सुदर्शन के राष्ट्रवादी पत्रकारिता को सहयोग करे

Donation

25 जून- जन्मजयंती पर सुदर्शन का नमन है कारगिल के महानायक और टाइगर हिल के टाइगर परमवीर कैप्टन मनोज पांडेय जी को

"मेरी विजय से पहले अगर मौत भी आती है तो यकीन मानो , मैं मौत को भी मार दूंगा " - कैप्टन मनोज पांडेय ,, अमर बलिदानी कारगिल युद्ध

Abhay Pratap
  • Jun 25 2021 9:47AM

"मेरी विजय से पहले अगर मौत भी आती है तो यकीन मानो , मैं मौत को भी मार दूंगा " - कैप्टन मनोज पांडेय ,, अमर बलिदानी कारगिल युद्ध ... भारत की जिस खुली हवा में हम सांस ले रहे हैं उसके पीछे उन तमाम जाने अनजाने गुमनाम बलिदानियों का बलिदान है जो चीख चीख कर गवाही देते हैं की हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल नहीं मिली है और आज़ादी की कीमत के लिए कई लोगों ने अपने प्राणो की आहुति ना सिर्फ 1947 से पहले बल्कि उसके बाद भी दी है जिसमे से एक थे परमवीर कैप्टन मनोज पांडेय जी जिनके बलिदान के हम सदा कृतज्ञ रहेंगे . आज केवल मैच खेलने की चाहत में गले मिल का खेल को दुश्मनी से अलग करने की वकालत करने वालों को शायद पता भी ना हो की आज कैप्टन मनोज पांडेय का जन्म दिवस है.

वीर योद्धा मनोज की माँ का आशीर्वाद और मनोज का सपना सच हुआ और वह बतौर एक कमीशंड ऑफिसर ग्यारहवां गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में पहुँच गए. उनकी तैनाती कश्मीर घाटी में हुई. ठीक अगले ही दिन उन्होंने अपने एक सीनियर सेकेंड लेफ्टिनेंट पी. एन. दत्ता के साथ एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भरा काम पूरा किया. यही पी.एन दत्ता एक आतंकवाडी गुट से मुठभेड़ में शहीद हो गए, और उन्हें अशोक चक्र प्राप्त हुआ जो भारत का युद्ध के अतिरिक्त बहादुरी भरे कारनामे के लिए दिया जाने वाला सबसे बड़ा इनाम है. एक बार मनोज को एक टुकड़ी लेकर गश्त के लिए भेजा गया. उनके लौटने में बहुत देर हो गई. इससे सबको बहुत चिंता हुई.

 

जब वह अपने कार्यक्रम से दो दिन देर कर के वापस आए तो उनके कमांडिंग ऑफिसर ने उनसे इस देर का कारण पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, 'हमें अपनी गश्त में उग्रवादी मिले ही नहीं तो हम आगे चलते ही चले गए, जब तक हमने उनका सामना नहीं कर लिया.' इसी तरह, जब इनकी बटालियन को सियाचिन में तैनात होना था, तब मनोज युवा अफसरों की एक ट्रेनिंग पर थे. वह इस बात से परेशान हो गये कि इस ट्रेनिंग की वजह से वह सियाचिन नहीं जा पाएँगे. जब इस टुकड़ी को कठिनाई भरे काम को अंजाम देने का मौका आया, तो मनोज ने अपने कमांडिंग अफसर को लिखा कि अगर उनकी टुकड़ी उत्तरी ग्लेशियर की ओर जा रही हो तो उन्हें 'बाना चौकी' दी जाए और अगर कूच सेंट्रल ग्लोशियर की ओर हो, तो उन्हें 'पहलवान चौकी' मिले. यह दोनों चौकियाँ दरअसल बहुत कठिन प्रकार की हिम्मत की माँग करतीं हैं और यही मनोज चाहते थे.

 

आखिरकार मनोज कुमार पांडेय को लम्बे समय तक 19700 फीट ऊँची 'पहलवान चौकी' पर डटे रहने का मौका मिला, जहाँ इन्होंने पूरी हिम्मत और जोश के साथ काम किया. वो कैप्टन मनोज पांडेय जिन्होंने कारगिल युद्ध के समय सबसे कठिन छोटी टाइगर हिल को जीतने का जिम्मा अपने सर पर उठाया था और उसको भारत में वापस मिला कर ही बलिदान हुए. १ / ११ गोरखा रायफल्स का ये सेनापति चोटी पर बैठे पाकिस्तानियों को खाई में से होते हुए भी मार कर वीरता की अमरगाथा लिख कर 3 जुलाई 1999 को सदा सदा के लिए बलिदान हो गया.

३ गोलियां लगने के बाद भी दुश्मन के ४ बंकर को तबाह करने के बाद पाकिस्तानी दुश्मनो की एक गोली उनके माथे में आ कर लगी थी . इस प्रकार भारत को उसकी खोयी भूमि वापस दिला कर , पाकिस्तानियों को हिंदुस्तानी पानी याद दिला कर , क्रिकेट की नकली दुनिया से युद्ध की असली दुनिया में वीरता की अमरगाथा लिख कर युवावस्था में ही सदा सदा के लिए बलिदान हो कर भारतवासियों की रक्षा कर गए परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडेय जी को आज उनके प्रेरणादाई जन्मदिवस पर सुदर्शन न्यूज अपने सम्पूर्ण राष्ट्रवादी परिवार के साथ बारम्बार नमन वंदन और अभिनंदन करता है . जय हिन्द की सेना .

 
 

सहयोग करें

हम देशहित के मुद्दों को आप लोगों के सामने मजबूती से रखते हैं। जिसके कारण विरोधी और देश द्रोही ताकत हमें और हमारे संस्थान को आर्थिक हानी पहुँचाने में लगे रहते हैं। देश विरोधी ताकतों से लड़ने के लिए हमारे हाथ को मजबूत करें। ज्यादा से ज्यादा आर्थिक सहयोग करें।
Pay

ताज़ा खबरों की अपडेट अपने मोबाइल पर पाने के लिए डाउनलोड करे सुदर्शन न्यूज़ का मोबाइल एप्प

Comments

ताजा समाचार