साल 2023 में दागी मोहम्मद इमरान की शिकायत पर दिल्ली पुलिस के कंझावला थाने के दो हिंदू पुलिसकर्मियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. इमरान, जो खुद दागी था, ने इन दोनों पुलिसकर्मियों पर 28 लाख रुपये लूटने का झूठा आरोप लगाया था. बिना उचित अनुशासनात्मक जांच के इन पुलिसकर्मियों को नौकरी से निकाल दिया गया. दोनों ने अन्याय के खिलाफ केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में अपील की. अब CAT ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि इनकी बर्खास्तगी गलत थी.
जानकारी के अनुसार, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त, संयुक्त आयुक्त (पूर्व), और डीसीपी (पूर्व) पर सख्त टिप्पणी करते हुए प्रत्येक पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. यह जुर्माना दो निर्दोष पुलिसकर्मियों को न्याय न देने और बिना जांच उन्हें सेवा से हटाने के कारण लगाया गया. अदालत ने निर्देश दिया है कि जुर्माना प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा किया जाए.
बताया जा रहा है कि न्यायाधिकरण ने यह भी आदेश दिया कि दोनों कांस्टेबलों को तुरंत सेवा में बहाल किया जाए. इसने दिल्ली पुलिस को उचित अनुशासनात्मक जांच शुरू करने और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की अनुमति दी और वरिष्ठ अधिकारियों को उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में प्रतिकूल टिप्पणियों का सामना करना पड़ेगा.
बता दे कि (जुलाई 2023) में कंझावला में तैनात दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल मंगतू राम और सिपाही आकाश के खिलाफ आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने इमरान से 28 लाख रुपये से अधिक की “लूट” की थी, जो एक सट्टेबाजी गिरोह चलाता था. शिकायत में कहा गया है कि इमरान पर धोखाधड़ी के एक मामले में "झूठा आरोप" लगाया गया था और दोनों कांस्टेबल पीसीआर कॉल के जवाब में मौके पर आए थे. हालांकि, मौके पर पहुंचने पर कांस्टेबलों ने कथित तौर पर इमरान की पिटाई की और 28.5 लाख रुपये से अधिक लूट लिए.
विवाद तब उत्पन्न हुआ जब दिल्ली पुलिस प्राधिकारियों ने हेड कांस्टेबल मंगतू और सिपाही आकाश को उचित अनुशासनात्मक जांच के बिना ही सेवा से बर्खास्त कर दिया. वहीं, एक सप्ताह बाद, अनुशासनात्मक प्राधिकारी - वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पूर्ण अनुशासनात्मक जांच के बिना संविधान के अनुच्छेद 311(2)(बी) के तहत दोनों को सेवा से हटाने का आदेश पारित कर दिया.
वहीं, संवैधानिक प्रावधान किसी सिविल सेवक को औपचारिक अनुशासनात्मक जांच के बिना सेवा से बर्खास्त करने की अनुमति देता है, यदि अनुशासनात्मक प्राधिकारी "इस बात से संतुष्ट है कि किसी कारण से, जिसे उस प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया जाएगा, ऐसी जांच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं है. बर्खास्तगी के आदेश में कहा गया कि इस बात की “उचित धारणा” थी कि गवाह दोनों आरोपियों के खिलाफ बोलने के लिए आगे नहीं आएंगे.
इसके बाद कांस्टेबलों ने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया. अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने कहा कि जांच न कराने का निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि पुलिस कर्मियों के खिलाफ शिकायत एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई गई थी जिस पर एक अपराधी है. उन्होंने कहा, "मामले के तथ्य और परिस्थितियां ऐसी हैं कि दोषियों के खिलाफ नियमित विभागीय जांच करना व्यावहारिक और न्यायोचित नहीं होगा, क्योंकि इस बात की पूरी संभावना है कि गवाह उनके खिलाफ गवाही देने के लिए आगे नहीं आएंगे.
इसमें कहा गया है, "यह एक सामान्य अनुभव है कि अपराधियों की प्रभावशाली स्थिति के कारण, गवाह और शिकायतकर्ता विभागीय जांच में अपराधियों के खिलाफ गवाही देने के लिए आगे नहीं आते हैं. वहीं, (16 अप्रैल 2025) को न्यायाधिकरण ने इस बर्खास्तगी को अवैध करार दिया और अपने आदेश में कहा, "हम प्रतिवादियों की निष्क्रियता के मूकदर्शक बने नहीं रह सकते और इसलिए, दिल्ली पुलिस को दोनों कांस्टेबलों को वरिष्ठता और लाभों के साथ सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया.