18 वीं शताब्दी मे बना ब्रिटिश कालीन झाल का पुल अपने निर्माण काल से ही आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह पुल कासगंज शहर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके आकर्षण की वजह इसका इंजीनियरिंग कौशल है। ब्रिटिश इंजीनियरों ने पुल को इस तरह से बनाया है कि इसकी सतह पर कालीनदी बहती हैऔर ठीक उसके ऊपर पुल बनाकर हजारा नहर को प्रवाहित किया है। पुल के नीचे नदी और ऊपर नहर बहती है। यह सिलसिला पिछले 136 वर्षों से ऐसे ही चला आ रहा है।
झाल के पुल का निर्माण कार्य साल 1885 में शुरू हुआ। पुल के निर्माण मे करीब 4 सालों का लंबा समय लगा। इस पुल को नदरई का पुल भी कहा जाता है। इस पुल के एक ओर से दूसरी ओर आवागमन के लिए सुरंगें बनाई गयी हैं। जहां होकर लोग एक तरफ से सुरंग में प्रवेश करके दूसरी ओर निकल सकते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार बहुत समय पहले ये सुरंगें चोरों और डकैतों का डेरा हुआ करता था।
इस पुल का डिजाइन आयरलैंड की कार्क यूनिवर्सिटी के सहयोग से कार्यकारी अभियंता विलियम गुड ने तैयार किया था। इस पुल की लम्बाई 1300 फीट से भी अधिक है। 16 जनवरी 1892 में अमेरिका कैलिफोर्निया के अखबार पैसेफिक रूलर प्रेस ने मुख्य पृष्ठ में छापे लेख में झाल के पुल को इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना बताया था।
समय-समय पर इस पुल के सुंदरीकरण और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की चर्चाएं होती हैं, लेकिन अभी तक कोई योजना कार्यरूप में नहीं आ सकी है। अब झाल के पुल के आसपास नगरवन विकसित करने की योजना है। जहां कालीनदी के जल को शोधन के लिए नदी में ऐसे पौधे लगाए जाएंगे, जो जल को शोधित करने का काम करेंगे।
कासगंज शहर के नजदीक होने के कारण इस पुल को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। जो लोग पहली बार इस पुल को देखते हैं तो उन्हें बड़ा आश्चर्य होता है। बताया जाता है कि विश्व के कई शिक्षण संस्थानों में झाल का पुल पाठ्यक्रम का हिस्सा है।