दिल्ली की आन-बान-शान लाल कोट (लाल किले) पर एक बार फिर से कब्जा जमाने का ख्वाब देखने वाली खुद को ‘मुगल वंशज’ बताने वाली सुल्ताना बेगम को सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक जवाब दे दिया है- ‘यह भारत है, किसी सल्तनत का अवशेष नहीं!’ सुल्ताना बेगम नाम की महिला ने कोर्ट में दावा किया कि वो बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय के परपोते की विधवा है, और लाल कोट उसी की ‘पुश्तैनी जायदाद’ है, जिसे 1857 में अंग्रेजों ने छीन लिया था।
अदालत ने न केवल इस याचिका को खारिज कर दिया, बल्कि दो टूक पूछा- “सिर्फ किला ही क्यों? ताज महल और फतेहपुर सीकरी भी तो मुगलों ने बनवाए हैं, उन पर भी तो दावा ठोको!”
SC का तगड़ा तमाचा
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संयज कुमार की पीठ ने इस ‘शाही ख्वाब’ को झूठा और निराधार करार देते हुए याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि यह याचिका सुनवाई के लायक भी नहीं है। इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दिसंबर 2023 में इसे ‘बेहद देर से दाखिल’ कहकर ठुकरा दिया था।
क्या चाहती थीं ‘बेगम’?
सुल्ताना बेगम का दावा था कि साल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने उनके खानदान से लाल किले पर कब्जा कर लिया था और अब सरकार का इस पर हक़ ‘गैरकानूनी’ है। उन्होंने लाल किला वापस देने और मुआवजे की मांग की थी।
न्यायपालिका ने दिखाया आईना
कोर्ट ने बिल्कुल साफ शब्दों में कहा कि अगर मान भी लें कि अंग्रेजों ने गलत किया, तो 164 साल बाद अचानक जागने का कोई औचित्य नहीं है। जब पूर्वजों को सब पता था, तो ये लड़ाई उस वक्त क्यों नहीं लड़ी गई?
अब सवाल उठता है कि क्या हर कोई इतिहास का हवाला देकर देश की विरासत पर कब्जा करना शुरू कर देगा? अगर मुगलों के नाम पर लाल किला (लाल कोट) लौटाना है, तो फिर कुतुब मीनार, ताजमहल (तेजोमहालय), आगरा किला और पूरी दिल्ली भी ‘क्लेम’ में आ जाएगी!