जहाँ अभी एक तरफ उत्तर प्रदेश में विकास दुबे के एनकाउंटर की कहानी ठंडी नहीं हुई है तो इसी समय चर्चा ये भी छिड़ गई है कि क्या ये किसी बड़े अपराधी का पहला एनकाउंटर था ? जवाब है कि नही, इस सेपहले भी पुलिस ने कई बड़े अपराधियो को धूल चटाई है.. जानिए कुछ एक ऐसे एनकाउंटर के बारे में जो 90 के दशक के बाद भी UP पुलिस व UP की जनता आज भी नहीं भूल पाई ।।
इस अभियान का नाम था ऑपरेशन बजूका और बिना शक यूपी पुलिस के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा एनकाउंटर था. एनकाउंटर कुख्यात माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला का, जो 90 के दशक में यूपी में आतंक का सबसे बड़ा नाम था और जिसके लिए यूपी पुलिस को खास तौर पर स्पेशल टास्क फ़ोर्स तक बनानी पड़ी थी. श्रीप्रकाश शुक्ला का शूटआउट 23 सितंबर 1998 को दिल्ली के करीब गाज़ियाबाद में हुआ था.
श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के मामखोर गांव में हुआ था. उसके पिता एक स्कूल में शिक्षक थे. वह अपने गांव का मशहूर पहलवान हुआ करता था. साल 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने उसकी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी. 20 साल के युवक श्रीप्रकाश के जीवन का यह पहला जुर्म था. श्री प्रकाश शुक्ला ने उस समय के उत्तर प्रदेश के सबसे ताकतवर बाहुबली और डॉन वीरेंदर प्रताप शाही की हत्या 1997 में लखनऊ में हत्या कर दी.
श्रीप्रकाश शुक्ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के बाहर बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी. मंत्री की हत्या उस वक्त की गई जब उनके साथ सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे. वो अपनी लाल बत्ती कार से उतरे ही थे कि एके 47 से लैस 4 बदमाशों ने उनपर फायरिंग शुरु कर दी, इस गोली बारी में मंत्री जी की घटना स्थल पर ही मौत हो गई थी
बिहार के मंत्री के कत्ल के मामले की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि तभी यूपी पुलिस को एक ऐसी खबर मिली जिससे पुलिस के हाथ-पांव फूल गए. श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी 6 करोड़ रुपये में ले ली थी. कहा जाता है की अगर शुक्ल कल्याण सिंह की सुपारी न लेता तो शायद उसका एनकाउंटर ही न होता। कल्याण सिंह की सुपारी की खबर आने के बाद उत्तर प्रदेश में पहली बार STF का गठन किया गया और इसका पहला टारगेट था श्री प्रकाश शुक्ल जिन्दा या मुर्दा, इसके बाद 23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को खबर मिलती है कि श्रीप्रकाश शुक्ला दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है. श्रीप्रकाश शुक्ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा शुरू कर देती है. उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल होती है, मौका मिलते ही एसटीएफ की टीम अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक देती है.
पुलिस के मुताबिक पुलिस ने पहले श्रीप्रकाश को सरेंडर करने को कहा लेकिन वो नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया और इस तरह से यूपी के सबसे बड़े डॉन की कहानी हमेशा के लिए खत्म हुई. विकास दुबे के एनकाउंटर की तरह ही श्री प्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर पे भी कई सवाल उठे थे. यदि राजनीति अपनी जगह है पर जरा सोचिए उस अपराधी के दुस्साहस के बारे में जिसने मुख्यमंत्री तक की सुपारी ले ली हो और जिस के मारे जाने की घोषणा मुख्यमंत्री ने विधानसभा में की हो वह प्रदेश की सुख शांति के लिए कितना खतरनाक रहा होगा। कल्पना करिए उस समय के व्यापारियों ने कितना खौफ देना होगा और उसकी मौत के बाद उद्योग जगत वालों ने कितनी राहत की सांस ली होगी और उनका पुलिस बल में कितना विश्वास जगा रहा होगा.