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5 जून: पुण्यतिथि पर नमन है द्वितीय सर संघ चालक श्री गुरूजी गोवलकर जी को ... वो महान विभूति जिनका जीवन ज्वलंत प्रेरणा है राष्ट्र व धर्म के लिए सर्वस्व समर्पित करने की

भारत को उसकी मूल संस्कृति में वापस लाने के लिए उनके प्रयासों को आज भी जीवंत रूप में याद किया जाता है . धर्म और राष्ट्र की रक्षा का अनूठा संगम अगर किसी को देखना है तो वो गुरु जी की जीवनी को अच्छे से पढ़ सकता है

Abhay Pratap
  • Jun 5 2021 11:44AM

भारत की महान विभूतियों में से एक पूज्य गुरु गोलवरकर जी की आज पुण्य तिथि है . ये वो महान विभूति हैं जिन्हे हर किसी ने त्याग की मूर्ति माना है . भारत को उसकी मूल संस्कृति में वापस लाने के लिए उनके प्रयासों को आज भी जीवंत रूप में याद किया जाता है . धर्म और राष्ट्र की रक्षा का अनूठा संगम अगर किसी को देखना है तो वो गुरु जी की जीवनी को अच्छे से पढ़ सकता है. गुरु जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वितीय सर संघ चालक थे .

भारतवर्ष की अलौकिक दैदीप्यमान विभूतियों की श्रृंखला में श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर का राष्ट्रहित, राष्ट्रोत्थान तथा हिन्दुत्व की सुरक्षा के लिए किए गए सतत् कार्यों तथा उनकी राष्ट्रीय विचारधारा के लिए वे जनमानस के मस्तिष्क से कभी विस्मृत नहीं होंगे. वैसे तो 20वीं सदी में भारत में अनेक गरिमायुक्त महापुरुष हुए हैं, परन्तु श्री गुरुजी उन सब से भिन्न थे, क्योंकि उन जैसा हिन्दू जीवन की आध्यात्मिकता, हिन्दू समाज की एकता और हिन्दुस्थान की अखण्डता के विचार का पोषक और उपासक कोई अन्य न था. उन =का जन्म 19 फरवरी, 1906 को नागपुर में अपने मामा के निवास स्थान पर हुआ था.

श्री गुरुजी की हिन्दू राष्ट्र निष्ठा असंदिग्ध थी लेकिन फिर भी उनके प्रशंसकों में उनकी विचारधारा के घोर विरोधी कतिपय कम्युनिस्ट तथा मुस्लिम नेता भी थे. ईरानी मूल के डॉ. सैफुद्दीन जीलानी ने श्री गुरुजी से हिन्दू-मुसलमानों के विषय में बात करते हुए यह निष्कर्ष निकाला, "मेरा निश्चित मत हो गया है कि हिन्दू-मुसलमान प्रश्न के विषय में अधिकार वाणी से यथोचित मार्गदर्शन यदि कोई कर सकता है तो वह श्री गुरुजी हैं." निष्ठावान कम्युनिस्ट बुध्दिजीवी और पश्चिम बंगाल सरकार के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. अशोक मित्र के श्री गुरु जी के प्रति यह विचार थे, "हमें सबसे अधिक आश्चर्य में डाला श्री गुरुजी ने.

उच्च शिक्षा के लिए काशी जाने पर उनका संपर्क राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से हुआ. तदुपरांत गुरूजी  नियमित रूप से शाखा जाने लगे. जब डा. हेडगेवार काशी आये तो हेडगेवार जी के व्यक्तित्व से प्रभावित हो गुरु जी का संघ के प्रति विश्वास और दृढ़ हो गया. गुरूजी उसके बाद  कुछ समय काशी में रहने के बाद  वे नागपुर कानून की परीक्षा देने के लिए आये उन्होंने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की. इस दौरान गुरूजी का सम्पर्क रामकृष्ण मिशन से हुआ और वह  बंगाल के सारगाछी आश्रम चले गए और स्वामी अखण्डानंद जी से दीक्षा ली और तत्पश्चात पूरी शक्ति से संघ कार्य में जुट गये.  पूरे देश में उनका प्रवास होने लग गया उनकी योग्यता को देखकर डा. हेडगेवार ने उन्हें 1939 में सरकार्यवाह का दायित्व दिया था.

21 जून, 1940 को डा. हेडगेवार के देहान्त के बाद श्री गुरूजी सरसंघचालक बने तो उन्होंने संघ कार्य को गति प्रदान करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी. गुरूजी ने संघ को अखिल भारतीय सुदृढ़ अनुशासित संगठन का रूप दिया  पूरे देश में संघ कार्य बढ़ने लगा. जब 1947 में देश विभाजन हुआ तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवकों की संख्या आबादी के अनुसार नाम मात्र थी. फिर भी भारत विभाजन के समय संघ के स्वयं सेवकों ने गुरु जी के नेतत्त्व में पकिस्तान के अन्दर जाकर हिन्दू भाई बहनों को वहां से लाने में अपना सहयोग दिया जिसमे ना जाने कितने स्वयं सेवकों ने अपने प्राणों का बलिदान कर माँ बहिनों की इज्जत और जान माल की रक्षा की. सिख , पंजाबी , हिन्दू सभी के साथ मिलकर स्वयं सेवक दिन रात शरणार्थी कैम्पों की रक्षा हेतु पहरा दिया करते थे .

1948 में गांधी की हत्या का आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया और गुरूजी को भी जेल में डाल दिया गया. इस आक्षेप को भी श्री गुरूजी ने झेला लेकिन वे विचलित नहीं हुए ना ही कभी हार मानी. गुरूजी का अध्ययन व चिंतन इतना सर्वश्रेष्ठ था कि वे देश भर के युवाओं के लिए ही प्रेरक पुंज नहीं बने अपितु पूरे राष्ट्र के प्रेरक पुंज व दिशा निर्देशक हो गये थे. वे युवाओं को ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रेरित करते रहते थे वे विदेशों में ज्ञान प्राप्त करने वाले युवाओं से कहा करते थे कि युवकों को विदेशों में वह ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जिसका स्वदेश में विकास नही हुआ है वह ज्ञान सम्पादन कर उन्हें शीघ्र स्वदेश लौट आना चाहिए.  वे कहा करते थे कि युवा शक्ति अपनी क्षमता का एक एक क्षण दांव पर लगाती हैं. अतः मैं आग्रह करता हूं कि स्वयं प्रसिध्दि संपत्ति एवं अधिकार की अभिलाषा देश की वेदी पर न्योछावर कर दें.

वे युवाओं से अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा करते थे वे युवाओं को विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण न करने के लिए भी प्रेरित करते थे. श्री गुरूजी को प्रारम्भ से ही आध्यात्मिक स्वभाव होने के कारण सन्तों के श्री चरणों में बैठना, ध्यान लगाना, प्रभु स्मरण करना ,संस्कृत व अन्य ग्रन्थों का अध्ययन करने में उनकी गहरी रूचि थी.  गुरूजी धर्मग्रन्थों एवं विराट हिन्दूु दर्शन पर इतना अधिकार था कि एक बार शंकराचार्य पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था जिसे उन्होंने राष्ट्र सेवा और संघ के दायित्व की वजह से सहर्ष अस्वीकार कर दिया. यदि वो चाहते तो शंकराचार्य बन कर पूजे जा सकते थे किन्तु उन्होंने राष्ट्र और धर्म सेवा दोनों के लिए संघ का ही मार्ग उपयुक्त माना. संघ कार्य करते हुए श्री गुरूजी निरंतर राष्ट्रचिंतन किया करते थे.

चाहे आधी अधूरी स्वतंत्रता के बाद कश्मीर विलय का मसला हो या फिर अन्य कोई महत्वपूर्ण प्रकरण श्री गुरूजी को राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा की भारी चिंता लगी रहती थी. गुरु जी मानते थे कि भारत कर्मभूमि, धर्मभूमि और पुण्यभूमि है तथा यहां का जीवन विश्व के लिए आदर्श है. भारत राज्य नहीं राष्ट्र है राष्ट्र बनाया नहीं गया अपितु यह तो सनातन राष्ट्र ही है.  श्री गुरूजी की आध्यात्मिक शक्ति इतनी प्रबल थी कि ध्यान इत्यादि के माध्यम से उन्हें आने वाले संकटों का आभास भी हो जाता था. गुरूजी निरंतर राष्ट्र श्रध्दा के प्रतीकों का मान, रक्षण करते रहे  वे सदैव देशहित में स्वदेशी चेतना स्वदेशी व्रत स्वदेशी जीवन पध्दति, भारतीय वेशभूषा तथा सुसंस्कार की भावना का समाज के समक्ष प्रकटीकरण करते रहे.

गुरूजी सदैव  अंग्रेजी तिथि के स्थान पर हिंदी तिथि के प्रयोग को स्वदेशीकरण का आवश्यक अंग मानते थे. गौरक्षा के प्रति चिंतित व क्रियाशील रहते थे.  गुरूजी की प्रेरणा से ही गोरक्षा का आंदोलन संघ ने प्रारम्भ किया था.  विश्व भर के हिंदुओं को संगठित करने के उददेश्य से विश्व हिंदू परिषद की स्थापना की गयी तथा  विद्या भारती के नेतृत्व में अनेकानेक शिक्षण संस्थाओं का श्री गणेश हुआ. उनकी प्रेरणा से सम्भवतः सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ऐसा ही कोई क्षेत्र छूटा हो जहां संघ के आनुषांगिक संगठनों का प्रादुर्भाव न हुआ हो. गुरूजी अपने उदबोधनों में प्रायः यह कहा करते थे कि यदि देश के मात्र तीन प्रतिशत लोग भी समर्पित होकर देश की सेवा करें तो देश की बहुत सी समस्यायें स्वतः समाप्त हो जायेंगी.

भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी किताब ज्योतिपुंज में आरएसएस के दूसरे प्रमुख गोलवलकर को पूजनीय गुरुजी कहकर संबोधित किया है.  गुरु जी के ये वाक्य आज भी गूंजते हैं कानों में कि- "हम पुण्‍य भूमि भारत की संतान हैं, जिनका जीवनकार्य तथा प्रयत्‍न्‍ मानव वंश की दिव्‍यता तथा पौरुष के प्रति विश्‍वास जगाना है, इसलिए हम सब लोग जहां भी हों, अपनी संस्‍कृति का दिव्‍य प्रकाश हृदयों में जाग्रत रखें. प्रत्‍येक व्‍यक्ति अपनी शक्ति के अनुसार संसार की अन्‍य प्रकाश किरणें समेटें, जिसके कारण एक ऐसी प्रचंड अग्निज्‍वाला का निर्माण हो, जो समस्‍त संसार से अंधकार और दुख को नष्‍ट कर दे।" आज उन परमपूज्य गुरु जी की पुण्यतिथि है .. 19 फ़रवरी 1906 में जन्म लेने के बाद आज ही के दिन अर्थात 5 जून 1973 को गुरु जी ने देह त्याग कर देवलोक को प्रस्थान किया था . आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको बारम्बार नमन करते हुए सुदर्शन परिवार उनकी पावन जीवनी जन जन तक पहुंचाने का संकल्प लेता है .

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