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पार्ट- 4: उत्तर प्रदेश समाज कल्याण विभाग का काला सच

आईटीआई बक्शी का तालाब लखनऊ में काम चलाओ प्रणाली के तहत ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह को आईटीआई कॉलेज का प्रधानाचार्य बनाया गया

रजत के.मिश्र, Twitter - rajatkmishra1
  • May 19 2022 3:08PM

इनपुट- रोहित बाजपेई, लखनऊ

 
समाज कल्याण विभाग में योग्यता को महत्व न देते हुए, अयोग्य चापलूस कर्मचारी को विभाग के बड़का बाबू साहब की सरपरस्ती और मेहरबानी पर, आईटीआई कॉलेज बक्शी का तालाब लखनऊ मैं प्रधानाचार्य पद पर विराजमान है। जिस कारण योग्यता चापलूसी के आगे छोटी पड़ गई है, जबकि विभाग में तकनीकी अहर्ता वाले बहुत कर्मचारी मौजूद हो।
 
गौरतलब हो 12 जून 2020 को आईटीआई बक्शी का तालाब लखनऊ में काम चलाओ प्रणाली के तहत ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह को आईटीआई कॉलेज का प्रधानाचार्य बनाया गया, जबकि 11 जून 2020 को अनुदेशकों द्वारा एक शिकायत पत्र शासन को दिया गया कि कोई भी आईटीआई कॉलेज का प्रधानाचार्य तब ही बन सकता है जबकि उसकी योग्यता तकनीकी हो, लेकिन उसके बावजूद भी शासन ने 12 जून 2020 को बिना तकनीकी योग्यता वाले कर्मचारी को नियुक्ति कर दिया। उक्त प्रधानाचार्य की नियुक्ति मृतक आश्रित में हुई थी उसको प्रधानाचार्य बना दिया गया। 
 
उसके बाद 4 फरवरी 2022 को अनुदेशकों द्वारा फिर एक शिकायत पत्र शासन को दिया गया की किसी तकनीकी अहर्ता रखने वाले कर्मचारी को ही प्रधानाचार्य बनाया जाए। इसका संज्ञान लेते हुए समाज कल्याण अधिकारी (विकास) ने 5 मार्च 2022 को ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह को पद मुक्त कर दिया और 8 मार्च 2022 को समाज कल्याण अधिकारी ( विकास) ने शासन और डायरेक्टर समाज कल्याण विभाग से अनुरोध करते हुए पत्र भी भेजा कि कोई तकनीकी अहर्ता रखने वाले कर्मचारी को ही पदभार दिया जाए लेकिन 8 मार्च 2022 को डायरेक्टर समाज कल्याण विभाग ने समाज कल्याण अधिकारी (विकास) के आदेश को निरस्त करते हुए ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह को पुनः प्रधानाचार्य का पदभार दे दिया। जबकि शासनादेश कहता है कि कोई भी विभाग का कर्मचारी जो तकनीकी अहर्ता रखता है वह पहले अनुदेशक बनेगा अनुदेशक के बाद फोरमैन उसके पश्चात ही प्रधानाचार्य पद का वह उत्तरदायित्व संभाल सकता है, लेकिन डायरेक्टर समाज कल्याण विभाग उत्तर प्रदेश ने ऐसे अयोग्य कर्मचारी में कौन सी योग्यता देखी कि अयोग्य व्यक्ति को पद पर बनाए रखने के लिए शासनादेश का उल्लंघन और अनुदेशकों के प्रार्थना पत्र को निरस्त करते हुए ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह को प्रधानाचार्य बनाए रखा। 
 
ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह अपने पद का भरपूर उपयोग और उपभोग करते हुए समाज कल्याण विभाग के फंड का भुगतान समाज कल्याण अधिकारी (आहरण वितरण) से बड़ी ही आसानी से करा लेते हैं। फंडों के भुगतान की ना जांच होती है ना पड़ताल कि जो भुगतान कराए जा रहे हैं वह सही है या गलत, क्योंकि ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह को पता है की विभाग को कैसे चलाना है और भुगतान कैसे कराना है। जब हमने इस विषय पर जिला समाज कल्याण अधिकारी (आहरण वितरण) से बात की तो उनका कहना है की जो भी बिल उनके पास भुगतान के लिए आते हैं उसकी पूर्णता जिम्मेदारी भुगतान कराने वाले की होती है। ये बात गौर करने वाली है कि बिलों का भुगतान करने वाला सही और गलत नहीं जान रहा है और भुगतान करता जा रहा है । अपने पद का दुरुपयोग किस तरीके से किया जा रहा है यह एक उदाहरण मात्र है । भुगतान सही हो या गलत, हम उसी के विश्वास पर भुगतान कर देते हैं ,समाज कल्याण अधिकारी ने अपना पल्ला झाड़ते हुए यह बातें कहीं और कहां आईटीआई बक्शी का तालाब की जिम्मेदारी जिला समाज कल्याण अधिकारी (विकास) के पास है।
 
वही इस विषय में जानकारी दे सकते हैं जब जिला समाज कल्याण अधिकारी (विकास) से हमने बात की तो उनका कहना है की हमने उस पद के लिए योग्य व्यक्ति को नामित किया था और उस पर हमने अपनी टिप्पणी भी की थी ।विभाग को पत्र भी भेजा था कि व्यक्ति अयोग्य है,परंतु डायरेक्टर समाज कल्याण उत्तर प्रदेश ने मेरे पत्र को संज्ञान में ना लेते हुए पुनः इस पद पर एक आयोग व्यक्ति को सुसज्जित कर दिया। जब इन बातों का संज्ञान होने के बाद सुदर्शन न्यूज़ की टीम ने इस प्रकरण पर डायरेक्टर समाज कल्याण उत्तर प्रदेश से जानकारी चाही तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया और कहा कि इन विषयों की जानकारी प्रमुख सचिव समाज कल्याण देंगे या मंत्री जी देंगे। 
 
समाज कल्याण में फैले इन भ्रष्टाचारो को देखते हुए लग रहा है कि समाज कल्याण विभाग अपने निजी हितों के कारण कोई भी भ्रष्टाचार करने के लिए वह चाहे भुगतान से संबंधित हो,चाहे छात्रवृत्ति के संबंध में हो, चाहे विधवा पेंशन को लेकर हो और चाहे शादी के भुगतान को लेकर संबंध में हो, समाज को ध्यान में ना रखते हुए निजी हितों को ध्यान में रखते हुए कार्य कर रहा है। विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को दृष्टिगत रखते हुए सुदर्शन की मुहिम जारी रहेगी।

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