विशेष: भारत में काफी जटिल है कोयला खनन की प्रक्रिया
सीआईएल एक सरकारी कंपनी है. वर्तमान में देश में कोल उत्पादन में इसकी 80 फीसदी हिस्सेदारी है.
अभी तक कोयले की माइनिंग पर कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) का एकाधिकार था. सीआईएल एक सरकारी कंपनी है. वर्तमान में देश में कोल उत्पादन में इसकी 80 फीसदी हिस्सेदारी है. सीआईएल अपनी कुछ सहायक कंपनियों के जरिए कोल उत्पादन करती है. कुछ प्राइवेट कंपनियों को कैप्टिव माइनिंग की इजाजत हासिल थी. इसका मतलब है कि वे खुद के इस्तेमाल के लिए कोल माइनिंग कर सकती थी. लेकिन, अब कोल माइनिंग की प्रक्रिया बदल गई है. आइए जानते हैं नई प्रक्रिया के बारे में.
सरकार ने कोल माइनिंग को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया है. इसका मतलब है कि अब प्राइवेट कंपनियां कोल माइंस की नीलामी में हिस्सा ले सकती हैं. सरकार ने विदेशी कंपनियों को भी खानों की नीलामी में हिस्सा लेने का अधिकार दे दिया है. इसकी शुरुआत 18 जून से हो गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार (18 मई) को कोयले की कमर्शियल नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत की. उन्होंने 41 कोल ब्लॉक की नीलामी के साथ इसकी शुरुआत की. इसे कोयला क्षेत्र में बहुत बड़े सुधार के रूप में देखा जा रहा है.
नई प्रक्रिया के तहत सरकार समय-समय पर कोयले की खानों की नीलामी करेंगी, जिसमें देशी (प्राइवेट क्षेत्र की भी) और विदशी कंपनियां हिस्सा ले सकेंगी. इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि देश में कोयले का उत्पादन बढ़ेगा. कंपनियां अपनी जरूरत के हिसाब से कोयले की खानों के लिए बोली लगा सकेंगी. इसमें अप्रफंट राशि कम होगी और बिडिंग प्रक्रिया पारदर्शी होगी. ऑटोमेटिक रूट से 100 फीसदी एफडीआई की इजाजत होगी. एक नेशनल कोल इंडेक्स के आधार पर रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल होगा.
निजी कंपनियां उत्पादित कोयले का खरीद-फरोख्त भी कर सकेंगी. कोयले की निजी क्षेत्र को कॉमर्शियल माइनिंग की इजाजत देने से वेदांता, जेएसडब्लू एनर्जी, एस्सेल माइनिंग, अडानी, रियो टिंटो जैसी कंपनियों को फायदा मिलने की उम्मीद है. इन्हें अब महंगे कोयले के आयात के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा.
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