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गुप्त मतदान संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण संकेत : सुप्रीम कोर्ट

यह मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले से उत्पन्न हुआ, जिसने 25 अक्टूबर 2018 को प्रयागराज जिला पंचायत की बैठक की मिनटों को पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के तहत रद्द कर दिया था कि कुछ सदस्यों ने मतपत्र की गोपनीयता के नियम का उल्लंघन किया था।

Abhishek Lohia
  • Jun 22 2020 2:34PM

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गुप्त मतदान का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण संकेत है। न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति, संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति,कृष्ण मुरारी की पीठ ने मामले में लक्ष्मी सिंह और अन्य बनाम रेखा सिंह और अन्य मामले में कहा, "यह देखा जाना चाहिए कि चुनाव कानून के मूलभूत सिद्धांतों में से एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के रखरखाव से संबंधित है, जो चुनाव की शुद्धता को सुनिश्चित करता है। मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण संकेत है जिसका उद्देश्य लक्ष्य तक पहुंचना है।"

यह मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले से उत्पन्न हुआ, जिसने 25 अक्टूबर 2018 को प्रयागराज जिला पंचायत की बैठक की मिनटों को पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के तहत रद्द कर दिया था कि कुछ सदस्यों ने मतपत्र की गोपनीयता के नियम का उल्लंघन किया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान वोट का खुलासा राज्य में उसको नियंत्रित करने वाली वैधानिक योजना का उल्लंघन था और इससे चुनाव की पवित्रता प्रभावित होगी।

सुप्रीम कोर्ट में अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत एक पूर्ण सिद्धांत नहीं है और विशेषाधिकार की स्वैच्छिक छूट की अनुमति है।उन्होंने जनप्रतिधित्व अधिनियम की धारा 94 में यह उल्लेख किया कि मतदाता स्वेच्छा से मतपत्र की गोपनीयता को हटाने के लिए चुन सकता है और तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने गलत ठहराया है कि स्वैच्छिक छूट सिद्धांत जिला पंचायत के अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान पर सदस्यों के संबंध में मामले में लागू नहीं हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट की दलील गोपनीयता की स्वैच्छिक छूट और तत्काल मामले में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के इसके प्रभाव के संबंध में "कुछ हद तक खामी" वाली थी। फिर भी, दोनों पक्षों की सहमति के आधार पर, पीठ ने आदेश दिया कि मूल प्रस्ताव पर गुप्त मतदान के माध्यम से पुनः मतदान जिला न्यायाधीश, इलाहाबाद या उनके नामित अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, इलाहाबाद की अध्यक्षता में निर्णय की तिथि से दो महीने की अवधि के भीतर जिला न्यायाधीश द्वारा निर्धारित तिथि और समय पर कराया जा सकता है।

पीठ ने कहा, "यह हमारे विचार में, वर्तमान मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स में ये एक उचित दिशा- निर्देश है, जो संबंधित पक्ष और पक्षों का रुख साफ करता है।"

 

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