बांग्लादेश में हाल में हुई हिन्दुओ के खिलाफ घटना पर अब हर तरफ से बयानबाज़ी का सिलसिला शुरू हो गया है। बीती नवरात्री में दुर्गा पंडाल में माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना कर रहे हिन्दुओ को भीड़ ने निशाना बनाया था और साथ ही तमाम मूर्तियां भी खंडित कर दी थी। इसी हमले में गोलीबारी भी हुई और कुछ हिन्दुओ की जान भी चली गई थी। अब इसी मुद्दे पर विश्व भर से बांग्लादेश की इस जिहादी मानसिकता का विरोध होने लगा है और साथ ही साथ लोग इसके खिलाफ आवाज़ भी उठाने लगे है।
इसी कड़ी में बांग्लादेश की प्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन भी जुड़ गई है। उन्होंने इस मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि -" अब बांग्लादेश, बांग्लादेश नहीं रहा बल्कि जिहादिस्तान बना गया है। उन्होंने कहा-" तमाम पोलिटिकल पार्टियों ने अपनी सियासत की चमक फैलाने के लिए धर्म का कार्ड खेला जिसके कारण आज देश की स्थिति बहुत दुखद हो गई है। "
मदरसों में तैयार हो रहे कटटरपंथी : तस्लीमा
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए तस्लीमा ने कहा कि-" सरकार को मदरसों पर निगरानी रखनी चाहिए क्योंकि इस मदरसों में अब कटटरपंथी विचारधारा को उजागर किया जा रहा है, जिसके कारण आतंकी मानसिकता पनप रही है। "
नया नहीं है हिन्दू विरोधी भाव
तस्लीमा ने कहा कि-" हिंदू विरोधी भाव बांग्लादेश में नया नहीं है और यह हैरानी की बात है कि इसके बावजूद दुर्गापूजा के दौरान हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का प्रबंध नहीं किया गया ।"
क्यों नहीं किया गया हिन्दुओ की सुरक्षा का इंतजाम : तस्लीमा
तस्लीमा ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना पर सवालिया निशान खड़े करते हुए कहा कि -" हर वर्ष दुर्गा पूजा में हिन्दुओ पर जिहादी हमले की आशंका रहती है, लेकिन फिर भी आखिर सुरक्षा व्यवस्थाओ पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया।
30 प्रतिशत अल्पसंख्यक से अब मात्र 9 प्रतिशत अल्पसंख्यक ही बचे : तस्लीमा
उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि अब दहशत के कारण जितने भी हिंदू वहां बचे है वे भी अब नहीं रहेंगे। सरकार चाहती तो उनकी रक्षा कर सकती थी । यह हिंदू विरोधी मानसिकता चिंताजनक है । विभाजन के समय वहां 30 प्रतिशत अल्पसंख्यक थे जो अब घटकर नौ प्रतिशत रह गए हैं तथा आने वाले समय में और कम होंगे।
1993 में बांग्लादेश से निष्कासित कर दी गई थी तस्लीमा
तसलीमा को 1993 में उनके चर्चित उपन्यास ‘लज्जा’ के प्रकाशन के बाद बांग्लादेश से निष्कासित कर दिया गया था । भारत में 1992 में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बांग्लादेश में हिंदू विरोधी दंगों की पृष्ठभूमि में उन्होंने ‘लज्जा’ लिखी थी।
उन्होंने कहा कि मैने 1993 में लज्जा लिखी, जिसकी कहानी एक हिंदू परिवार पर केंद्रित थी जो कट्टरपंथी हिंसा के बाद देश छोड़ने को मजबूर हो गया था। ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ 1993 की बात है , यह सिलसिला लगातार चला आ रहा है। मुस्लिम चाहते हैं कि हिंदू बांग्लादेश छोड़ दें ताकि वे उनकी जमीन हथिया सकें।'