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"हिंदी पत्रकारिता दिवस" पर हिन्दुस्थानियों ने स्वीकार किया कि यदि कोई "हिंदी - हिन्दू -हिन्दुस्थान" रूपी पत्रकारिता के प्रतीक हैं तो वो हैं श्री "सुरेश चव्हाणके"

वर्तमान जानने से पहले बेहतर होगा कि इतिहास को जान लिया जाय . आज भारत में तमाम ऐसे पत्रकार भी हिंदी भाषा पत्रकारिता दिवस मना रहे हैं जिन्होंने हर जद्दोजहद की थी देश की भाषा को उर्दू तक में बदल डालने की .

Sudarshan News
  • May 30 2020 4:24PM

वर्तमान जानने से पहले बेहतर होगा कि इतिहास को जान लिया जाय . आज भारत में तमाम ऐसे पत्रकार भी हिंदी भाषा पत्रकारिता दिवस मना रहे हैं जिन्होंने हर जद्दोजहद की थी देश की भाषा को उर्दू तक में बदल डालने की . हिंदी बोलना ही काफी नहीं होता हिन्दुस्तानी होने के लिए , सुरेश चव्हाणके जी का कहना है कि मूल तत्व को जाने खुद को हिंदी भाषी कहना एक बेमानी आवाज होगी . हिंदी में बोलते हुए हिंदुत्व को बदनाम करने वालों को अगर हिंदी भाषी पत्रकार कहा जाए तो इस से बड़ा अपमान पत्रकारिता और भारतीयता का शायद कोई और नहीं हो सकता है . सेना पर पत्थर मारने वाले दुर्दांत आतंकियों को हिंदी में मासूम और निर्दोष बताना किसी भी हाल में हिंदी पत्रकारिता नहीं कही जा सकती है .


ये दिवस विरोधो के साए में एक रौशनी के दिन को याद करते हुए मनाया जाता है . ये विरोध था अंग्रेजो के राज में अंग्रेजी से संघर्ष करते हुए हिंदी भाषा को एक बार फिर से उसके गौरव स्थल पर ले जाने का . आज के ही दिन 'उदन्त मार्तण्ड' के नाम से पहला समाचार पत्र 30 मई 1826 में निकाला गया था। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद थे। इस तरह हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता की जगत में विशेष सम्मान है। इस हिंदी पत्रकारिता में वो कई लोगों में उस समय सोये राष्ट्रवाद को जगाया करते थे और आख़िरकार वो सफल भी हुए .

श्री जुगल किशोर शुक्ल वकील भी थे और कानपुर के रहने वाले थे। लेकिन उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। परतंत्र भारत में हिंदुस्तानियों के हक की बात करना बहुत बड़ी चुनौती बन चुका था। इसी के लिए उन्होंने कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में अमर तल्ला लेन, कोलूटोला से साप्ताहिक 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन शुरू किया। यह साप्ताहिक अखबार हर हफ्ते मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था। परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इसलिए उस समय अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे। हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। हां, यह जरूर है कि 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र 'समाचार दर्पण' में कुछ हिस्से हिंदी में भी होते थे। हालांकि 'उदन्त मार्तण्ड' एक साहसिक प्रयोग था, लेकिन पैसों के अभाव में यह एक साल भी नहीं प्रकाशित हो पाया। इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 प्रतियां छपी। हिंदी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल सके। दूसरी बात की हिंदी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण उन्हें समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था। डाक दरें बहुत ज्यादा होने की वजह से इसे हिंदी भाषी राज्यों में भेजना भी आर्थिक रूप से महंगा सौदा हो गया था।

उस समय पंडित जुगल किशोर ने सरकार ने बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें जिससे हिंदी भाषी प्रदेशों में पाठकों तक समाचार पत्र भेजा जा सके, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई। अलबत्ता, किसी भी सरकारी विभाग ने 'उदन्त मार्तण्ड' की एक भी प्रति खरीदने पर भी रजामंदी नहीं दी। पैसों की तंगी की वजह से 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका और आखिरकार 4 दिसम्बर 1826 को इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया। उस समय आज़ादी के तथाकथित ठेकेदारों के परिवार थे लेकिन उन्होंने एक बार भी मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाया और अपने घर में अंग्रेजी अख़बार मंगा कर पढ़ते रहे . और देश आज़ाद होने के बाद खुद बन बैठे हिंदी और हिंदुस्तान के ठेकेदार.

कमोबेश उस समय के हालात जैसे आज के भी हालत हैं . आर्थिक संकटों का सामना करते हुए सीमित संसाधन और शत प्रतिशत देश के धर्मनिष्ठ समाज के दिए अनुदान से चल रहा सुदर्शन न्यूज अपने प्रधान सम्पादक श्री सुरेश चव्हाणके के नेतृत्व में संघर्ष कर रहा है हिंदी बोल कर हिन्दू समाज को अपमानित करने वाले उन तमाम शक्तियों से जो अंग्रेजो के छोड़े गये वो एजेंट हैं जिनसे उन्हें वापस आने की आशा है . वो हिंदी ही किस काम की जो हिन्दुस्थान के लिए बलिदान हुए बिस्मिल , भगत सिंह , आज़ाद की जय न बोल सके . वो हिंदी किस काम की जो हिंदुस्तान के मूल तत्व गौ वंश को काटने का समर्थन करता है . वो हिंदी ही किस काम की जो हिंदुत्व को दंगाई और आतंकी बताने के लिए दिन रात संघर्ष करती है .

सुदर्शन न्यूज के प्रधान सम्पादक श्री सुरेश चव्हाणके जी ने हिंदी - हिन्दू - हिन्दुस्थान को सर्वोपरि ले जाने का जो बीड़ा उठाया है उसको आज जनमानस खुले दिल से स्वीकार करता है . ये वो प्रधान सम्पादक हैं जो अपने पत्राचार और संदेश आदि तक के लिए हिंदी भाषा का प्रयोग किया करते हैं , भले ही सामने वाला किसी भी पद पर बैठा हो . हिंदुस्तान के मूल तत्व गौ माता के लिए उन्होंने सेव काऊ ट्रस्ट चला रखा है और अपने कार्यालय में अंग्रेजी वार्तालाप को प्रतिबंधित कर रखा है . शायद ही ऐसा माहौल कहीं और हो .. स्वयं आज के दिन कई स्थानीय पत्रकारों ने कार्यालय में श्री सुरेश चव्हाणके जी से व्यक्तिगत मुलाक़ात की और उन्हें हिंदी - हिन्दू और हिन्दुस्थान की आवाज सबसे प्रबल और प्रखर रूप से उठाने के लिए धन्यवाद किया.. सुरेश चव्हाणके जी ने उनके दिए सम्मान को सहर्ष स्वीकार किया और उनसे अपने इस राष्ट्र और धर्म रक्षा के अभियान में सहयोग की अपील की .

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