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14 जून : बलिदान दिवस भाई मणी सिंह जी... अंग अंग काटते रहे मुगल, लेकिन नहीं बने “मुसलमान”

आज बलिदान के उस महामूर्ति को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन करते हुए उनके गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.

Sumant Kashyap
  • Jun 14 2024 8:38AM

इनकी चर्चा करते तो खतरे में पड़ जाते उनके स्वघोषित धर्मनिरपेक्षता के नकली सिद्धांत. इनके बारे में बताते तो उनके आका हो जाते नाराज जिनकी चाटुकारिता के उन्हें पैसे मिलते थे. इनका सच दिखाते तो इतिहास काली स्याही का नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता. इनका जिक्र करते तो समाज मे न तो लव जिहाद होता और न ही धर्मांतरण और ये सब न होता तो उनकी दुकानदारी न चलती. भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकारो के किये पाप का नतीजा है कि धर्म के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले भाई मणी सिंह जी का आज बलिदान दिवस है जिसे बहुत कम भारतीय जानते हैं.

भाई मणि सिंह जी के बचपन का नाम 'मणि राम' था. उनका जन्म 7 अप्रैल 1644 को अलीपुर उत्तरी में एक राजपूत परिवार मे हुआ था जो सम्प्रति पाकिस्तान के मुजफ्फरगढ़ जिले में है. उनके पिता का नाम माई दास जी तथा माता का नाम मधरी बाई था. वे गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन के साथी थे.1699 में जब गुरुजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी तब 'सिख' धर्म निभाने की प्रतिज्ञा ली थी. इसके तुरन्त बाद गुरुजी ने उन्हें अमृतसर जाकर हरमंदिर साहब की व्यवस्था देखने के लिये नियुक्त कर दिया.

इतिहास पढ़ने से पता चलता है कि भाई मणी सिंह जी के परिवार को गुरुघर से कितना प्यार और लगावा था. भाई मणी सिंह जी के 12 भाई हुए जिनमें 12 के 12 की बलिदान हुई, 9 पुत्र हुए 9 के 9 पुत्र बलिदान हुए. इन्हीं पुत्रों में से एक पुत्र थे भाई बचित्र सिंह जी जिन्होंने नागणी बरछे से हाथी का मुकाबला किया था. दूसरा पुत्र उदय सिंह जी जो केसरी चंद का सिर काट कर लाया था. 14 पौत्र भी बलिदान, भाई मनी सिंह जी के 13 भतीजे बलिदान और 9 चाचा बलिदान जिन्होंने छठे पातशाह की पुत्री बीबी वीरो जी की शादी के समय जब फौजों ने हमला कर दिया तो लोहगढ़ के स्थान पर जिस सिक्ख ने शाही काजी का मुकाबला करके मौत के घाट उतारा वो कौन था, वे मनी सिंह जी के दादा जी थे. दादा के 5 भाई भी थे जिन्होंने ने भी बलिदान दी.

भाई मणि सिंह जी को जब इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया तो मुगल शासक ने उनके शरीर के सभी जोड़ों से काट-काट कर उनकी हत्या का आदेश दिया. गरम चिमटों से मांस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियां शेष थी. फिर भी आज ही के दिन अर्थात 14 जून 1738 को बलिपथ पर चल दिए. आज बलिदान के उस महामूर्ति को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन करते हुए उनके गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.

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