आज़ादी के ठेकेदारों ने जिस वीर के बारें में नहीं बताया होगा, बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों ने जिसे हर पल छिपाने के साथ ही सदा के लिए मिटाने की कोशिश की ,, उन लाखों सशत्र क्रांतिवीरों में से एक थे भगिनी निवेदिता जी. आज भगिनी निवेदिता जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गाथा को समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.
भगिनी निवेदिता जी का मूल नाम 'मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल' था. वे एक अंग्रेज-आइरिश सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, शिक्षक एवं स्वामी विवेकानन्द जी की शिष्या थीं. भारत में आज भी जिन विदेशियों पर गर्व किया जाता है उनमें भगिनी निवेदिता जी का नाम पहली पंक्ति में आता है, जिन्होंने न केवल भारत की स्वाधीनता आन्दोलन की लड़ाई लड़ने वाले देशभक्तों की खुलेआम मदद की बल्कि महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.
भगिनी निवेदिता जी का भारत से परिचय स्वामी विवेकानन्द जी के जरिए हुआ. स्वामी विवेकानन्द जी के आकर्षक व्यक्तित्व, निरहंकारी स्वभाव और भाषण शैली से वह इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने न केवल रामकृष्ण परमहंस जी के इस महान शिष्य को अपना आध्यात्मिक गुरु बना लिया बल्कि भारत को अपनी कर्मभूमि भी बनाया.
मार्गरेट एलिजाबेथ नोबेल जी का जन्म 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैंड में हुआ था. शुरूआती जीवन में उन्होंने कला और संगीत का अच्छा ज्ञान हासिल किया. नोबेल ने पेशे के रूप में शिक्षा क्षेत्र को अपनाया. नोबेल के जीवन में निर्णायक मोड़ 1895 में उस समय आया जब लंदन में उनकी स्वामी विवेकानंद जी से मुलाकात हुई. स्वामी विवेकानंद जी के उदात्त दृष्टिकोण, वीरोचित व्यवहार और स्नेहाकर्षण ने निवेदिता जी के मन में यह बात पूरी तरह बिठा दी कि भारत ही उनकी वास्तविक कर्मभूमि है. इसके तीन साल बाद वह भारत आ गईं और भगिनी निवेदिता जी के नाम से पहचानी गईं.
बता दें कि स्वामी विवेकानंद जी ने नोबेल को 25 मार्च 1898 को दीक्षा देकर मानव मात्र के प्रति भगवान बुद्ध के करुणा के पथ पर चलने की प्रेरणा दी. दीक्षा देते हुए स्वामी विवेकानंद जी ने अपने प्रेरणाप्रद शब्दों में उनसे कहा- जाओ और उस महान व्यक्ति का अनुसरण करो जिसने 500 बार जन्म लेकर अपना जीवन लोककल्याण के लिए समर्पित किया और फिर बुद्धत्व प्राप्त किया. दीक्षा के समय स्वामी विवेकानंद जी ने उन्हें नया नाम निवेदिता दिया और बाद में वह पूरे देश में इसी नाम से विख्यात हुईं.
भगिनी निवेदिता जी कुछ समय अपने गुरु स्वामी विवेकानंद जी के साथ भारत भ्रमण करने के बाद अंतत: कलकत्ता में बस गईं. अपने गुरु की प्रेरणा से उन्होंने कलकत्ता में लड़कियों के लिए स्कूल खोला. निवेदिता जी स्कूल का उद्घाटन रामकृष्ण परमहंस जी की जीवनसंगिनी मां शारदा ने किया था. मां शारदा ने सदैव भगिनी निवेदिता जी को अपनी पुत्री की तरह स्नेह दिया और बालिका शिक्षा के उनके प्रयासों को हमेशा प्रोत्साहित किया.
बता दें कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बांग्ला विभाग के पूर्व अध्यक्ष अमरनाथ गांगुली जी ने कहा कि मार्गरेट नोबेल को स्वामी विवेकानंद जी ने निवेदिता जी नाम दिया था. इसके दो अर्थ हो सकते हैं एक तो ऐसी महिला जिसने अपने गुरु के चरणों में अपना जीवन अर्पित कर दिया, जबकि दूसरा अर्थ निवेदिता जी पर ज्यादा सही बैठता है कि एक ऐसी महिला जिन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया.
दरअसल, मार्गरेट के पिता सैमुअल का देहांत 1877 को हुआ, उस समु भगिनी केवल 10 साल की थी, तभी मार्गरेट की सारी जिम्मेदारिय उनकी नानी ने उठाई. मार्गरेट ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लन्दन के चर्च बोर्डिंग स्कूल से प्राप्त की. बाद में वे और उनकी बहन हैलिफैक्स कॉलेज में पढने लगे. उस कॉलेज की प्रधानाध्यापिका ने उन्हें जीवन में उपयोगी कई महत्वपूर्ण बातो एवम बलिदान के बारे में सिखाया. निवेदिता कई विषयों का अभ्यास करती थी, जिनमे कला, म्यूजिक, फिजिक्स, साहित्य भी शामिल है. वे 17 साल की उम्र से ही बच्चो को पढ़ाने लगी.
गांगुली जी ने कहा कि सिस्टर निवेदिता जी में एक आग थी और स्वामी विवेकानंद जी ने उस आग को पहचाना. निवेदिता जी अपने गुरु की प्रेरणा से स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में उस समय उतरीं जब समाज के संभ्रांत लोग भी अपनी लड़कियों को स्कूल भेजना पसंद नहीं करते थे. ऐसे समाज में स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देना निवेदिता जी जैसी जीवट महिला के प्रयासों से ही संभव हो सका. कलकत्ता प्रवास के दौरान भगिनी निवेदिता जी के संपर्क में उस दौर के सभी प्रमुख लोग आये. उनके साथ संपर्क रखने वाले प्रमुख लोगों में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी, वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु जी, शिल्पकार हैमेल जी तथा अवनीन्द्रनाथ ठाकुर जी और चित्रकार नंदलाल बोस जी शामिल हैं.
भगिनी निवेदिता जी भारत में स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों का समर्थन किया और उन्हें सहयोग दिया. भारत प्रेमी भगिनी निवेदिता जी दुर्गापूजा की छुट्टियों में भ्रमण के लिए दार्जीलिंग गई थीं. लेकिन वहां उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और अंत में 13 अक्टूबर 1911 को 44 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. दार्जीलिंग में ही हिन्दू रीति से उनका अन्तिम संस्कार किया गया.आज भगिनी निवेदिता जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गाथा को समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.