जब ये चर्चा निर्धारित की गई तब ये माना जा रहा था कि सम्भवतः इस बातचीत का केंद्र देश के अंदर के मामलों के इर्द गिर्द घूमेगा लेकिन जैसे जैसे इस मीटिंग का मंथन निष्कर्ष सामने आया तो इसका अंतिम परिणाम वो रहा जो कम से कम धर्मनिरपेक्ष समूह के लिए आपेक्षित नही था और न ही वामपंथी तत्वों के लिए.
ये चर्चा थी भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की चर्चो के पादरियों के साथ. इसमें वो तमाम प्रमुख पादरियों की मौजूदगी थी जो कैथोलिक विचारधारा के चर्चो का प्रतिनिधित्व करते हैं. मुलाकात का स्थल देश की राजधानी दिल्ली था और इस मुलाकात का संयोजन मिजोरम के राज्यपाल P S श्रीधरन पिल्लई ने किया था.
यद्दपि प्रधानमन्त्री मोदी का इस मुलाक़ात के पीछे का मुख्य उद्देश सामाजिक समरसता लाना और देश में बन्धुत्व को बढ़ावा देना था लेकिन यहाँ पर चर्चो के प्रतिनिधियों ने अपने एजेंडे का मुख्य उद्देश कुछ और ही रखा. माना ये भी जा रहा था कि इस मुलाक़ात के बाद धर्मांतरण आदि पर लगाम लगने की दिशा में सार्थक प्रयास होंगे.
लेकिन आखिरकार बन्धुत्व की सोच रखने वालों, वामपंथी विचारधारा के पोषको को निराशा हाथ लगी और प्रधानमन्त्री मोदी के साथ हुई मीटिंग से बाहर निकल कर पादरियों ने मीडिया को बताया कि उन्होंने भारत के प्रधानमन्त्री से ये मांग की है कि वो पोप फ्रांसिस को भारत आने का शासकीय निमन्त्रण दें.
ये वही पोप हैं जो अभी कुछ समय पहले ब्राजील की पोर्न अदाकारा के अश्लील फोटो पर अपने इन्स्टाग्राम एकाऊंट से LIKE कर के दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बने थे लेकिन भारत के चर्च मुखियाओं की उनके प्रति अधीरता देख कर कहीं से नही लगा कि उन पर पोप फ्रांसिस के इन कार्यो का कोई नकारात्मक असर हुआ हो.
वर्ष 2018 में पोप ने म्यन्मार और बंगलादेश का दौरा किया था जब वो रोहिंग्याओं के बीच में अपनी विचारधारा ले कर गए थे. उस समय भी भारत के तमाम प्रमुख चर्चो ने उनके भारत में आने की जबर्दस्त मांग की थी पर वो भारत नहीं आये. एक बार फिर से उन्हें भारत में बुलाने की मांग ने मोदी से मुलाकात के बाद जोर पकड़ा है.