30 अक्टूबर तथा 2 नवम्बर 1990 की वो तारीख आज भी जख्म देती है जब उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव ने श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में प्रभु के भक्तों को गोलियों से भुनवा दिया था. इस घटना को आज 30 साल से ज्यादा का समय हो चुका है तथा अयोध्या में श्रीराम का मंदिर निर्माण भी प्रारंभ हो गया है लेकिन इसके बाद भी मुलायम सरकार में गोलियों से भूने गए श्रीराम भक्तों की चीखें आज भी हिंदू जनमानस को झकझोर देती हैं.
मजहबी तुष्टीकरण की राजनीति के नए आयाम स्थापित करने वाली सपा ने एक बार फिर से वही सोच दिखाई है. खबर के मुताबिक़, समाजवादी पार्टी के विधायक इरफ़ान सोलंकी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में नमाज के लिए कमरा अर्थात मस्जिद बनाने की मांग की है. जिस विधानसभा को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है, उस विधानसभा में अखिलेश यादव के विधायक मस्जिद बनवाना चाहते हैं.
आश्चर्य की बात ये है कि अखिलेश यादव तथा समाजवादी पार्टी खुद को धर्मनिरपेक्ष बताती है लेकिन उन्हें नमाज के लिए विधानसभा में मस्जिद चाहिए. ऐसे में सवाल तो ये भी उठता है कि क्या समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश, जो 2022 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के सपने देख रहे हैं, क्या उनकी यही रणनीति है? क्या मजहबी तुष्टीकरण की राजनीति के माध्यम से अखिलेश यादव पुनः उत्तर प्रदेश के मुखिया बनना चाहते हैं?
सपा विधायक इरफ़ान सोलंकी ने कहा है कि इबादत भी जरूरी है और विधानसभा सत्र भी जरूरी है. विधानसभा में प्रार्थना के लिए बने जगह बननी चाहिए. इरफ़ान सोलंकी ने कहा कि मुस्लिम विधायकों को सत्र छोड़कर मस्जिदों में नमाज के लिए जाना पड़ता है. विधानसभा अध्यक्ष अगर चाहें तो एक छोटा सा कमरा इबादत के लिए बनवा दें. उन्होंने कहा कि इससे ना तो किसी को हानि होगी और ना ही कोई परेशानी.