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किरेन रिजिजू बोले- भारत और अन्य देशों में लंबित मामलों की नहीं की जानी चाहिए तुलना... हमारी समस्याएं अलग

रिजिजू ने कहा कि भारत और अन्य देशों में लंबित मामलों की कोई तुलना नहीं की जानी चाहिए. क्योंकि हमारी समस्याएं अलग हैं. उन्होंने कहा कि कुछ देश ऐसे भी हैं, जिनकी आबादी पांच करोड़ भी नहीं है. जबकि भारत में लंबित मामलों की संख्या पांच करोड़ के करीब है.

Geeta
  • Aug 20 2022 3:48PM

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के कामकाज पर एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि अगर कोई जज 50 मामलों का निपटारा करता है, तो 100 नए मामले फिर से दायर हो जाते हैं, क्योंकि लोग अब ज्यादा जागरुक है और वे विवादों के निपटान के लिए अदालतों में पहुंच रहे हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार अदालतों में लंबित मामलों को कम करने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है. संसद के मानसून सत्र में एक सावल के जवाब में विधि मंत्री ने कहा था कि देशभर की अदालतों में 4.83 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं. निचली अदालतों में चार करोड़ से ज्यादा और सुप्रीम कोर्ट में 72,000 से ज्यादा केस लंबित हैं.

मंत्री ने कहा कि मध्यस्थता पर प्रस्तावित कानून से वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र पर नए सिरे से ध्यान देकर अदालतों में मुकदमों की संख्या कम करने में मदद मिलेगी. रिजिजू ने कहा कि भारत और अन्य देशों में लंबित मामलों की कोई तुलना नहीं की जानी चाहिए. क्योंकि हमारी समस्याएं अलग हैं. उन्होंने कहा कि कुछ देश ऐसे भी हैं, जिनकी आबादी पांच करोड़ भी नहीं है. जबकि भारत में लंबित मामलों की संख्या पांच करोड़ के करीब है.

उन्होंने आश्वासन दिया कि विधि मंत्रालय त्वरित न्याय देने में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की हर संभव मदद करेगा. वहीं, सुप्रीम कोर्ट के जज डी. वाई. चंद्रचूड़ ने पुणे के एक कार्यक्रम में कहा कि भारत की अदालतों पर बोझ बहुत ज्यादा है. मामलों की भरमार है. कई मामले लंबित हैं, जिसके समाधान के लिए मध्यस्थताजैसा विवाद समाधान तंत्र एक जरूरी टूल के रूप में काम करेगा.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को पुणे के इंडियन लॉ सोसाइटी के आईएलएस सेंटर फॉर आर्बिट्रेशन एंड मीडिएशन (ILSCA) का उद्घाटन करने के बाद अपने भाषण में यह बात कही. चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम सभी अच्छे से जानते हैं कि भारत की अदालतें कितनी ज्यादा बोझिल हैं और कितने ही मामले यहां लंबित हैं.

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा की गई एक स्टडी के मुताबिक, 2010 से 2020 के बीच सभी अदालतों में लंबित मामलों में सालाना 2.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. उन्होंने कहा कि पिछले दो सालों में कोरोना महामारी के दौरान सामने आए मामलों ने पहले से लंबित मामलों को खतरनाक दर पर पहुंचा दिया है. आंकड़ों के मुताबिक, जिला और तालुका अदालतों में 4.1 करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं. लगभग 59 लाख मामले अलग-अलग हाईकोर्ट्स में पेंडिंग हैं.

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