नेपाली पीएम आजकल जो कलयुगी रामायण बांच रहे हैं असल में वह रामायण मेड इन चाइना है। चीन पूरी दुनिया खासकर एशिया में भारत की घेराबंदी की अपनी कुत्सित योजना पर काम कर रहा है। भारत के कई पडोशी देशों को ड्रेगन अपने प्रभाव में ले चुका है, परंतु भूटान और नेपाल में उसकी दाल नहीं गल रही थी।
कई नापाक चालों के परास्त होने पर उसे एहसास हुआ कि भूटान और नेपाल की जनता का भारत की जनता के बीच स्वाभाविक, धार्मिक और सांस्कृतिक संपर्क उसकी नापाक योजना के फेल होने का मुख्य कारण है। भूटान की राजसत्ता और जनता दोनों चीन की कुत्सित योजना के विरोधी हैं, जबकि नेपाल की राजसत्ता तो उसके तलवे चाट रही है परंतु जनता भारत से अच्छे संबंधों की पक्षधर है। इसलिए चीन ने अपनी तलवाचाटू नेपाल की ओली सरकार को एक काल्पनिक मेड इन चाइना रामायण थमाई, जिससे नेपाल की जनता में फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद पैदाकर भारत और नेपाल के पारंपरिक सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों को मटियामेट किया जा सके।
चूंकि राम नाम भारत और नेपाल की जनता के बीच सेतु का काम करता है इसलिए इस सेतु को नष्ट किये बिना चीनी और नेपाली राजसत्ता की दुरभि संधि के परवान चढ़ने की उम्मीद न के बराबर थी। इसलिए चीन ने अपने नास्तिक नेपाली पीएम ओली को स्वरचित काल्पनिक रामायण को जोर जोर से बांचने का आदेश दे रखा है। असल मे ओली इसीलिए राम को नेपाली बताकर भारत की अयोध्या के अस्तित्व को नकारने की असफल कथा बांच रहे हैं, लेकिन यह कथा आने वाले दिनों में उनकी व्यथा ही बढ़ाएगी। हो सकता है कि नेपाली जनता आने वाले दिनों में उन्हें सत्ता से बाहर कर कलयुगी रामायण बांचने का प्रतिफल दे। रामकथा सुनने और बांचने का फल तो मिलता ही है। अब ये बांचने वाले के भाव पर निर्भर करता है कि उसे कैसा फल मिलेगा। जैसे रावण दिन रात राम का ही स्मरण करता था परंतु उसका भाव दुश्मनी का था। इसलिए उसे अपनी सत्ता और प्राण गंवाने पड़े, जबकि सुग्रीव और विभीषण का भाव प्रेम युक्त था तो उन्हें सत्ता मिली, ठीक उसी तरह नेपाली पीएम को अपने कुकर्मों का फल तो अवश्य मिलेगा।