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इतिहास के पन्नों में क्रान्ति की एक गाथा जो आपके लहू की रफ्तार को तेज कर देगी- "चौरी-चौरा"

गोरखपुर जिले में एक जगह है चौरी-चौरा जहां पर ब्रिटिश हुकूमत के समय मे एक थाना था और गुस्साई भीड़ ने उस थाने में आग लगा दी जिसका परिणाम ये हुआ कि 23 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई थी,और इस घटना में 3 नागरिकों की भी मौत हो गई, दरशल में चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने पास में मुंडेरा बाजार के पास कुछ आंदोलन कर्ताओं को मारा था, फिर क्या था लोगों में रोष तो था ही और फिर स्टेशन के पास भीड़ जमा हो गई।

रजत. के. मिश्र, Twitter- rajatkmishra1
  • Feb 4 2021 1:30PM

इनपुट-अखिल तिवारी

इतिहास के पन्नो में शहीदों का हम पर कर्ज है
चौरी-चौरा की घटना उसी पन्नों में दर्ज है..

जब भी हम कहानी पढ़ते हैं या सुनते हैं बहुत मजा आता है या यूं कहें कहानी रोचक लगने लगती है, लेकिन अगर हम इतिहास के पन्नो से शूरवीरों की कहानियों को निकालर पढ़ें तो देश के प्रति एक जज्बा सा पैदा हो जाता है या यूं कहें शरीर मे लहू की रफ्तार तेज हो जाती है, आज उन्ही इतिहास के पन्नों में से लेकर आएं आपके लिए एक ऐसी सच्ची घटना जिसको पढ़ने के बाद आपके शरीर मे लहू की रफ्तार तेज हो जाएगी चलिए शुरू करते हैं...।

ब्रिटिश की हुकूमत थी अंग्रेजों का हिंदुस्तान पर कब्जा था तमाम शूरवीर अपने प्राण माँ भारती को चढ़ा चुके थे, लेकिन आंदोलन और स्वतन्त्रा की लड़ाई की चरमसीमा अभी बाकी थी हिंदुस्तान को आजाद भी तो होना था... देश की आजादी की इसी लड़ाई में महात्मा गांधी ने आंदोलन का एक और बिगुल फूंक दिया था जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया, उस आंदोलन का नाम था असहयोग आंदोलन।

देश की आजादी के लिए क्रांतिवीर नेता अलग-अलग गुट बनाकर नई रणनीति तैयार कर रहे थे,लेकिन महात्मा गांधी  जी को अहिंसा का पुजारी कहा जाता है उन्होंने तय किया था कि आजादी की लड़ाई में खून नही बहाया जाएगा,लेकिन असहयोग आंदोलन में गुस्साई भीड़ ने आक्रमक रूप ले लिया, तारीख थी 4 फरवरी सन1922 जो इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया।

गोरखपुर जिले में एक जगह है चौरी-चौरा दरशल में चौरी-चौरा दो अलग गांव थे रेलवे के एक ट्रैफिक मैनेजर ने इन गांव के नामों को एक कर दिया था बाद में यहां बाजार लगाना शुरू हो गया,और यहां थाने की स्थापना 1857 की क्रांति के बाद ही हो गई थी यह तीसरे दर्जे का थाना था। गुस्साई भीड़ ने उस थाने में आग लगा दी जिसका परिणाम ये हुआ कि 23 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई थी,और इस घटना में 3 नागरिकों की भी मौत हो गई, दरशल में चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने पास में मुंडेरा बाजार के पास कुछ आंदोलन कर्ताओं को मारा था, फिर क्या था लोगों में रोष तो था ही और फिर स्टेशन के पास भीड़ जमा हो गई।

अब घटना इतनी बड़ी हो गई कि 12 फरवरी 1922 को महात्मा गांधी जी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, हलाकि कुछ क्रांतिकारी दल  नाराज भी हो गया।गांधी जी ने एक लेख लिखा कि अगर ये आंदोलन समाप्त ना होता तो और जगहोँ पर ये घटनाएँ होती,लेकिन इस घटना का जिम्मेदार उन्होंने पुलिस वालों को बताया कि पुलिस उकसाने पर ये घटना घटी।

इसके बाद अंग्रेजों का वही क्रूर रवैया रहा जिसके तहत गांधी जी को शिकार बनाया गया और उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला और मार्च 1922 में उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया, गांधी जी का मानना था कि असहयोग आंदोलन सही से चले तो अंग्रेज देश छोड़कर चले जायेंगे और आंदोलन में और फिर  अंग्रेजों की संस्था व्यापार,  उत्पाद,शिक्षा कुल मिलाकर सभी का बहिष्कार करना शुरू कर दिया गया।

1971 में गोरखपुर जिले में चौरा चौरी शहीद स्मारक गठित हो गया 1973 में 12.2 मीटर एक ऊंचा मीनार भी बन गया  जिसमें शहीदों को फांसी पर लटकते हुए दिखाया गया है, फिर सरकारों का ध्यान इस तरफ गया और वहां पर स्मारक के सिलसिला शुरू हो गया आज इसे मुख्य शहीद स्मारक के तौर पर जानते हैं अब यो ट्रेन, एक्सप्रेस वे,शहीद एक्सप्रेस वे तमाम चीज उन शहीदों के सम्मान में बना दी गई हैं

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