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मजदूरों के संघर्ष और योगदान को समर्पित 1 मई का इतिहास; श्रम की शक्ति को सुदर्शन न्यूज़ करता है अभिवादन

अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस: मेहनतकशों को समर्पित एक विशेष दिन

Rashmi Singh
  • May 1 2025 10:50AM

हर वर्ष 1 मई को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में इसे श्रमिक दिवस, मई दिवस, लेबर डे, कामगार दिवस जैसे नामों से जाना जाता है। यह दिन समाज के उस वर्ग को समर्पित है जो अपने पसीने से राष्ट्र की नींव को मजबूत करता है, मजदूर और श्रमिक।

भारत के कई राज्यों में 1 मई को राजकीय अवकाश घोषित किया जाता है। इस दिन विभिन्न स्थानों पर रैलियां, सभाएं, जागरूकता कार्यक्रम और सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं, जिनमें मजदूरों के अधिकारों और उनके कल्याण पर चर्चा होती है। इसका उद्देश्य श्रमिक वर्ग को संगठित करना, उनकी उपलब्धियों को सम्मान देना और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना है।

अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन (ILO) हर साल इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित करता है, जिसमें मजदूरों से जुड़ी समस्याओं पर मंथन होता है और सुधारात्मक सुझाव दिए जाते हैं। कई देशों में इस अवसर पर कल्याणकारी योजनाएं और नीतियां घोषित की जाती हैं।

संघर्ष की याद दिलाता है यह दिन

1 मई केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि श्रमिकों के संघर्ष और बलिदान की याद है। यह दिन उस लंबी लड़ाई की प्रतीक है जिसके बलबूते आज मजदूरों को 8 घंटे कार्यदिवस, सुरक्षित कार्यस्थल और सप्ताह में अवकाश जैसे अधिकार मिले हैं। श्रमिकों ने समय-समय पर अपनी आवाज़ बुलंद कर यह सिद्ध किया है कि उनका योगदान किसी भी राष्ट्र की रीढ़ है।

मजदूर दिवस का इतिहास

इस दिन की नींव 1886 के अमेरिका में पड़े एक ऐतिहासिक श्रमिक आंदोलन से जुड़ी है। उस दौर में मजदूरों से 12-15 घंटे तक काम कराया जाता था। श्रमिक संघों ने इसका विरोध करते हुए 1 मई 1886 को हड़ताल की घोषणा की। पूरे अमेरिका में लाखों मजदूर सड़कों पर उतर आए, जिसके जवाब में पुलिस कार्रवाई हुई और कई लोगों की जान चली गई।

इस आंदोलन के परिणामस्वरूप, 1889 में पेरिस में आयोजित इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में 1 मई को श्रमिकों के नाम समर्पित करने का निर्णय लिया गया। तभी से यह दिन वैश्विक स्तर पर मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत

भारत में मजदूर दिवस का आयोजन पहली बार 1 मई 1923 को मद्रास (अब चेन्नई) में किया गया। इस पहल की शुरुआत लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने की थी। इसी अवसर पर पहली बार लाल झंडे को मजदूर आंदोलन का प्रतीक बनाया गया। यह आयोजन भारत में श्रमिक संगठनों के जागरण का आरंभ था, जिसे वामपंथी और समाजवादी दलों ने नेतृत्व दिया।

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