है, क्योंकि रास्ते इतने दिनों से बंद हैं और लोगों को भी परेशानी हो रही है।” इसका जवाब देते हुए राकेश टिकैत ने कहा, “हम तो नहीं बैठे। सड़क तो चलने के लिए होती है।”
राकेश टिकैत ने अपने बयान में आगे कहा, “कहां बैठें हम? सड़क चलने के लिए होती है और किसी ने हमारा रास्ता रोक दिया है तो हम कहां पर बैठें। किसी के पड़ोस के घर में बैठें क्या? रास्ता किसने रोका है, बैरिकेटिंग किसने की है। दिल्ली पुलिस ने रोका हुआ है हमारा रास्ता। हमने कहां रोका हुआ है?”