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पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों पर भड़क रही कांग्रेस की एक सच्चाई ये भी ... मनमोहन सरकार ने तेल कंपनियों को दिए थे लाखों करोड़ के बांड, जिनको आज तक चुका रही मोदी सरकार

मनमोहन सिंह सरकार के समय तेल कंपनियों को कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को कंट्रोल में करने के लिए पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में वृद्धि नहीं करने के लिए बांड जारी किए गए थे.

Abhay Pratap
  • Jun 18 2021 1:17AM

देश में लगातार बढ़ती पेट्रोल तथा डीजल की कीमतों को लेकर मुख्य विपक्षी कांग्रेस सहित सभी विरोधी दल केंद्र की मोदी सरकार पर हमलावर हैं. कांग्रेस पार्टी इस मामले में काफी ज्यादा मुखर नजर आ रही है तथा पेट्रोल डीजल के बढ़ते ,दामों को लेकर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए दावा कर रही है कि UPA अर्थात डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के समय क्रूड ऑयल के दाम ऊंचे होने के बाद भी देश में पेट्रोल  डीजल की कीमतें कंट्रोल में थी जबकि आज जब क्रूड ऑयल के दाम कम हैं तो भी पेट्रोल डीजल महंगा है.

अब इसी को लेकर ऐसी जानकारी सामने आई है जो चौंका देने वाली है. जानकारी के मुताबिक़, जब केंद्र की मोदी सरकार खर्च के दबाव का सामना कर रही है, तो भी वह सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को उनके द्वारा वहन की जाने वाली सब्सिडी के बदले जारी किए गए यूपीए अर्थात मनमोहन सरकार के समय के तेल बांड के 1.30 लाख करोड़ रुपये को चुकाने के लिए तैयार है. इस वित्तीय वर्ष में चुकौती के लिए ₹10,000 करोड़ की मूल किस्त आएगी, जो 2015 के बाद पहली बार होगी.

अब ये जानना जरूरी हो  जाता है कि UPA सरकार के समय के ये कौन से बांड हैं, जिनका भुगतान मोदी सरकार को करना पड़ रहा है. आपको बता दें कि मनमोहन सिंह सरकार के समय तेल कंपनियों को कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को कंट्रोल में करने के लिए पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में वृद्धि नहीं करने के लिए बांड जारी किए गए थे. दुसरे शब्दों में कहें तो सब्सिडी के बोझ को वहन करने के कारण तेल कंपनियों की 'अंडर-रिकवरी को तत्कालीन मनमोहन सरकार द्वारा तेल बांड में परिवर्तित कर दिया गया था. अर्थात हम आपको सब्सिडी नहीं दे सकते, लेकिन फिर भी आप तेल के दाम मत बढ़ाओ, इसके लिए हम आपको बांड दे दे रहे हैं जो धीरे करके चुका देंगे.

 मनमोहन सरकार ने सब्सिडी देने के बदले तेल कंपनियों को बांड दिए, जिसका भुगतान आज मोदी सरकार  को करना पड़ रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार, पिछला मूल भुगतान मार्च 2015 में ₹3,500 करोड़ का किया गया था. वहीं कुल वर्तमान बकाया लगभग ₹1.30-लाख करोड़ है, जिसमें से ₹10,000-करोड़ मूलधन और इस वर्ष ब्याज के रूप में एक समान राशि देय है. बता दें कि ये बांड ब्याज-असर वाले होते हैं, जिनकी एक निश्चित कूपन दर होती है और जिनका भुगतान अर्ध-वार्षिक आधार पर किया जाता है. केंद्र सरकार ने बजट में लगभग ₹10,000 करोड़ के वार्षिक ब्याज का प्रावधान किया गया है.

विशेषज्ञों का मानना है कि जाता है कि वित्त मंत्रालय खर्च बचाने के लिए विभिन्न रणनीतियों पर काम कर रहा है, लेकिन विकल्प सीमित हैं. बेंगलुरू स्थित बीआर भानुमूर्ति के कुलपति एनआर भानुमूर्ति का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि भुगतान करने के अलावा सरकार के पास ज्यादा विकल्प बचा है क्योंकि इसे पहले ही बजट में शामिल किया गया है. वहीं एक अन्य विश्लेषक का कहना है कि आज के करदाता एक दशक से भी अधिक समय पहले उपभोक्ताओं को दी जाने वाली सब्सिडी का भुगतान कर रहे हैं. अर्थात जो व्यक्ति आज टैक्स दे रहे हैं, उससे एक दशक पहले सब्सिडी के बदले दिए गए बांड का कर्ज चुकाया जा रहा है. और वे करदाता अगले पांच वर्षों तक भुगतान करना जारी रखेंगे क्योंकि बांडों का मोचन 2026 तक जारी रहेगा.

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