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पश्चिम बंगाल में हिंदुओं की हत्या पर अब नहीं रही केंद्र सरकार से उम्मीद पीड़ितों के लिए अब सुप्रीम कोर्ट ही सहारा

पिछले 1 महीने से लगातार मांग उठ रही है कि सुप्रीम कोर्ट पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा, लूटमार, बलात्कार, हत्या की घटनाओं पर स्वत: संज्ञान ले ।

Ayush
  • Jun 14 2021 6:44PM
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद शुरू हुआ खूनी खेल कई हिंदुओं के मौत का कारण बना बहुत से हिंदू बेटियों की जिहादियों ने आबरू लूटी । अब इस घटना को करीब डेढ़ महीना हो चुका है ऐसे में सब को आशा थी कि चुनाव परिणाम के बाद शुरू हुई हिंसा पर केंद्र सरकार सख्ती से जिहादियों को सजा देगी लेकिन केंद्र सरकार से उम्मीद टूटने के बाद अब पीड़ित परिवार को सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से न्याय की उम्मीद बची है । 
सरकार बनने के लगभग डेढ़ महीने बाद भी हिंसा ना केवल जारी है बल्कि एक-एक करके दर्दनाक वीडियो पश्चिम बंगाल से सामने आ रहे हैं लोग खौफनाक आपबीती का गवाह बनने के लिए भी तैयार हैं.  तो वहीं राज्य सरकार और सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस का कहना है कोई हिंसा नहीं हुई और दूसरी तरफ करीब रोज हिंसा की नई-नई वारदातें दुर्दांत अपराध की कहानियां तैयार करती रही । हिंसा पर केंद्र सरकार से पीड़ित परिवार को उम्मीद थी कि पीड़ित परिवार को केंद्र सरकार की तरफ से न्याय मिले लेकिन समय बीतने के साथ जब न्याय की कोई गुंजाइश जब नहीं बची तो पीड़ित परिवार के पास सुप्रीम कोर्ट अंतिम विकल्प के तौर पर मौजूद दिख रहा है।  आपको बता दें, ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच शुरू हुई जुबानी जंग पश्चिम बंगाल के चुनाव के परिणाम आने के साथ ही बंगाल में हिंसा की वारदात में आम हो गई थी । 
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का पुराना इतिहास रहा है कभी वामदल के कार्यकर्ता मीडिया , बुद्धिजीवी संवैधानिक संस्थाओं को निशाना बना रहे  तो कभी टीएमसी के गुंडों ने हत्या का खूनी खेल खेला। समय-समय पर बंगाल में हिंदू मरता रहा और सरकारें तमाशा देखती गई । जब राजनीतिक हिंसा का एक स्वर में विरोध होना चाहिए तब राजनीतिक और वैचारिक समर्थकों की टोली ने चुप्पी साध ली या यह कहें मुंह मोड़ कर सिर्फ पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा के चरित्र को देखते रहे तथाकथित सेकुलर लोग हिंदुओं की मौत पर चुप रहते हैं और मुसलमान के मरने पर छाती पीट कर रोते हैं यही इस देश का दुर्भाग्य है । 
सामूहिक बलात्कार की पीड़ित इन सुप्रीम कोर्ट से कहा की बलात्कार और हिंसा की घटनाओं के लिए कोर्ट की देखरेख में एसआईटी बनाकर कार्यवाही की जाए कानून की अपनी परिभाषा और दांव पेंच होते हैं पर मानवाधिकार की दृष्टि से देखा जाए तो एक पीड़ित नागरिक की सुनवाई यदि राज्य की पुलिस और कानून व्यवस्था नहीं करती तो पीड़ित के लिए और क्या विकल्प है ? 

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