वो पूरा समय अचानक ही याद आ गया जब कई माह तक शाहीन बाग़ को कब्जा कर के बैठे दंगइयो की मान मनव्वल होती रही.. हर कोई उन्हें या तो शेरनी कह रहा था या क्रातिकारी .. कईयों ने तो अपने फ़्लैट बेच कर उनके लिए बिरयानी का इंतजाम किया और कईयों ने उनके खातों में पैसे डाले.. मुद्दा ये था कि पाकिस्तान और बंगलादेश के हिन्दुओं को भारत में शरण क्यों दी जाय.
लेकिन आज अचानक ही जब भारत की बेटियों की सुरक्षा करने के लिए आयोजित एक शांतिपूर्ण जनता मार्च जैसे ही इण्डिया गेट पर पहुचा वैसे ही दिल्ली पुलिस ठीक उसी रूप में आ गई जिस रूप में कभी आधी रात को देश का काला धन लाने के लिए धरने पर बैठे बाबा रामदेव पर हमला किया था. उस हमले में एक महिला की मृत्यु हो गई थी.
आज का हमला ठीक उसी घटना की याद दिला दिया है. एक मुस्लिम पुलिस अधिकारी ने महज एक फरमान दिया और पीछे तमाम पुलिस वाले महिलाओं ,बच्चो और संतो पर टूट पड़े.. संतो की जुबान पर भगवान का नाम था और बेटी बचाओ का नारा.. गलों में हाथ डाले गये और कई साधुओं की रुद्राक्ष की माला टूट गई..
पवित्र कंठी के वो दाने जिस से दिन में भगवान का नाम लिया जाता था, उसको तोड़ कर जमीन में बिखेर दिया गया.. चमड़े के बूटो से महिलाओं को मारा गया और महिलाओं की सुरक्षा के लिए आयोजित जनता मार्च सीधे सीधे महिलाओं पर अत्याचार में बदल गया. अफ़सोस की बात ये है कि ये तमाम विवाद पुलिस द्वारा किया गया जो जनता की सुरक्षा के लिए जानी जाती है.