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काव्य रंग, कुवैत में बसे भारतीय साहित्यकारों के संग

साहित्य से जुड़े देश के विभिन्न प्रान्तों के भारतीय मूल के लोग साहित्य मंच कुवैत के माध्यम से कुवैत में अपनी संस्कृति संस्कार और भाषा की निरन्तरता व संचार को बनाए रखने के लिए कृत संकल्प है। हिमाचल प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी के साहित्य कला संवाद की 443वीं कड़ी (काव्य रंग कुवैत में भारतीय साहित्यकारों के संग) कवि सम्मेलन कार्यक्रम का संचालन करते हुए डाॅ राधिका गुलेरी ने यह विचार व्यक्त किए। उल्लेखनीय है कि साहित्य कला संवाद की इस कड़ी में कुवैत में रह रहे भारतीय मूल के लोगों ने हिन्दी साहित्य और कविता के माध्यम से कार्यक्रम में शिरकत की।

सुन्दर सिंह मेहता
  • Jun 21 2021 8:58PM
फीचर
काव्य रंग, कुवैत में बसे भारतीय साहित्यकारों के संग

साहित्य से जुड़े देश के विभिन्न प्रान्तों के भारतीय मूल के लोग साहित्य मंच कुवैत के माध्यम से कुवैत में अपनी संस्कृति संस्कार और भाषा की निरन्तरता व संचार को बनाए रखने के लिए कृत संकल्प है। हिमाचल प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी के साहित्य कला संवाद की 443वीं कड़ी (काव्य रंग कुवैत में भारतीय साहित्यकारों के संग) कवि सम्मेलन कार्यक्रम का संचालन करते हुए डाॅ राधिका गुलेरी ने यह विचार व्यक्त किए। उल्लेखनीय है कि साहित्य कला संवाद की इस कड़ी में कुवैत में रह रहे भारतीय मूल के लोगों ने हिन्दी साहित्य और कविता के माध्यम से कार्यक्रम में शिरकत की।  
डाॅ राधिका गुलेरी भारद्वाज हिमाचल से सम्बध रखती है और प्र्रदेश के सुविख्यात कवि स्वर्गीय पीयुष गुलेरी की पुत्री है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से सूक्ष्म विज्ञान विषय में पीएचडी डिग्री प्राप्त कर कुवैत विश्वविद्यालय में शोध वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत है । इन्होंने कोरोना काल के बंधन की नकारात्मकता में सकारात्मकता की लौ जलाते हुए ‘बैड़िया’ शीषर्क से अपनी कविता प्रस्तुत करते हुए कहा कि
ऐसी सुबह की इन्तजार में उठती हूूं
कि खोलूं आंख और सब हो जाए सामान्य
पहले सी सोच, न हो किंचित संकोच
एक-दूसरे में घुल-मिल जाने का
स्वछन्द मिलने का और मिलाने का  
ढूंढती हूं व पहले सा सिलसिला
तलाशती रहती हूं हर रोज
कोई तो हो जो खोल दे मेरे मन मस्तिष्क
और तन में सब तरफ लिपटी बेड़ियां

कुवैत मेें हिन्द और हिन्दी के संस्कारों को प्रबल बनाने के कार्य में प्रयासरत कुवैत लेखक संघ के संस्थापक सदस्य और पूर्व अध्यक्ष आईआईटी रूड़की से मेकेनिकल इंजिनियर स्नातक कुवैत में गल्फ कन्सलटेंसी कम्पनी से इंजीनियर एडवाईजर के पद से सेवानिर्वित उमेश चन्द शर्मा ने विदेशी भूमि पर कुवैत लेखक संघ के सुविचार की उत्पति के संबध में बताया कि संघ में भारतीय राष्ट्रीयता के व्यक्ति को ही मान्यता प्राप्त है। उन्हांेने बताया कि कुवैत लेखक संघ भारतीय दूतावास से पंजीकृत है और देश की विभिन्न भाषाओं से संबध रखने वाले लोग इसमें शामिल है। जीवन में निश्चयात्मक भाव को अभिव्यक्त करते हुए बोलते है अपनी कविता प्रस्तुत की
प्रतिदिन के जीवन को प्रतिदिन ही जीता हूं,
हर पल के कण-कण का सोम रस पीता हूं,
कल जो अतीत है मात्र मार्गदर्शक है,
उस कल की छाया से वंचित रह जीता हूं,
कल जिसे आना है भविष्य है अनिश्चित है,
उस कल की चिंता से विमुक्त हो जीता हूं।

मुम्बई महाराष्ट्र से संबंध रखने वाली मैमुना अली चैगले कुवैत में प्राध्यापिका पद से सेवानिवृत ने कुवैत में समीक्षा प्रगति और परिवर्तन पर विचार व्यक्त किए साथ ही अपनी र्कुअतुल ऐन हैदर से प्रेरित हो मां बेटी के संवेदनशील रिश्तों पर आधारित अपनी कविता बेटी के नाम प्रस्तुत करते हुए कहा
‘कभी-कभी मांऐ अपने बच्चों में अपना जीवन ढूंढती है,
मैं भी ऐसी ही एक मां हूं तुममें खुद को ढूंढ रही,
दुनिया से मैंने क्या पाया दुनिया से तुम क्या पाओगी,
सोच के घबराती हूं इस दुनिया में जिंदा रहना बहुत कठिन है।

नाजनीन अली नाज झीलों के शहर उदयपुर से संबंध रखती है। मस्किट बैंक कुवैत में वित्त प्रंबधक के रूप में अपनी सेवाएं दे रही नाजनीन अली नाज ने प्रवासी भारतीयों को मंच प्रदान करने के लिए कला संस्कृति भाषा अकादमी का आभार व्यक्त किया। कलम की ताकत को तलवार से अधिक बताते हुए अपनी कविता कलम प्रस्तुत करते हुए कहा कि
सलीके से कभी जो बात कहनी हो तुम्हें लोगों,
सीखाना हो जमाने को अगर पैगाम उल्फत का,
दिखानी हो तुम्हें राहें मसीहा बनकर औरों को,
कलम अपना उठा लेना ये तेग से भी बढ़कर है,

राजस्थान से तालुक रखने वाले गल्फ में फाईनांस मैंनेजर के पद पर आसीन अमीर दीवान ने प्रार्थनानुमा कविता प्रस्तुत करते हुए कहा
बंूद-बंूद कण-कण, धीरे-धीरे क्षण-क्षण,
शब्दों के फूलों की एक माला बनाऊं,
आखिर कहां ढूंढू में हरी को,
स्वयं को ही अर्पित करता जाऊं,
क्या ये मेरा अंहकार है या -
अहम ब्रह्मांस्मी की सच्ची पुकार है,
पता भी आखिर क्यों कर लगाऊं,
क्यों कर ढूंढू हरी को स्वयं को ही अर्पित करता जाऊं।

उत्तर प्रदेश कानपुर से संबंध रखने वाली कुवैत में इंजीनियर के पद पर आसीन पारूल चर्तुवेदी ने भावनाओं से भरी कोरोना की नकारात्मकता में सकारात्मक का बीज बोती कविता ‘सुबह तो होनी ही है’ प्रस्तुत करते हुए कहा
उगते हुए सूरज ने फिर यह सत्य अटल बताया है
सुबह तो होनी ही है,
कितनी ही काली रात हो दिखती नहीं कोई आस हो,
मन में तुम ये रखना भ्रम की सुबह तो होनी ही है।

कार्यक्रम में सभी कवियों का स्वागत करते हुए संजय सूद ने कहा कि कुवैत के परिवेश में जीते हुए हिन्दी और हिन्दुस्तान की मौलिकता को अपनों में संजौये है। स्वः संस्कृति के भाव, विचार और अभिव्यक्ति के माध्यम से हिन्दी साहित्य और कविता को सुदुर विदेश में भी समृद्ध कर रहे हैं।
सचिव, हिमाचला कला संस्कृति भाषा अकादमी डाॅ. कर्म सिंह ने फेसबुक पेज और यू ट्यूब चैनल से रोजाना लाईव प्रसारित होने वाले लोकप्रिय कार्यक्रम साहित्य कला संवाद के संबंध में कुवैत के साहित्य प्रेमियों संग विचार सांझा कर उनका अभिवादन किया।
उन्होंने बताया कि हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी के प्रयासों के तहत विदेश में रह रहे भारतीय साहित्य से जुड़े लोगों के साथ यह पहला संवाद है, जिसे भविष्य में निरंतर जारी रखा जाएगा और आने वाले समय में विश्व के अन्य देशों में भारतीय मूल के प्रवासी लोगों के साथ समन्वय कर कला संस्कृति भाषा पर संवाद कायम किया जाएगा।
कार्यक्रम का संपादन व संयोजन हितेन्द्र शर्मा द्वारा किया गया।  

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