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साइबर क्रिमिनलों कर निशाने पर हैं छतरपुर के युवा, झांसा दे कर अब तक लाखों की कर चुके हैं ठगी.

लॉकडाउन में साइबर अपराधी सक्रिय हैं। इसलिए फेसबुक व इंस्टाग्राम फोन पे गूगल पे चलाने वाले लोगों को सावधान रहने की जरूरत है। पिछले चौबीस घंटे के अन्दर ही छतरपुर थाना अंतर्गत बारा निवासी और खाटीन निवासी से साइबर क्राइम अपराधीयो ने अपने साझे में लेकर मोटी रकम उनके खाते से उड़ाये है

छतरपुर प्रतिनिधि
  • May 25 2020 5:40PM
पलामू (छतरपुर): झारखंड के पलामू जिला अंतर्गत पड़ने वाला छतरपुर का इलाका इन दिनों साइबर क्रिमिनलों की निशाने पर हैं, इलाके के भोले भाले युवाओं को लालच औए झांसा दे कर अपराधी लाखों रूपये ठग चुके हैं. लॉकडाउन में साइबर अपराधी लगातार सक्रिय हैं। इसलिए फेसबुक व इंस्टाग्राम फोन पे गूगल पे  चलाने वाले लोगों को सावधान रहने की जरूरत है।
पिछले चौबीस घंटे के अन्दर ही छतरपुर थाना अंतर्गत बारा निवासी और खाटीन निवासी से साइबर क्राइम अपराधीयो ने अपने साझे में लेकर मोटी रकम  उनके खाते से उड़ाये है...इस तरह के पहले भी दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं, इसलिए फोन पे , गूगल पे फेसबुक वाट्सएप पर फर्जी लीक भी साइबर अपराधियों द्वारा भेजी जाती है  इस लोगों को सावधान रहने की जरूरत है। हालांकि एटीएम पर भी ठगी की घटनाएं अक्सर ज्यादा होती रहती हैं।  भोले भाले लोग अक्सर इसका शिकार हो जाते है तो कुछ लोग लालच में आकर ठगी के शिकार हो जाते है  । छत्तरपुर इलाके के नीरज मिश्रा लगभग नब्बे हजार रुपये की ठगी का शिकार हुए हैं। बारा निवासी रामजीवन  राम फोन पे के माध्यम से अपराधियों ने छयासी हजार आठ सौ चार ठग लिए है  रामजनम ने पूरी घटना को लिखते शिकायत  छत्तरपुर थाने दर्ज करवा है ।उन्होंने बताया कि साइबर अपराधियों ने अपने साझे में लेकर मुझे अपना शिकार बनाया ।
जालसाजी से बचने के लिए सतर्कता बरतें.
 देश में डिजिटल क्रांति के साथ डिजिटल फ्रॉड के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। लोगों के बैंक खातों से रुपए हड़पने के लगातार सामने आते मामलों ने पुलिस के सामने अपराधियों की एक नई जमात खड़ी कर दी है। हालांकि साइबर तकनीकि से सक्षम यह अपराधी पुलिस से 10 कदम आगे हैं। एटीएम का पिन चोरी कर, फ्रॉड कॉल से ओटीपी लेकर अथवा मैसेज पर दी गई लिंक से बैंक खाते का डिटेल चुराने जैसे कई मामले लगातार सामने आ रहे हैं और पुलिस इन साइबर हमलों के अपराधियों को पकड़ने में नाकाम साबित हो रही है। 
ठगी के शिकार लोग थाणे की उदासीनता से नहीं दर्ज़ कराते मामले 
हालकि ठगी के शिकार हुए लोग बहुत कम ही लोग मामले दर्ज करवाते हैं  छतरपुर में हर महीने लगभग दर्जनों  अधिक डिजिटल फ्रॉड सामने आ रहे हैं और इनके अपराधियों को पकड़ने के आंकड़े 5 प्रतिशत भी नहीं हैं। इस तरह से चोरी हो जाता है खातों में रखा पैसा साइबर अपराधियों ने बैठे तकनीकि के माध्यम से लोगों की गाढ़ी कमाई को चुराने का तरीका सीख लिया है।  दूसरे राज्यों में बैठे साइबर अपराधियों का नेटवर्क देश के किसी भी कोने में मौजूद व्यक्ति के खातों से रकम उड़ा रहा है। यह सब तकनीकि के एक विशिष्ट प्रयोग के माध्यम से किया जाता है।
सक्रिय है इलाके में साइबे का संगठित गिरोह
सबसे पहले साइबर अपराधी लोगों का डाटा हासिल करते हैं। डाटा मिलने के बाद वे संबंधित बैंक के उपभोक्ता को फोन लगाकर उनसे बैंक अधिकारी बनकर बात करते हैं। साइबर अपराधियों के द्वारा आमतौर पर भोले-भाले लोगों से यह कहा जाता है कि आपका एटीएम कार्ड बंद होने वाला है इसे बदलने के लिए कार्ड के नंबर और इसके पिन कोड को मांगा जाता है। यह काफी पुराना तरीका है। अब अपराधियों ने कुछ नए तरीके भी इजाद कर लिए हैं। अब लोगों के मोबाइल पर एक मैसेज भेजा जाता है। मैसेज में किसी वेबसाईट की लिंक होती है। यदि उपभोक्ता ने इस लिंक पर क्लिक किया तो उसके बैंक से संबंधित डाटा वेबसाईट के पास चला जाता है।
एटीएम कार्ड का भी अपराधी कर ले रहे हैं क्लोनिंग
एक अन्य तरीका एटीएम कार्ड की क्लोनिंग का है। इसमें बदमाश एटीएम के बाहर मौजूद भोले भाले लोगों की मदद करने की बहाने उनके कार्ड को बदल देते हैं और फिर खाते के पैसे उड़ा देते हैं। इंटरनेट पर ऐसी कई फ्रॉड वेबसाईट भी हैं जो ऑनलाइन शॉपिंग के नाम पर भी लोगों को खूब ठग रही हैं। दूर बैठे अपराधी, ट्रेनिंग के अभाव से जूझती पुलिस रहती पुलिस. हर महीने डिजिटल फ्रॉड के लगभग दर्जनों  मामले सामने आ रहे हैं। ज्यादातर मामलों में पुलिस एफआईआर दर्ज करने की बजाय सिर्फ आवेदन ले रही है। इसका कारण यह है कि पुलिस ऐसे मामलों का खुलासा नहीं कर पाती।

दरअसल साइबर अपराध से जुड़े गिरोह अन्य जिलों में बैठकर यह काम करते हैं। उन तक पहुंच पाना आसान नहीं होता। कई बार पुलिस को मोबाइल नंबर अथवा जिस खाते में पैसा गया है उसके आधार पर अपराधी की लोकेशन मिलती है लेकिन उनकी दूरी अधिक होने के कारण पुलिस उन्हें पकड़ने में दिलचस्पी नहीं दिखाती। साइबर हमलावरों से निपटने के लिए पुलिस के पास तकनीकि संसाधनों और साइबर जानकारियों की उच्च स्तरीय ट्रेनिंग का भी अभाव है।

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