वैशाख शुक्ल नवमी तिथि को मनाया जाने वाला सीता नवमी पर्व नारी शक्ति, मर्यादा और त्याग की प्रतीक देवी सीता के प्राकट्य का पावन दिन है। इस वर्ष यह पर्व 6 मई 2025 को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। यह व्रत खास तौर पर सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने वैवाहिक जीवन की सुख-शांति और पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने और माता जानकी को प्रिय भोग अर्पित करने से जीवन से दरिद्रता, क्लेश और वैवाहिक विघ्न दूर होते हैं। कहा जाता है कि माता सीता की कृपा से घर में हमेशा अन्न, धन और शांति का वास होता है।
देवी सीता को चढ़ाएं ये विशेष भोग
केसरिया खीर – चावल और केसर से बनी मीठी खीर मां जानकी को अत्यंत प्रिय मानी जाती है।
मखाने की खीर – उपवास में भी उपयोगी यह खीर समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
नारियल लड्डू – पवित्रता के प्रतीक नारियल से बने लड्डू से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पंजीरी – यह पारंपरिक प्रसाद संतान सुख और धन-धान्य के लिए अर्पित किया जाता है।
फल व मेवे – माता को ताजे फल व सूखे मेवे अर्पण करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पूजा विधि का संक्षेप विवरण
-सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें
-भगवान राम और माता सीता को पीले वस्त्र पहनाएं
-दीप, धूप, पुष्प और रोली से पूजन करें
-सीता चरित्र या रामायण का पाठ करें
-अंत में आरती करके प्रसाद का वितरण करें
व्रती महिलाएं फलाहार कर सकती हैं और संध्या के बाद व्रत पूर्ण करती हैं। मान्यता है कि यह व्रत विवाह में सामंजस्य, संतान सौभाग्य और कुल की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
पौराणिक संदर्भ: धरती से प्रकट हुई थीं जानकी
कथा के अनुसार, जब मिथिला के राजा जनक खेत की जुताई कर रहे थे, तब हल की नोक से एक बालिका पृथ्वी से प्रकट हुईं। वही बालिका देवी सीता थीं। इन्हें 'भूमिपुत्री' और 'जानकी' के नाम से जाना गया। उनका जीवन तप, धर्म और नारी गरिमा की अद्वितीय मिसाल बना।
राम नवमी और सीता नवमी में अंतर
हालांकि दोनों पर्व नवमी तिथि को पड़ते हैं, लेकिन भाव और उद्देश्य अलग हैं। राम नवमी भगवान श्रीराम के जन्म की तिथि है, जबकि सीता नवमी देवी सीता के प्राकट्य को समर्पित है। विशेषकर बिहार, मिथिला, पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य भारत के क्षेत्रों में यह पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।